लोकतंत्र

क्या है ? बड़ा गंभीर प्रश्न है । कभी कभी तो लगता है कि यह सिर्फ लोभ है । फिर लगता है कि नहीं यह उस जमाने का पारसी थियेटर है जब माइक नहीं होता था और एक्टर गला फाड़ चिल्लाता था कि उसकी आवाज पीछे बैठे लोगों को भी सुनाई पड़े । फिर लगता है कि पारसी थियेटर में भी यह सुलताना डाकू है : लूटता हूं अमीरों को , पेट भरता हूं गरीबों का । नहीं ,नहीं यह भी गलत है । लोकतंत्र तो चुनाव का महापर्व है । फिर गलती यह तो चुनाव का महापर्व है । इसमें आचार संहिता होती है । यह सबको पता होता है कि यह न मानने के लिए होती है । यहां एक चुनाव घोषणा पत्र होता है । इसे लिखने वाले भी इसे कभी पढ़ते नहीं । अकसर यह मूंगफली खाते हुए पढ़ा जाता है । मसलन आप पढ़ रहे हैं कि हर आदमी को सायकिल नहीं मोटर सायकिल दी जाएगी ... आगे का हिस्सा फटा होता है । जोड़ जाड़ कर पढ़ें तो लिखा पाएंगे कि जिसके

पास पैसा हो उसे मोटर सायकिल खरीद पर दुर्घटना करने की छूट दी जाएगी ।
इसमें नौकरी कुछ इस ढंग से बांटी जाती है जैसे नौकरी न हुई गंदगी हुई । हर तरफ बिखरी हुई है । जाओ , उठा लो । हम फारमूला बता देंगे कि गंदगी साफ करना भी नौकरी है । हर शहर में जहां नगरपालिका टाइप की नरकपालिका होती है, वहां बंटती है गंदगी साफ करने की नौकरी । भारतीय रेल तो इसका सबसे बढ़िया नमूना है । रेल भी गंदगी साफ करती है । सबसे ज्यादा वह बच्चे करते हैं जिन्हें नहीं पता होता कि बाल श्रम अपराध है । यह बालक श्रम करते हैं। सेल्फ एम्पलायड होते हैं पढ़ने की उम्र में । उनके लिए भी घोषणा पत्र में कुछ न कुछ लिखा होता है । स्वरोजगार तो लोकतंत्र का पावन कर्तव्य होता है ।
तब बात समझ में आती है लोकतंत्र का महापर्व स्वरोजगार को भी बढ़ावा देता है। न जाने कितने बेरोजगारों को ऐसे अवसरों पर मोटरसाइकल दी जाती है ।
उनका काम होता है कि लोगों को बताएं , लुभाएं कि आपको अवसरवादी प्रगतिशील मोर्चा को अपना कीमती वोट खाली बरतन छाप पर देना है ।
खाली बरतन बड़ी महान वस्तु है । कुछ भी भर सकते हैं । कुछ भी खा सकते हैं। कुछ भी पका सकते हैं। बिहार में नीतीश कुमार इसकी धीमी आंच में विकास पका रहे हैं। साथी भारतीय जनता पार्टी सत्ता धीमी आंच में ही चाल � चरित्र � चिंतन बघार रहे हैं। लालू प्रसाद पका रहे हैं चना। बहुत मशहूर है बिहार में घुंघनी । रामबिलास पासवान इसमें प्याज � मिर्ची डाल रहे हैं। बस मुश्किल यही है कि थोथा चना � बाजे घना। और कांग्रेस पार्टी पका रही है राजसत्ता। इसकी आंच कभी धीमी होती है , कभी तेज। जितने प्रकार के लोक लुभावन लोभ हो सकते हैं , सब पहले परोस चुकी है । यह कहती है कि केंद्रीय सहायता न होती तो बिहार न होता । बिहार कहता है कि बिहार न होता कामनवेल्थ गेम का गेम न होता । वहां का पैसा है । वह पैसा लोकतंत्र के महापर्व बिहार में निवेश हो रहा है ।
यही है लोक लुभावन लोभ !