लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र का छद्म ही जी रहे हैं हम
लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र का छद्म ही जी रहे हैं हम
दो दलीय अमेरिका परिस्पष्ट कौरपोरट बंडोबसत अस्मिताओं का महाश्मशान!
जिनके प्राण भावर ईवीएममध्य बसै, उनन से का कहे को बदलाव की आस कीजै?
पलाश विश्वास
सुधा राजे ने लिखा है
तुम्हें जन्दीगि बदलने के लिए पूंजी जमीन
और कर्मचारी चाहिए
मुझे समाझ बदलने के लिए केवल अपने पर
हमले से सुरक्षा और हर दिन मेरे हिस्से
मेरी अपना कुछ समय और उस समय को मेरी अपने मरजरी से खर्च
करने की मोहलत।
मोहन क्षोत्रिय ने लिखा है
जैसे चूमती हैं बहनें
अपने भाई को गाल पर
वैसे ही चूमना था #राहुल को
#बोन्ति ने...
पर मारी गई वह
उसके पति ने जला दिया उसे!
क्या कहेंगे इस सठा को
और सठा देने वाले के वहशिपन को?
सत्ता का चुम्बन बेहद आत्मघाती होता है। राहुल गांधी के गाल को चुम्बकर मारी गई इस युवती ने दामोड़दरी परियोजना के उद्धाटन के मौके पर नेहेरु को माला पहनाने वाली आदिवासी की नरक यंर्तणा बन गई जिन्दगी की याद दिला रही है।
अस्मिता के मुर्ग मुसल्लम के पहले बतल जाने से बहुत हाहा कार है, त्राहि त्राहि है। राष्ट्र, समाझ के बतलते चरित्र और अर्थव्यवस्था की नब्ज से अन्नजाना उत्पादन प्रणाली और श्रम सम्बन्धों से बेदखल मुक्क्त बाजार के नागरिकों के लिए यह दिशाभ्रम का भयंकर माहौल है।
लेकिन कॉर्पोरेटर के दो दलीय एकात्म बंडोबसत में यह बेहद सामाना सी बात है।
भारतीय राजनैतिक की धुरियाँ मात्री दो हैं, काँग्रेस और भाजपा। लेकिन अमेरिका की...


