लोकतांत्रिक देश में आमजन महफूज नहीं
लोकतांत्रिक देश में आमजन महफूज नहीं
हाशिएकरण का प्रतिरोध और वर्चस्व को चुनौती विषय पर वर्धा में आयोजित सम्मेलन का समापन
वर्धा,
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा व भारतीय स्त्री अध्ययन संघ के संयुक्त तत्वावधान में 21से 24 जनवरी को आयोजित स्त्री अध्ययन के 13 वें राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन बौद्धिक विमर्श के साथ आज हुआ। देश-विदेश से स्त्री विमर्श के लिए वर्धा में आयी तकरीबन 650 स्त्री अध्ययन अध्येताओं ने वर्धा महासम्मेलन को सफल करार दिया। चार दिनों से चल रहे महासम्मेलन में हाशिएकरण का प्रतिरोध और वर्चस्व को चुनौती विषय पर हिंदी विश्वविद्यालय में यह आयोजन किया गया था।
समापन समारोह के पूर्व 'युवाओं का जेंडर विनिर्माण: प्रतिनिधित्व, गतिशीलता, प्रतिरोध' विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता रूक्मणी सेन ने की। इस दौरान प्रियंका बोदपुजारी, समिता बरूआ, करूणा व हिंदी विश्वविद्यालय की शोधार्थी थोकचोम कमला देवी बतौर वक्ता के रूप में मंचस्थ थी। प्रियंका ने महिला आंदोलन के लिए ब्लॉग को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बताया। समिता बरूआ ने उत्तर-पूर्व के युवाओं के समक्ष आ रही चुनौतियों को रेखांकित करते हुए कहा कि वहां के युवा व महिलाएं शांति निर्माण प्रक्रिया में वैकल्पिक व्यवस्था अपनाना चाहते हैं। कमला थोकचोम ने कहा कि उत्तर पूर्व के राज्यों के लोगों के साथ जीने के अधिकार की जद्दोजहद के बारे में बताया। करूणा ने महिला आंदोलन के लिए एक-दूसरे से निरंतर संवाद बनाए रखने का सुझाव दिया।
गौरतलब है कि कुलपति विभूति नारायण राय ने 21 जनवरी को इस महासम्मेलन का उदघाटन किया था। छत्तीसगढ के प्रसिद्ध बस्तर बैंड की प्रस्तुति से शुरू हुए महासम्मेलन के दौरान सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम में जहां नगीन तनवीर के गायन ने समां बांधा वहीं पुणे की एस.बी.ओजस ने पूर्वोत्तर राज्यों में सैनिकों द्वारा आमजनों को परेशान किए जाने तथा विशेष सशस्त्र बल कानून को हटाए जाने के लिए करीब 10 वर्षों से आमरन अनशन कर रही इरोम शर्मिला पर एक नाट्य के मंचन ने उपस्थितों को सोचने पर विवश किया कि इसी लोकतांत्रिक देश में आमजन महफूज नहीं हें। महासम्मेलन के दौरान आयोजित पोस्टर प्रदर्शनी आकर्षण के केंद्र में था। विश्वविद्यालय की शोधार्थी चित्रलेखा अंशु, हरप्रीत कौर तथा मेघा आचार्य ने अपनी रचनात्मकता का पोस्टर एवं चित्रों के माध्यम से परिचय दिया। पाकिस्तान की जाहिदा हिना, श्रीलंका की पेन्या व बांग्लादेश की शाहिन अख्तर सहित देशभर के महिला अध्ययन अध्योताओं ने स्त्री विमर्श पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर देश-विदेश से आए स्त्री अध्ययन अध्येता, लेखिका, गैर सरकारी संगठनों के तकरीबन 650 प्रतिभागी व विश्वविद्यालय के अध्यापक, कर्मी, शोधार्थी, विद्यार्थी तथा वर्धा के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
तुम बोलोगी, मूंह खोलोगी, तभी तो ज़माना बदलेगा
हाशिएकरण का प्रतिरोध और वर्चस्व को चुनौती देने के लिए वर्धा में आयोजित स्त्री अध्ययन महासम्मेलन के तीसरे दिन मध्यभारत की महिलाओं ने रखे विचार
वर्धा, 23 जनवरी, 2011: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा व भारतीय स्त्री अध्ययन संघ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित स्त्री अध्ययन के 13 वें राष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे दिन रविवार को मध्य भारत की नारीवादी आंदोलन से जुडी कार्याकर्ताओं ने 'तुम बोलोगी, मूंह खोलागी, तभी तो जमाना बदलेगा से स्त्री विमर्श को नया आयाम दिया।
'मध्य भारत की महिलाओं के समक्ष चुनौतियां' विषय पर आयोजित प्लेनरी सेशन की अध्यक्षता मीरा वेलायुदन ने की । इस दौरान महिला लेखिका व संस्कृत की प्राध्यापिका सुमनताई बंग ने स्त्री विमर्श पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिना पुरूषों के किसी समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है, हमें सोचना पडेगा कि अाखिर स्त्री विमर्श पुरूषों को साथ क्यों नहीं ले रहा है। पुरूष के बदले बिना समाज कैसे बदलेगा। माताओं को चेतनशील समाज के निर्माण के लिए सोचने की जरूरत है, जबतक स्त्रियां मानसिक रूप से मुक्त नहीं होगी तबतक स्त्री मुक्ति का कोई मतलब नहीं होगा। इस अवसर पर लीलाताई चितले ने कहा कि आजाद देश में आजाद महिला के साथ जो हो रहा है, इसपर हम सोचने पर विवश होते हैं आज स्त्रियों को अपना स्वतंत्र मत रखने की जरूरत है। महिला संगठन से जुडी सामाजिक कार्यकर्ता सरोजताई काशीकर ने 1980 में काश्तकारी आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान में समानता का हक मिला हुआ है पर क्या हम आर्थिक क्षेत्र में अपना निर्णय ले पाते हैं।
इस दौरान विदर्भ में मजदूर आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए नागपुर की उषा मिश्रा ने कहा कि विदर्भ में पत्थर तोडनेवाली हाशिए की महिलाएं प्रतिरोध कर रही हैं, उनका कहना है कि आप जिस आलीशान इमारतों में रहकर गर्व का अनुभव करते हैं उस भवन निर्मिति में प्रयुक्त होने वाले गिट्टी के लिए हमनें पत्थर को भी हथोडे से तोड डालते हैं। उन्होंने कहा कि स्त्री अपने आप में श्रमिक क्रांतिकारी होती है-गर्भ से ही शक्ति का निर्माण होता है, सब परिस्थितियों से टकराने की शक्ति हममें हैं। उन्होंने विदर्भ को आंदोलन की भूमि बताते हुए कहा कि यहां एक सशक्त वैचारिक पद्धति रही है। उन्होंने कहा कि यहां पर संगठित मजदूर आंदोलन, असंगठित मजदूर आंदोलन व आर्थिक प्रश्नों से जूझते आंदोलन की भूमि रही है। विदर्भ में बुनकर आंदोलन, सूत मिल आंदोलन, सफाई कामगार आंदोलन आजादी आंदोलन से ही शुरू हो गया था। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, इंटक इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कौंसिल, हिंद मजदूर संघ का निर्माण यहां के आंदोलनों की उपज है। आदिवासी बहुल गढचिरोली क्षेत्र में कार्य करनेवाली श्रीमती बंग ने कहा कि आदिवासी जल, जंगल, जमीन से जुडे हुए हैं। जंगल से ज्यादातर महिलाओं का वास्ता रहता है, विकास नीति हमें जंगलों से बेदखल करना चाहती है। उन्होंने कहा कि बीडी उद्योग में आदिवासी महिलाओं का खूब शोषण होता है। उन्होंने महिलाओं पर शोषण का जिक्र करते हुए का कहा कि आदिवासियों को जंगल में चार पैरों के जानवरों से डर नही अपितु दो पैरों का डर है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में स्थानीय संयोजक व स्त्री अध्ययन की विभागाध्यक्ष प्रो. इलीना सेन ने मध्य भारत को प्रचलित विकास मॉडल के बीच में एक ऐसी संभावना का क्षेत्र बताया जहां कि वैकल्पिक विकास मॉडल के कुछ अभ्यास निकलकर आ सकते थे चूंकि यही वह क्षेत्र है जहां साझा संपत्ति संसाधन, जीवंतता, नागरिक अधिकार, मानवअधिकार को मुख्य चिंतन का आधार बनाया जा सकता है, दूसरी तरफ ग्रीनहंट, नक्सल के खिलाफ आंदोलन, सलवा जुडूम, आदिवासियों के खिलाफ संगठन और सौ से अधिक कंपनियों की उपस्थिति आम जनों के बीच स्पष्ट है। इस अवसर पर देश-विदेश से आए स्त्री अध्ययन अध्येता, लेखिका, गैर सरकारी संगठनों के तकरीबन 650 प्रतिभागी व विश्वविद्यालय के अध्यापक, कर्मी, शोधार्थी, विद्यार्थी तथा वर्धा के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
बॉक्स आइटम - इस अवसर पर आजादी आंदोलन के दौरान अपनी अमूल्य योगदानों से समाज सुधार लाने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। भारत छोडो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए महिला कार्यकर्ता, सामाजिक आंदोलनों से जुडी महिलाओं के संघर्ष का इतिहास व भारतीय स्त्री अध्ययन संघ के इतिहास को जोडने के लिए मराठी लेखिका पुष्पा भावे ने स्वतंत्रता सेनानी मालतीताई रूईकर, लीलाताई चितले, नलिनीताई लढके, सीमाताई साखरे, सुमनताई बंग, विश्वविद्यालय की स्त्री अध्ययन विभागाध्यक्ष प्रो. इलीना सेन को शॉल, स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।


