सीबीआई के पुलिस उपाधीक्षक एन. पी. मिश्रा (CBI Deputy Superintendent of Police N. P. Mishra) ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि सीबीआई के संयुक्त निदेशक ए. के. भटनागर ने झारखंड में 14 निर्दोष लोगों को फर्जी एनकाउंटर करके मार डाला था (CBI joint director A.K. Bhatnagar killed 14 innocent people in Jharkhand by fake encounter) । मरने वालों के परिवार के सदस्यों ने पहले ही यह आरोप लगाया था कि मरने वालों को पकड़ कर मार डाला गया है। पुलिस उपाधीक्षक सीबीआई एन. पी. मिश्रा ने 5 पेज का पत्र प्रधानमंत्री को भेजा है।

देश भर में हमेशा विवाद का विषय रहा है कि एनकाउंटर में लोगों को पकड़कर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी जाती है। लेकिन सरकारें इस कृत्य को कानूनी जामा पहनाकर हत्या को सही मुठभेड़ साबित करती हैं। जबकि वास्तविकता यह है पुलिस या अन्य एजेंसियां जो देश भर में एनकाउंटर करती हैं, उसमें ज्यादातर उनके व्यक्तियों को घरों से पकड़ कर वह मुठभेड़ दिखा कर उनकी हत्या कर दी जाती है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारियों के संबंध में इस तरह के मामले उजागर होते ही उसकी विश्वसनीयता के ऊपर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। कुछ वर्षों पूर्व गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को एक अवैध संगठन घोषित कर दिया था। लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय ने अवकाश के दिन न्यायालय को खोल कर उक्त आदेश को स्थगित कर दिया था।

सीबीआई को उच्चतम न्यायालय ने ही तोते की संज्ञा दी थी। लेकिन वर्तमान संदर्भ में विपक्ष के नेताओं को प्रताड़ित करने का काम केंद्रीय जांच ब्यूरो के माध्यम से किया जा रहा है। लेकिन न्यायपालिका प्रक्रियावश रोक लगाने में असमर्थ है।

भारतीय कानूनों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को पकड़कर मार देना हत्या का अपराध है और अगर सरकार या सरकारी संगठन हत्या करके मुठभेड़ दिखाते हैं तो लोकतंत्र कैसे देश में रहेगा? हर आदमी का विश्वास कैसे सरकार के ऊपर होगा? इसके ऊपर प्रश्नचिन्ह बहुत पहले से लग रहा है और अधिकारी अपनी प्रोन्नति के लिए के लिए इस तरह के कृत्य करते हैं।

एनकाउंटर स्पेशलिस्ट या एनकाउंटर से जुड़े हुए लोग अपनी किसी विशेष योग्यता की बजाए हत्या करके उच्च पदस्थ होते हैं, जिससे ईमानदार कानून के मानने वाले अधिकारी कुंठित हो जाते हैं। इस व्यवस्था के तहत उन हत्यारे अधिकारियों की संपत्तियों में भी कई हजार गुना बढ़ोतरी होती देखी जा सकती है। सरकारी एजेंसियों द्वारा मुठभेड़ के नाम पर की जा रही हत्याएं (Government agencies killings in the name of encounter) समाज के लिए व लोकतंत्र के लिए के लिए घातक है।

विधि के शासन की अवधारणा का लोप होता जा रहा है। अधीनस्थ न्यायालय भ्रष्ट अभियोजन अधिकारियों के अभिकर्ता के रूप में कार्य करने के कारण आम आदमी की हत्याएं मुठभेड़ के नाम पर होती हैं।

लोगों में यह विश्वास घर करता जा रहा है कि बदला लेने के लिए इन एजेंसियों की मदद से मुठभेड़ के नाम पर हत्या करवा लो।

यह मनुष्य की आधुनिक वधशालाएं हैं।

- रणधीर सिंह सुमन

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