किसान एजेण्डा के मुद्दे पर किसान संगठनों की तीन मार्च को बैठक
अंबरीश कुमार
लखनऊ। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले किसान संगठन राजनैतिक दलों के सामने किसान एजेण्डा पर जवाब चाहते हैं और उसी आधार पर वे वोट देंगे। इसे लेकर हरित स्वराज, किसान संघर्ष समिति और किसान मंच ने पहल की है और देश के कई अन्य किसान संगठन इससे जुड़ने वाले हैं। आगामी तीन मार्च को लखनऊ में इन किसान संगठनों की बैठक होने जा रही है, जिसमें फॉरवर्ड ब्लॉक के किसान संगठन अग्रगामी किसान सभा के साथ वाम मोर्चे के अन्य किसान संगठन भी शामिल होंगे। इनके अलावा पी राजगोपाल की एकता परिषद, आशा और किसान यूनियन (अंबावता) के साथ कई जन संगठन शामिल हो रहे हैं।
इस पहल का नेतृत्व कर रहे डॉ. सुनीलम के मुताबिक महाराष्ट्र, कर्णाटक, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान संगठन लोकसभा चुनाव से पहले यह एजेण्डा सभी राजनैतिक दलों के सामने रखेंगे और उनसे संवाद भी करेंगे। हाल ही में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान संगठनों की विभिन्न बैठकों से यह मुद्दा निकला और अब इस पर राष्ट्रीय बहस शुरू की जा रही है। लोकसभा चुनाव में किसान, आदिवासी हाशिए पर चला जाता है और उनके सवालों पर कोई राजनैतिक दल साफ-साफ़ कुछ कहने से बचते हैं। पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में किसानों की दो फसली से लेकर तीन फसली जमीन बड़े पैमाने पर छीनी जा चुकी है और मामूली मुआवजा देकर लाखों किसानों को खेती से बेदखल किया जा चुका है। अब किसानों की कई लाख हेक्टेयर जमीन पर कॉरपोरेट घरानो की नज़र है। ऐसे में राजनैतिक दलों के सामने विभिन्न किसान संगठन एक किसान एजेण्डा रखना चाहते हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश में किसान संगठनो की यह पहल पूर्वांचल से शुरू होगी।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में गंगा एक्सप्रेस वे से लेकर यमुना एक्सप्रेस वे की वजह से जब किसानों की जमीन पर खतरा मँडराया तो बड़े आन्दोलन पूरब से पश्चिम तक हुये और कई किसान मारे भी गये। इस सब के बावजूद किसानों की जमीन पर अभी भी खतरा मँडरा रहा है और शंकरगढ़ से लेकर करछना तक किसानों का आन्दोलन जारी है।
किसान संगठनों का आरोप है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र विदर्भ तक में लाखों एकड़ जमीन विभिन्न परियोजनाओं के लिये ली जाने वाली है जिससे बड़े पैमाने पर किसान तबाह हो जायेंगे।
डॉ. सुनीलम ने इस मुद्दे को लेकर बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कई जन संगठनो से चर्चा की और किसान एजेण्डा में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को शामिल करने पर जोर दिया। किसान एजेण्डा को लेकर पूर्वांचल में भारतीय किसान यूनियन, किसान संघर्ष समिति से लेकर किसान मंच तक साथ है। ये संगठन किसानों की उपज का लाभकारी मूल्य से लेकर खाद बिजली पानी आदि समय पर सुनिश्चित करने की माँग करते रहे हैं। किसानों को खाद न मिलने पर ब्लैक में उर्वरक खरीदना पड़ता है और दो साल पहले तो दुगने दाम पर यूरिया खरीदना पड़ा था जिससे खेती की लागत बढ़ गयी थी। इसी तरह समय पर बिजली न मिलने की वजह से सिंचाई व्यवस्था पर असर पड़ता है। कई बार तो पानी की भी किल्लत का सामना करना पड़ता है। इलाहाबाद के बाहरी इलाके में जब एक रिफायनरी लगाने की योजना बनी तो पता चला कि इसके लिये यमुना का लाखों लीटर पानी लगेगा और आस पास के किसान तबाह हो जायेंगे। इसका किसानो ने जमकर विरोध किया और यह योजना ठण्डे बस्ते में चली गयी। विदर्भ हो या इलाहाबाद इन सभी जगहों पर पानी की किल्लत है ऐसे में ज्यादा पानी का इस्तेमाल करने वाली योजनाओं से खेती किसानी बर्बाद हो जायेगी। पर इन सवालों पर मुख्यधारा के राजनैतिक दल खामोश रहते हैं या कॉरपोरेट घरानों के हित की ज्यादा चिन्ता करते हैं। हाल ही में जन आंदोलनो के राष्ट्रीय समन्वय ने वर्धा की बैठक में इन सवालों को उठाया और उम्मीद जताई कि आम आदमी पार्टी जो राजनैतिक संस्कृति को बदल रही है वह ठोस पहल करेगी। गाँधीवादी कार्यकर्त्ता रामधीरज के मुताबिक जिस तरह हजारीबाग में मिथिलेश डांगी ने खेत में मौजूद कोयले से किसानों को एकजुट कर बिजली बनाने का काम किया है उससे नया रास्ता खुल गया है और अब किसानों के सवाल पर व्यापक बहस की जरूरत है। किसान एजेण्डा को अगर किसान संगठन साझा रूप से तैयार करे तो यह बहुत प्रभावी होगा।
किसानों के सामने किस तरह के संकट मँडरा रहे हैं यह हाल ही में दिल्ली में हुये किसानों के प्रदर्शन से सामने आया। यह प्रदर्शन पश्चिमी घाट के छह राज्यों के करीब चार हजार गाँवों की त्रासदी को सामने लाने वाला था। इन गाँवों में निर्माण पर रोक लगा दी गयी है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के उच्च स्तरीय कार्यकारी समूह (डब्ल्यूजीईईपी) ने देश के पश्चिमी घाट के छह राज्यों के 4156 गाँवों को पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील मानकर यहाँ पर ज़मीन पर विशेष प्रतिबन्धित लगाने की सिफारिश की है। यहाँ पर लोग जमीन पर निर्माण और विकास की गतिविधियों जैसे अस्पताल, पुस्तकालय, विद्यालय यहाँ तक कि पालतु पशुओं के बाड़ भी नहीं बना पायेंगे। सरकारी जमीन से व्यक्तिगत जमीन में परिवर्तन पर प्रतिबन्ध, जमीन पर खेती करने वाले किसानों यहाँ तक कि आदिवासियों को जमीनों के पट्टे प्राप्ति पर रोक लगा देगा। यह एक बानगी है किसानों की जमीन पर मँडराने वाले खतरों की।
इसी तरह अलग-अलग राज्यों में किसानों के सामने अलग-अलग तरह के संकट मंडरा रहे हैं। किसान संगठन इन सभी सवालों के आधार पर किसान एजेण्डा तैयार कर रहे हैं। बाद में लोकसभा चुनाव के दौरान किसान संगठन एक मंच पर आकर किसानों के सवाल उठायेंगे।
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क