वातावरण में बढ़ती कार्बन डाई ऑक्साइड से मानव की पोषण सम्बन्धी पर्याप्तता पर उत्पन्न खतरा
वातावरण में बढ़ती कार्बन डाई ऑक्साइड से मानव की पोषण सम्बन्धी पर्याप्तता पर उत्पन्न खतरा
वातावरण में बढ़ती कार्बन डाई ऑक्साइड से मानव की पोषण सम्बन्धी पर्याप्तता पर उत्पन्न खतरा
‘हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ की नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में जारी ‘द रिस्क ऑफ इन्क्रीज्ड एटमॉसफेरिक सीओ2 ऑन ह्यूमन न्यूट्रीशनल एडीक्वेसी’, नामक जारी रिपोर्ट का सारांश :
लेखक: सैमुअल एस मायर्स एवं मैथ्यू आर स्मिथ
- मनुष्य द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड से हमारे भोजन के पोषण में कमी होती जा रही है।
- करोड़ों नये लोगों में जिंक, प्रोटीन तथा आयरन जैसे तत्वों की कमी उत्पन्न होने की आशंका है। इसके अलावा अरबों ऐसे जो लोग पहले से ही इन चीजों की कमी से जूझ रहे हैं, उनकी हालत और भी खराब होने की प्रबल आशंका है।
- पोषण से भरपूर भोज्य पदार्थ अक्सर एक से ज्यादा पोषक तत्वों से परिपूर्ण होते हैं और इसकी वजह से अनेक लोगों में कई प्रकार के पोषक तत्वों की कमी देखी जा सकती है, जिससे उनका स्वास्थ्य और भी खराब हो सकता है।
- दुनिया के ऐसे सबसे गरीब लोग, जिनका कार्बन फुटप्रिंट सामान्यत: सबसे कम होता है, उन्हें पोषण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की सबसे ज्यादा मार सहन करनी पड़ेगी। वहीं, कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन के लिये सर्वाधिक जिम्मेदार सबसे अमीर लोग अच्छे खान-पान की वजह से कार्बन के प्रभावों से तुलनात्मक तौर पर बचे रहेंगे।
पृष्ठभूमि : कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ता स्तर हमारे भोजन के पोषक तत्वों को कम कर सकता है
जलवायु परिवर्तन और कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओ2) के उत्सर्जन में वृद्धि से खाद्य सुरक्षा को खतरा पैदा होता है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव के परिणामस्वरूप पड़ने वाले सूखे, गर्मी और अत्यधिक बारिश से फसलों की उत्पादकता और उपलब्धता ही नहीं बल्कि उनका पोषण पर भी बेहद बुरा असर पड़ सकता है।
‘हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ की ‘द रिस्क ऑफ इन्क्रीज्ड एटमॉसफेरिक सीओ2 ऑन ह्यूमन न्यूट्रीशनल एडीक्वेसी’, नामक नयी रिपोर्ट से पता चलता है कि कार्बन डाई ऑक्साइड के बढ़ते स्तर से फसलों में मौजूद पोषक तत्वों के स्तर में कमी आती है। इससे मानव को मिलने वाले पोषण पर सीधा असर पड़ सकता है। कुछ निश्चित क्षेत्रों में रहने वाले और सामाजिक तथा आर्थिक लिहाज से निम्न पृष्ठभूमि में रहने वाले लोगों पर सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका है।
दुनिया में ज्यादातर लोग पेड़-पौधों पर आधारित भोज्य पदार्थों से पोषण पाते हैं। दुनिया में करीब 63 प्रतिशत प्रोटीन, 81 प्रतिशत आयरन और 68 प्रतिशत जिंक की पूर्ति पेड़-पौधों से ही होती है। कार्बन डाई ऑक्साइड पौधों को बढ़ने में मदद करती है लेकिन इसकी अत्यधिक मात्रा से फसलों से मिलने वाले पोषण में कमी हो सकती है। नये अध्ययन पत्र तथा पूर्व में किये गये अनुसंधानों से यह संकेत मिलते हैं कि अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर वाले क्षेत्रों में उगायी गयी फसलों में आयरन, जिंक, प्रोटीन तथा कुछ विटामिनों का स्तर कम पाया गया है।
नये अध्ययन में यह सुझाया गया है कि इस शताब्दी के मध्य तक मानव की गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन से 17.5 करोड़ लोगों में जिंक की, जबकि 12.2 करोड़ लोगों में प्रोटीन की कमी हो सकती है। दुनिया में इस वक्त एक अरब से ज्यादा लोग इन तत्वों की कमी से जूझ रहे हैं और जो आसार हैं, उन्हें देखते हुए स्थिति बदतर होने की प्रबल आशंका है।
अध्ययन के अनुसार मोटे तौर पर पांच साल तक के बच्चे और 15 से 50 साल की उम्र वाली औरतों सहित 1.4 अरब लोग एनीमिया के गम्भीर खतरे वाले क्षेत्रों में रहते हैं और सीओ2 के बढ़ते प्रभाव के परिणामस्वरूप उनके भारी मात्रा में आयरन से वंचित होने का खतरा है। कार्बन डाई ऑक्साइड के उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों में उगायी जाने वाली फसलों में प्रोटीन, आयरन और जिंक की मात्रा में क्रमश: 10 प्रतिशत, 6 प्रतिशत और 7 प्रतिशत की कमी हो जाती है।
एशिया, अफ्रीका और मिडिल ईस्ट पर सबसे ज्यादा खतरा
मानव की गतिविधियों के कारण होने वाले सीओ2 के उत्सर्जन का फसलों की पोषणीयता पर पड़ने वाले प्रभाव को दुनिया भर में महसूस किया जाएगा लेकिन अफ्रीका, दक्षिणपूर्वी एशिया और पश्चिम एशिया में रहने वाली आबादी पर सबसे ज्यादा असर पड़ने का खतरा है। इन क्षेत्रों में भी भारत पर जोखिम सबसे ज्यादा है क्योंकि यहां कुपोषण की दर ऊंची है और यहां का खान-पान यहां के लोगों को एक खास जोखिम के सामने ला खड़ा करता है।
कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाकर खाद्य सुरक्षा एवं मानव को मिलने वाले पोषण पर मंडराते जोखिम को कम किया जा सकता है।
कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ता हुआ स्तर अरबों लोगों में मौजूद कुपोषण की स्थिति को और भी बदतर कर सकता है। साथ ही यह करोड़ों नये लोगों को भी इस खतरे के दायरे में ला सकता है। दुष्प्रभाव में आये ऐसे नये जनसमूह जिनमें किसी एक पोषक तत्व की कमी थी, वे एक से ज्यादा पोषक तत्वों की कमी के शिकार हो सकते हैं। कुपोषण के ज्यादा होने से उसके स्वास्थ्य पर और भी गम्भीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन का स्तर लगातार बढ़ रहा है, लिहाजा सभी देशों की सरकार को चाहिये कि वह अपने यहां उगायी जाने वाली फसलों की निगरानी करे ताकि उनमें पोषण के स्तर का पता लगाया जा सके। पोषक तत्वों के मामले में अधिक लचीली फसल की इन किस्मों के उत्पादन पर ध्यान देने से स्थानीय आबादी पर पड़ने वाले स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिमों को कम किया जा सकता है।
इंसानी गतिविधियों के कारण निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड की वजह से उत्पन्न कुपोषण को टालने का सबसे सीधा रास्ता यही है कि इसके उत्सर्जन में तेजी से कमी लायी जाए। इसके अलावा, जोखिम की आशंका वाली आबादियों में आहार सम्बन्धी विविधीकरण को बढ़ावा देने, पूरक आहार देने, बायोफोर्टिफाइड फसलें उगाने और सीओ2 के बढ़े हुए स्तर के प्रति कम संवेदनशीलता दिखाने वाली फसलें उगाये जाने से स्थिति पर नियंत्रण किया जा सकता है। लेकिन ये कोई रामबाण इलाज नहीं है। इन सभी उपायों को जमीन पर उतारने के लिये अनुसंधान कार्य में उल्लेखनीय निवेश की आवश्यकता होगी। साथ ही नये तौर-तरीकों को लागू करना होगा।
(पर्यावरणविद, संचार रणनीतिकार और स्वतंत्र पत्रकार सीमा जावेद द्वारा जारी)


