वाह रे अच्छे दिन ! प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : किसान के नाम पर कंपनियों का फायदा
वाह रे अच्छे दिन ! प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : किसान के नाम पर कंपनियों का फायदा
भारत शर्मा
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर एक बड़ी आर्थिक गड़बड़ी सामने आई है, जिसमें किसानों से बीमा के नाम पर रकम तो ली गई, पर उन्हें इसका लाभ नहीं दिया गया। फसल बीमा योजना के नाम पर तमाम बीमा कंपनियों ने जमकर मलाई काटी, दूसरी तरफ सरकार ने उन्हें एरियर भुगतान के नाम पर और रकम उपलब्ध कराई। इस आर्थिक गड़बड़ी का खुलासा खुद सरकार की ओर से संसद में दिए अपने जबाव से होता है।
दरअसल ७ अप्रैल २०१७ को राज्य सभा में पूछे गए प्रश्न क्रमांक ४०२५ के जबाव में सरकार ने बताया है, कि खरीफ फसल २०१६ के लिए किसानों की तरफ से कुल ४२७०.५५ करोड़ रुपए के भुगतान के आवेदन दिए गए थे, इनमें से मात्र ७१४.१४ करोड़ रुपए के दावे का ही भुगतान किया गया था।
फसल बीमा योजना के प्रावधानों को देखें, तो पता चलता है, कि प्रीमियम राशि एक अवधि के लिए ली जाती है, अगर किसान फसल खराब होने के बाद एक निश्चित अवधि के दौरान आवेदन करता है, तो उसके भुगतान के बाद शेष राशि बीमा कंपनी का लाभ बन जाती है।
अगर साल २०१६ के खरीफ फसल की स्थिति देखें, तो कुल २१,५०० करोड़ रुपए प्रीमियम के तौर पर इन कंपनियों ने उगाहे, इस आधार पर किसानों ने जो दावे किए थे, वे कुल राशि का २० फीसदी से भी कम हैं, इनमें से भी जो राशि किसानों को दी गई वह कुल राशि का मात्र ३.३१ फीसदी ही है।
मामला यहीं तक नहीं है, कंपनियों को इसके अतिरिक्त भी लाभ पहुंचाया गया।
अगर इसी दिन सवाल क्रमांक ४००३ को देखें, तो सरकार बताती है, साल २०१६-१७ के लिए फसल बीमा योजना के लिए कुल बजट आकलन ५५०१.१५ करोड़ थी, जिसे बढ़ाकर १३२४०.०४ करोड़ रुपए कर दिया गया। यह रकम कुल बजट आकलन का ४०० फीसदी अधिक है। यह रकम क्यों बढ़ाई गई, इसका खुलासा खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ३ फरवरी को दिए अपने बजट भाषण में किया है। भाषण के पृष्ठ क्रमांक ९ के पाइंट क्रमांक २४ में उन्होंने बताया है, कि एरियर दावों के समायोजन के लिए यह किया गया। हालांकि राज्यसभा में पूछे गए दोनों सवालों के जबाव में इस बात का जिक्र कहीं नहीं है, कि बीमा कंपनियों के सामने कितने एरियर के दावे आए।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके आधार पर सरकार यह प्रचार कर रही है, कि वह खेती को लाभ का धंधा बनाएगी। अगर किसानों की तरफ से खरीफ २०१६ में किए गए सारे दावे मान लिए जाते, तब भी वह प्रीमियम के नाम पर उगाही गई कुल रकम का २० फीसदी ही बनता।
अखिल भारतीय किसान सभा के नेता हन्नान मौल्ला का कहना है, कि इस पूरे मामले में बड़ी वित्तीय गड़बड़ी की आशंका नजर आती है। सरकार एक तरफ किसानों के दावे में भुगतान में देरी को दूर करने के लिए रिमोट सेसिंग टेक्नोलाजी और स्मार्ट फोन के इस्तेमाल की बात करती है, दूसरी तरफ इस पूरे मामले पर खामोशी है। इस मामले को लेकर वे कृषि मंत्री से मिले, तो उन्होंने यह कहकर बात को टाल लिया, कि सब भगवान की मेहरबानी है, फसल अच्छी हुई, इसलिए ज्यादा दावे नहीं हुए।


