प्रकाश कारात

पांच राज्य विधानसभाओं- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर तथा गोवा -के चुनावों की अधिसूचना जारी हो गयी है। इनमें से दो राज्यों -गोवा तथा पंजाब - में भाजपा तथा उसके सहयोगियों की सरकारें हैं, जबकि उत्तराखंड तथा मणिपुर में कांग्रेस की सरकारें हैं।

बहरहाल, चुनाव के इस चक्र में सबस महत्वपूर्ण चुनावी लड़ाई उत्तर प्रदेश में होने जा रही है, जहां समाजवादी पार्टी की सरकार है।

पंजाब में अकाली दल-भाजपा गठजोड़ सरकार को बहुत जबर्दस्त सत्ताधारीविरोधी मूड का सामना करना पड़ रहा है। तीखा कृषि संकट, बढ़ी बेरोजगारी, चौतरफा व्याप्त भ्रष्टाचार तथा नशे का कारोबार, बादल कुटुंब के शासन की पहचान ही बने रहे हैं और इन्हीं के चलते जनता में भारी नाराजगी है।

उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार को पलटने के केंद्र सरकार के खेल तथा उस पर पानी फेरने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप के बाद से, सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को भाजपा की सत्ता हथियाने की दृढ़निश्चय कोशिशों का सामना करना पड़ा है। अपनी इन कोशिशों के लिए भाजपा, केंद्र की सत्ताधारी पार्टी होने के नाते जुटाए जा सकते तमाम संसाधनों का सहारा ले रही थी।

गोवा में भाजपा-महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (मगोपा) गठजोड़ सरकार सांप्रदायिक राजनीति में लगी रही है। फिर भी, चुनाव से चंद हफ्ते पहले ही मगोपा ने गठजोड़ से नाता तोड़ लिया। अब इस चुनाव में एक वैकल्पिक दक्षिणपंथी गठजोड़ भी सामने है, जिसमें मगोपा, शिव सेना और आरएसएस के पूर्व गोवा-प्रमुख के नेतृत्व वाला गोवा सुरक्षा मंच शामिल है। पहले से कमजोर हो चुकी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी मैदान में हैं।

मणिपुर में हालात बहुत खराब हैं। घाटी का ढाई महीने से जारी ब्लाकेड अब भी जारी है। इथनिक ध्रुवीकरण जो कि मणिपुर की राजनीति की पहचान ही बना रहा है और बेशुमार विद्रोही गु्रपों की मौजूदगी, इस राज्य में चुनावी कसरत को बहुत मुश्किल बना देती है। मुख्यमंत्री इबोबी सिंह इसकी उम्मीद कर रहे हैं कि वह नये जिलों के गठन को भुनाने में कामयाब हो जाएंगे, जिनसे यूनाइटेड नगा काउंसिल खफा है, जिसे एनएससीएन (आइएम) का समर्थन हासिल है।

चुनावों के इस चक्र की सबसे बड़ी लड़ाई उत्तर प्रदेश में ही लड़ी जाने वाली है। पिछले दो विधानसभाई चुनावों- 2007 तथा 2012- में राज्य की जनता ने एक पार्टी के पक्ष में स्पष्ट जनादेश दिया था, पहले बसपा के पक्ष में और बाद में सपा के पक्ष में। 2014 की मई में हुए लोकसभा चुनाव में भी नतीजा इकतरफा ही आया था और भाजपा तथा उसके सहयोगी राज्य की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 73 जीतने में कामयाब रहे थे। इन पार्टियों को राज्य की कुल 403 विधानसभाई सीटों में 329 पर बढ़त हासिल हुई थी।

इस चुनाव में भाजपा को अकेले ही 42.5 फीसद वोट मिले थे। भाजपा की इस बढ़त को, जो कि बिहार में लोकसभा चुनाव में उसे हासिल हुई बढ़त से कहीं ज्यादा थी, पलटना कोई आसान नहीं होगा।

समाजवादी पार्टी में एक और अखिलेश यादव और दूसरी ओर मुलायम सिंह तथा उनके भाई शिवपाल यादव के बीच कटुतापूर्ण लड़ाई, हालात की अनिश्चितता में इजाफा कर रही थी।

बहरहाल, अखिलेश यादव ने पार्टी तथा विधायकों के ज्यादातर हिस्से को अपने साथ कर लिया और चुनाव आयोग द्वारा साइकिल का चुनाव चिन्ह उन्हें ही दिए जाने के बाद, वह कहीं मजबूत होकर उभरे हैं। उसका कांग्रेस के साथ और संभवत: अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के भी साथ संभावित गठबंधन, इस कतारबंदी को भाजपा का मुकाबला करने के लिए कहीं बेहतर स्थिति में पहुंचा देगा। फिर भी बिहार के विपरीत, जहां दो बड़ी पार्टियां-राजद तथा जद (यू) साथ आयी थीं, यह महागठबंधन नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में बसपा ऐसे गठबंधन में शामिल नहीं होने जा रही है।

भाजपा ने उत्तर प्रदेश में किसी को भी मुख्यमंत्री पद के अपने उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया है। वह बिहार की ही तरह, मोदी को ही चुनाव अभियान में अपना मुख्य चेहरा बनाकर पेश करना चाहती और जातिगत गठजोड़ करने में लगी हुई है, जो 2014 के चुनाव में उसके लिए बहुत मददगार साबित हुए थे।

बहरहाल, केंद्र में मोदी सरकार को बने ढाई साल हो चुके हैं और यह सरकार रोजगार तथा विकास लाने में पूरी तरह से विफल रही है। ऐसे में मोदी का आकर्षण कितना काम करेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। पांच सौ और हजार रु0 के नोटों की नोटबंदी से पैदा हुई समस्याओं और जनता पर इस कदम के असर की भी इस चुनाव में भूमिका रहेगी।

इन पांचों राज्य में सी पी आइ (एम) और वामपंथ की कोई बड़ी ताकत नहीं है। पंजाब, उत्तराखंड तथा उत्तर प्रदेश में वामपंथी पार्टियां, एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में एकजुट होकर चुनाव लड़ रही हैं। इस चुनाव में वामपंथी पार्टियां इसके लिए सतत प्रचार अभियान चलाएंगी कि भाजपा के प्रतिक्रियावादी सांप्रदायिक चरित्र को और जनता के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा छेड़े गए हमलों को बेनकाब किया जाए। पूरी ताकत आने वाले चुनाव में भाजपा को हराने पर लगनी चाहिए। 0