विधेयक वापसी केवल 'जुमला', भूमि कानूनों में सभी आदिवासीविरोधी बदलावों के खिलाफ अभियान चलाएगी माकपा
विधेयक वापसी केवल 'जुमला', भूमि कानूनों में सभी आदिवासीविरोधी बदलावों के खिलाफ अभियान चलाएगी माकपा
रायपुर। भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक को सरकार द्वारा वापस लिए जाने को महज एक 'जुमला' करार देते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भाजपा राज में भूमि कानूनों में किए गए सभी परिवर्तनों के खिलाफ अभियान चलाने का फैसला किया है. विधेयक वापसी को माकपा ने प्रदेश में कार्पोरेट राज और विस्थापन के खिलाफ लड़ने वाली सभी ताकतों और खासकर आदिवासियों और किसानों के एकजुट आंदोलन की जीत बताया है.
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने में विफल रहने के बाद भाजपा राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर भूमि कानूनों में फेरबदल की मुहिम छेड़ी हुई है, ताकि आदिवासी-भूमि की लूट को पूंजीपतियों और कार्पोरेटों के लिए आसान बनाया जा सके. इस मुहिम में वह न केवल संविधान के प्रावधानों से खिलवाड़ कर रही है, बल्कि आदिवासियों पर बर्बर जुल्म भी ढा रही है. भाजपा राज में छत्तीसगढ़ में 5वीं अनुसूची और पेसा कानून का कोई अर्थ नहीं रह गया है और वनाधिकार कानून के तहत बांटे गए आधे-अधूरे पट्टे भी छीने जा रहे है. बांध, खनन और अभयारण्यों के नाम पर बिना पुनर्वास-पुनर्व्यवस्थापन योजना के उन्हें उजाड़ने की मुहिम अज भी बदस्तूर जारी है, जबकि वनाधिकार कानूनों के तहत पहले उन्हें पट्टे दिए जाने चाहिए.
माकपा ने याद दिलाया है कि डेढ़ साल पहले भी भू-राजस्व संहिता की धारा-172 में संशोधन करके इस सरकार ने पुनर्वास की जिम्मेदारी से ही कार्पोरेटों को बरी कर दिया है और भू-राजस्व संहिता की धारा 165(छ) को आज भी आदिवासियों की भूमि को हड़पने का हथियार बनाया जा रहा है. इसलिए इस विधेयक को वापस लेना ही काफी नहीं है. विधेयक वापसी केवल चुनावी हितों के मद्देनजर है और यदि चुनावों में भाजपा को जीत मिलती है, तो फिर से इस विधेयक को पारित किया जाएगा, क्योंकि आज भी वह इसको अच्छी दवा बता रही है.
माकपा ने भाजपा राज के खिलाफ लड़ने वाली सभी ताकतों से अपील की है कि एकजुट होकर इस सरकार की आदिवासी-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष तेज करें.


