विनाश की ओर ले जाएगा मोदी का विकास का रास्ता- नेपाल में पीपुल्स सार्क ने किया आगाह
विनाश की ओर ले जाएगा मोदी का विकास का रास्ता- नेपाल में पीपुल्स सार्क ने किया आगाह
काठमांडू। सार्क सम्मेलन से पहले शुरू हुए पीपुल्स सार्क ने सार्क देशों में विकास की नई अवधारणा को लेकर सवाल खड़ा किया है। मोदी के आने से पहले ही पीपुल्स सार्क ने सवाल खड़ा किया है कि वे नेपाल के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर इसे भी विनाश के रास्ते पर ढकेल रहे हैं। वे नेपाल में बिजली परियोजना लगाएंगे, ज्यादा बिजली भी खरीदेंगे और नेपाल को भी बिजली देंगे पर प्राकृतिक संसाधनों का जो बड़ा विनाश वे इस देश का करेंगे उसकी भरपाई कौन करेगा। भारत में पहले केदारनाथ और फिर कश्मीर के हादसे प्रकृति से की गई छेड़छाड़ का ही नतीजा है। अब नेपाल की बारी है।
शनिवार से शुरू हुए पीपुल्स सार्क में अलग अलग मुद्दों पर गंभीर बहस हुई। पीपुल्स सार्क यानी जन सार्क दक्षिण एशिया में लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और शांति के लिए जन आंदोलनों की बात कर रहा है। इस जन सार्क सम्मलेन में दक्षिण एशियाई देशों से मजदूर संगठन, दलित संगठन, मानवाधिकार संगठन, महिला संगठन , किसान संगठनों और विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे है। सम्मलेन में एक तरफ सार्क देशों में मानवाधिकार से लेकर मानव तस्करी का सवाल उठा तो दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन से लेकर जल जंगल और जमीन पर मंडरा रहे संकट पर चर्चा हुई।
महिलाओं के सवाल पर भारत, पकिस्तान, बंगला देश, नेपाल से लेकर अफगानिस्तान की प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी। सार्क देशों से आई दलित महिलाओं ने एकजुटता के साथ संघर्ष पर जोर दिया। भारत से आई महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देश के विभिन्न हिस्सों में दलित महिलाओं की बदहाल स्थिति की जानकारी दी। इन महिलाओं ने दलित महिलाओं के लिए शिक्षा पर ख़ास जोर दिया। वक्ताओं में ज्यादातर ने कहा कि शिक्षा की वजह से ही वे आज इस मंच तक पहुंची और संघर्ष के लिए तैयार हैं। इसके लिए उन्होंने बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर को अपना प्रेरणा स्रोत भी बताया। ज्यादातर वक्ताओं ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में भी दलित महिलाओं और आदिवासियों के साथ ज्यादा भेदभाव होता है। वे अधिकार जो संविधान में तो दलित महिलाओं को मिले हुए हैं वह भी व्यवहार में उन्हें नहीं मिलता।
भारत की मनीषा ने कहा जब तक हक़ उंगली उंगली मिलकर मुठ्ठी नहीं बनेगे हमें अपने अधिकार नहीं हासिल होंगे। सभी देशों की महिलाओं को एकजुट होना पड़ेगा। बाद में दलित युवतियों ने जय भीम के नारे के साथ सामूहिक नृत्य भी किया।
सम्मलेन में दक्षिण एशियाई देशों में वनाधिकार को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। इसमें बताया गया कि किस तरह जिन देशों में सरकार के पास जंगल पर ज्यादा अधिकार है वहां गरीबी ज्यादा है जबकि जिन देशों में समुदाय के पास यह अधिकार ज्यादा है वहां गरीबी कम है। चर्चा में दक्षिण एशियाई देशों में जंगल के घटते आकार को लेकर भी चिंता जताई गई तो कारपोरेट घरानों की लूट पर भी। भारत में किस तरह हिमालयी राज्यों में जंगल में इन कारपोरेट घरानों को विभिन्न परियोजनाओं के नाम पर जमीन दी जा रही है उससे पर्यावरण पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
हिमालय नीति संवाद के गुमान सिंह ने हिमालय पर मंडरा रहे खतरों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि सिर्फ भारत ही नहीं सभी हिमालयी देशों पर यह खतरा मंडरा रहा है। हिमालयी देशों पर युद्ध का साया है तो प्रकृतिक संसाधनों की लूट बढ़ रही है। इस मौके पर भारत में मोदी सरकार की नीतियों को भी खतरनाक बताया गया जो अब दूसरे देशों में भी उन्ही नीतियों को थोप कर नया संकट खड़ा कर रहे हैं। वे नेपाल में बिजली परियोजनाओं का जो झांसा दे रहे हैं उससे नेपाल को दीर्धकालीन नुक्सान ही होगा और उसके प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा लाभ कारपोरेट घरानों को होगा। इसे लेकर नए सिरे से विकास की अवधारणा पर विचार करने की जरुरत है।
O- अंबरीश कुमार


