Why should we remember the horrors of Partition?

Why should we remember the horrors of the Partition of India? In this insightful article, Dr. Ram Puniyani explores the deep scars left by the 20th century's most tragic event, the Partition. Discover why the Indian government has designated August 14 as 'Vibhajan Vibhishika Smriti Divas' and the implications of this decision. Uncover the truth behind the Partition, the role of British colonial policies, and the controversial narratives surrounding Nehru and communal violence. Understand the historical significance and ongoing impact of this monumental event.

भारत का बंटवारा 20 वीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था. बंटवारे के दौरान जितनी बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं और जिस बड़े पैमाने पर उन्हें अपने घर-गांव छोड़कर सैकड़ों मील दूर अनजान स्थानों पर जाना पड़ा, उस पैमाने की त्रासदी दुनिया में कम ही हुईं हैं. बंटवारे के घाव अभी पूरी तरह से भरे नहीं हैं परंतु लोग शनैः-शनैः नए यथार्थ को स्वीकार कर रहे हैं.

Partition of India: one of the major tragedies of the twentieth Century World

भारत में वैसे ही समस्याओं की कमी नहीं है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह घोषणा कर दी है कि हर वर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस‘ मनाया जाएगा. चौदह अगस्त के अगले दिन हम ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से हमारे देश की मुक्ति का उत्सव मनाते हैं. इस दिन भारत ने स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और सामाजिक न्याय पर आधारित एक नए राष्ट्र के निर्माण की अपनी यात्रा शुरू की थी.

The partition of India was one of the biggest tragedies of the 20th century.

इसमें कोई संदेह नहीं कि विभाजन के बाद लाखों परिवारों को अपने प्रियजनों से बिछोह और अपनी जन्म और कर्मस्थली से दूर बसने की मजबूरी से सामंजस्य बिठाने के लिए कठिन प्रयास करने पड़े. जिस तरह की कठिनाईयां उन्हें झेलनी पड़ीं उनका मर्मस्पर्शी विवरण अनेक कहानियों, उपन्यासों, कविताओं और संस्मरणों में उपलब्ध है.

‘पार्टीशन स्टोरीज‘ उस त्रासद दौर में महिलाओं पर जो गुजरा उसका विवरण करने वाली एक उत्कृष्ट कृति है. आज हमें अचानक विभाजन के पुराने घावों को फिर से छेड़ने की धुन क्यों सवार हो गई है? क्या हम उन दिनों को इसलिए याद करना चाहते हैं कि हम इस बात के लिए प्रायश्चित कर सकें कि हमने अपनी विचारधाराओं को त्याग दिया और विदेशी ताकतों के षड़यंत्र में फंस गए.

इस प्रश्न का उत्तर भाजपा महासचिव (संगठन) के एक ट्वीट से समझा जा सकता है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि विभाजन विभीषिका दिवस मनाने का निर्णय एक सराहनीय पहल है और इससे हम उस त्रासदी को याद कर सकेंगे जिसे नेहरू की विरासत के झंडाबरदारों ने भुलाने का प्रयास किया है.

इस कवायद के एक अन्य लक्ष्य का पता भाजपा नेता व केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के एक वक्तव्य से मिलता है जिसमें उन्होंने कहा, “विभाजन हमारे लिए एक सबक है कि हम अपनी पिछली गलतियों को न दुहराएं और भारत को सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की राह पर आगे ले जाएं ना कि तुष्टिकरण की राह पर, विशेषकर तब जबकि हमारे पड़ोस में अफरातफरी और अस्थिरता का आलम है.”

सामान्य लोगों के दिलोदिमाग में यह भर दिया गया है कि विभाजन के पीछे नेहरू और तुष्टिकरण की उनकी नीति थी या दूसरे शब्दों में विभाजन के लिए मुसलमान जिम्मेदार थे. इस धारणा की स्वीकार्यता काफी व्यापक है परंतु यह सही नहीं है.

विभाजन मुख्यतः अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति की उपज था, जिसे उन्होंने 1857 के बाद से और जोरशोर से लागू करना शुरू कर दिया था. उनकी इसी नीति ने हिन्दू और मुस्लिम साम्प्रदायिकता को हवा दी. देश के बंटवारे के पीछे सबसे बड़ा कारक ब्रिटिश शासन की नीतियां थीं जबकि मौलाना आजाद और महात्मा गांधी जैसे लोगों ने इसका जमकर विरोध किया था.

जिस समय देश को बांटने की प्रक्रिया चल रही थी उस समय महात्मा गांधी इसलिए भी चुप रहे क्योंकि दोनों पक्षों की ओर से साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने का हर संभव प्रयास किया जा रहा था. दोनों ओर से नफरत फैलाई गई और दोनों ओर से हिंसा हुई.

पुरी के वक्तव्य में जिस तुष्टिकरण की चर्चा की गई है उसके संदर्भ में आईए हम देखें कि सरदार पटेल का हिन्दू साम्प्रदायिक संगठन आरएसएस द्वारा फैलाई जा रही साम्प्रदायिकता के बारे में क्या कहना था. बंटवारे और महात्मा गांधी की हत्या की त्रासदियों के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा “उनके सभी भाषण नफरत के जहर से बुझे होते थे. हिन्दुओं को उत्साहित करने और उनकी रक्षा के लिए उन्हें संगठित करने के लिए नफरत का जहर फैलाना जरूरी नहीं था. इस जहर का अंतिम नतीजा था गांधीजी के अमूल्य जीवन की बलि.”

अब तक हिन्दू राष्ट्रवादियों के प्रचार के निशाने पर मुख्यतः गांधी थे. अब उन्होंने अपनी तोपों के मुंह नेहरू की ओर भी मोड़ दिया है.

अगर कांग्रेस को न चाहते हुए भी विभाजन को स्वीकार करना पड़ा तो उसका कारण कांग्रेस की असहायता थी. औपनिवेशिक ताकतों ने साम्प्रदायिकता के जिस जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया था उससे मुकाबला करना किसी के लिए भी संभव न था.

कांग्रेस के सबसे लंबी अवधि तक अध्यक्ष रहे मौलाना आजाद ने अंतिम क्षण तक विभाजन का विरोध किया. इसके मुकाबले कांग्रेस की केन्द्रीय समिति के कई ऐसे सदस्य भी थे जिन्होंने विभाजन को एक अनिवार्यता के रूप में स्वीकार कर लिया था, क्योंकि उनका मानना था कि भारतीय उपमहाद्वीप को गृहयुद्ध की विभीषिका से बचाने और आधुनिक भारत के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए यह आवश्यक था. ऐसे नेताओं में राजागोपालाचारी शामिल थे.

यह दिलचस्प है कि जब लार्ड माउंटबेटिन ने विभाजन का प्रस्ताव कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष रखा तब नेहरू के भी पहले सरदार पटेल ने उसे स्वीकार किया. इस घटनाक्रम का विस्तृत विवरण मौलाना आजाद की पुस्तक ‘इंडिया विन्स फ्रीडम‘ में उपलब्ध है.

जहां तक तुष्टिकरण की बात है पुरी जैसे साम्प्रदायिक तत्व हमेशा से कांग्रेस पर मुसलमानों का तुष्टिकरण करने का आरोप लगाते रहे हैं. यह तब भी हुआ था जब बदरूद्दीन तैयबजी जैसे शीर्ष नेता कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

सावरकर के द्विराष्ट्र सिद्धांत से ही जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग करने की प्रेरणा पाई

गोडसे देश के विभाजन के लिए महात्मा गांधी को जिम्मेदार ठहराता था जबकि गांधीजी ने कहा था कि भारत मेरी लाश पर बंटेगा. गांधीजी के इस वक्तव्य का साम्प्रदायिक तत्व मजाक उड़ाते रहे हैं. पटेल उस समय भी आरएसएस के खेल को समझ चुके थे. संघ एक ओर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर समाज को धार्मिक आधार पर बांट रहा था तो दूसरी ओर अखंड भारत की बात भी कर रहा था जिसका अर्थ यह था कि मुसलमानों को हिन्दुओं का प्रभुत्व स्वीकार करते हुए अविभाजित भारत में रहना होगा. जाहिर है कि मुसलमानों को यह मंजूर न था. यह भी दिलचस्प है कि हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के जन्मदाता सावरकर वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि भारत में दो राष्ट्र हैं – हिन्दू और मुस्लिम. लंदन में अध्ययनरत चौधरी रहमत अली ने सन् 1930 में पहली बार मुस्लिम बहुल देश के लिए पाकिस्तान का नाम सुझाया था. कई इतिहासविदों का मानना है कि सावरकर के द्विराष्ट्र सिद्धांत ने ही जिन्ना को पाकिस्तान की मांग करने की प्रेरणा दी.

विभाजन को याद करने के मोदी के आव्हान का क्या नतीजा होगा?

निश्चित तौर पर इससे मुसलमानों के प्रति नफरत बढ़ेगी. यह प्रयास भी किया जाएगा कि विभाजन का पूरा दोष नेहरू के सिर पर मढ़ दिया जाए. इस समय जिस तरह की नफरत हमारे देश में फैली हुई है उसे देखकर दिल दहल जाता है. हाल में एक मुस्लिम रिक्शेवाले को ‘जय श्रीराम‘ कहने के लिए मजबूर करने के लिए सड़क पर पीटा गया और उस बीच उसकी लड़की चिल्ला-चिल्लाकर रहम की भीख मांगती रही. क्या हम यह भूल सकते हैं कि जिस स्थान से हमारे देश के सत्ताधारी शासन चलाते हैं उससे कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर खुलेआम ‘गोली मारो‘ और ‘काटे जाएंगे‘ जैसे नारे लगाए गए थे.

डॉ राम पुनियानी

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

पीएम मोदी की नज़र पाकिस्तान पर ! 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' | भारत विभाजन | hastakshep

Why Remember Partition Horror? Asks Dr Ram Puniyani