विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष

आज है विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस

आज विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस (World Book and Copyright Day 2023) है। इसके बहाने कुछ अपनी बात कही जाए। पहला सवाल तो यही है कि मैंने किताबें क्यों लिखीं ? मैं हक़ीक़त में किताबें लिखना नहीं चाहता था। मुझे किताबें पढ़ने का शौक़ था और उन पर बातें करने की आदत थी। जीवन में आई मुसीबतों और ख़ाली समय ने मुझे पुस्तक लेखक बना दिया। मुसीबतें न आतीं तो मैं किताबें नहीं लिखता।

मथुरा में माथुर चतुर्वेद संस्कृत महाविद्यालय से सिद्धांत ज्योतिषाचार्य करने के बाद जेएनयू में दाख़िला लेने की कोशिश की और उसमें सफलता मिल गयी। लेकिन मुसीबत यह थी कि मेरे पिता के पास दाख़िले या पढ़ाने के लिए पैसे नहीं थे। दाख़िला लेने जब गया तो मित्र हरिवंश चतुर्वेदी से दो सौ रुपए उधार लिए, जिनको आज तक चुका नहीं पाया हूँ! उन रुपयों से जेएनयू जाकर एम.ए. में दाख़िला लिया।

जेएनयू जाकर पता चला स्कॉलरशिप तो अक्टूबर के आसपास एक साथ चार महीने की आएगी। मुश्किल यह थी कि मेरे पास पहनने के ठीक से कपड़े नहीं थे, होस्टल में बिछाने के लिए बिछाना नहीं था।

मैं जेएनयू जब गया तो मेरे पास माँ का उसकी पुरानी साड़ी से काटकर बनाया एक छोटा थैला था और उस थैले में मेरे सर्टीफिकेट थे। दो जोड़ी बेमेल कपड़े थे, दो पायजामा और दो पूरे हाथ वाली क़मीज़।

जुलाई 1979 में दाख़िला ले लिया था। रोज़मर्रा के हाथ खर्च, मैस बिल आदि के लिए एक भी पैसा मेरे पास नहीं था। किसी से मदद भी नहीं ले सकता था, ऐसी अवस्था एक और क़र्ज़ लिया मथुरा के अपने संगठन जन सांस्कृतिक मंच से। वहां से पाँच सौ रुपए उधार लिए, रत्नेश चतुर्वेदी ख़ज़ांची हुआ करते थे। उन्होंने पैसे उधार दे दिए। सवाल यह था कि यह क़र्ज़ चुकाया कैसे जाएगा ? उस अवस्था में मेरे दिमाग़ में विचार आया कि ज्योतिष पर किताबें लिखी जाएँ। मथुरा के एक प्रकाशक से बात हो गईं, उससे पाँच किताबें लिखने का सौदा तय हुआ। मैंने परिश्रम करके दो किताबें जल्दी दे भी दीं, उससे जन सांस्कृतिक मंच का क़र्ज़ उतारने में सफलता मिल गयी। इतने में ही अक्टूबर आ गया और मुझे जल्दी ही चार महिने की स्कॉलरशिप एक साथ मिल गई और मैंने तुरंत ज्योतिष की किताबें लिखना बंद कर दिया।

सबसे पहले जो दो किताबें लिखीं उनके नाम हैं 1 जन्मकुंडली दर्पण, 2.वर्षफल ज्योतिष। ये दो किताबें मैंने आर्थिक अभाव में लिखीं। मक़सद यह था कि सरल हिन्दी में आम व्यक्ति जन्मपत्री बनाना और वर्षफल बनाना सीख जाय।

मेरे कॉलेज की परंपरा थी वहाँ से ज्योतिष के धुरंधर पैदा हुए,संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में सिद्धांत ज्योतिष में टॉपर हमारे कॉलेज से ही आते थे। मेरे भी सिद्धांत ज्योतिष में सर्वोच्च अंक थे। पर मैंने ज्योतिष न पढ़ाने और पंडिताई न करने का फ़ैसला कर लिया था। जिसके कारण जेएनयू में हिन्दी एम.ए. में दाख़िला लिया। महत्वपूर्ण बात थी कि ज्योतिष पर मेरे कॉलेज के किसी भी छात्र की ये सर्वप्रथम प्रकाशित पुस्तकें थीं। मेरे बाद तो अनेक लोगों ने लिखा। ज्यों ही मेरा आर्थिक संकट ख़त्म हुआ मैंने ज्योतिष पर किताबें लिखनी बंद कर दीं। यदि जारी रखता तो बहुत पैसा कमा सकता था।

बाद में जब मैं 22 अप्रैल सन् 1989 में कलकत्ता विश्वविद्यालय लेक्चरर होकर चला आया तो मेरी पहली किताब थी ‘दूरदर्शन और सामाजिक विकास’। यह पुस्तक मैंने स्वेच्छा से पी.एच.डी. ख़त्म होने के बाद लिखी थी।

सन् 1986 में जे.एन.यू. में पी.एच.डी. जमा करने के बाद समझ में नहीं आ रहा था कि किस दिशा में पढ़ाई की जाय, मुझे हिन्दी आलोचना से विरक्ति थी। मैंने मित्र और आलोचक सुधीश पचौरी से पूछा कि आगे किस क्षेत्र पर काम करूँ तो उन्होंने कहा मास मीडिया पर काम करो। उसके बाद मैंने सबसे पहले टीवी पर किताब लिखने की योजना बनाई और काम में लग गया।

उन दिनों टीवी बहुत कम समय आता था लेकिन यह उदीयमान क्षेत्र था। मैं बिना किसी की मदद के उस दिशा में आगे बढ़ गया और सन् 1989 में टेलीविजन पर मेरी पहली किताब लिख गई। नौकरी लगने के बाद उस किताब को कलकत्ते के डब्ल्यू न्यूमैन एंड कंपनी ने छापा।

ज्योतिष पर किताब लिखी वह भी पाठ्यक्रम के बाहर थी। टेलीविजन पर किताब लिखी वह भी पाठ्यक्रम के बाहर थी।लेकिन ये तीनों किताबें खूब बिकीं और पढ़ी गई। बाद में किताबों के लिए वे ही विषय चुने जो पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाए जाते थे। इसके दो लाभ हुए, पहला, शिक्षा जगत में नई सामग्री आई, दूसरा, मास मीडिया के पाठ्यक्रम बदले और वे विषय शामिल किए गए जिन पर मैंने सबसे पहले लिखा था।

किताब लिखने का प्रधान कारण था कि मेरे पास दो घंटे विश्वविद्यालय में पढ़ाने के बाद बाइस घंटे ख़ाली थे। ख़ाली समय का कैसे उपयोग करें ? यहाँ से पुस्तक लेखन आरंभ हुआ।

मैंने बाज़ार या शिक्षकों की माँग पर कभी नहीं लिखा, मैं आमतौर पर मांग-पूर्ति के सिद्धांत के आधार पर किताब लिखने का विरोधी हूँ। और इसका मैंने अक्षरशः पालन भी किया। पैसे और यश के लिए भी नहीं लिखा। पत्रिकाओं में बहला-फुसलाकर समीक्षा छपवाने की कभी कोशिश नहीं की। अपनी पुस्तक पाठ्यक्रम में लगवाने के लिए कभी लॉबिंग नहीं की। यह सिलसिला आज तक जारी है।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

World Book and Copyright Day: World Book Day: Why did I write books?