विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस- भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मामले में गंभीर चुनौतियां
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस- भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मामले में गंभीर चुनौतियां

World Mental Health Day in Hindi - Serious Challenges in Mental Health in India
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर। एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत को मानसिक स्वास्थ्य के मामले में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया भर में 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है।
कास्मोस इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज (सीआईएमबीएस) द्वारा किए गए इस अध्ययन में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों का सामान्य व्यवहार और विचारों का आकलन करने के लिए दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 529 से अधिक लोगों को शामिल किया गया।
70 प्रतिशत से अधिक लोगों को पर्याप्त उपचार नहीं मिल रहा सीआईएमबीएस के अध्ययन के अनुसार, इसमें शामिल 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे मानसिक रूप से पीड़ित जिन लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, उनमें से 70 प्रतिशत से अधिक लोगों को पर्याप्त उपचार नहीं मिल रहा है। 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे ऐसे लोगों को जानते हैं, जिन्होंने शादी से पहले अपने पति या पत्नी से मानसिक बीमारी की बात छिपाई। जबकि 53 प्रतिशत लोगों ने अपने नियोक्ताओं से इस तरह की बीमारी का खुलासा नहीं किया।
सीआईएमबीएस के अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष निम्नवत् हैं: -
सर्वे में शामिल 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि निजी अथवा पेशेगत जीवन में ऐसे किसी न किसी व्यक्ति को जानते हैं, जिसे कोई न कोई मानसिक या मनोवैज्ञानिक समस्या है। इनमें से 70 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनकी जानकारी में मानसिक बीमारी से ग्रस्त जो व्यक्ति हैं वह समुचित चिकित्सा नहीं करा रहे हैं।
- 39 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि ऐसे लोग को जानते हैं जिन्होंने शादी से पूर्व अपने होने वाले अपने पति या पत्नी से अपनी बीमारी की बात छिपाई और 53 प्रतिशत लोगों ने अपनी बीमारी की बात अपने नियोक्ता से छिपाई।
- इस अध्ययन से पता चलता है कि मानसिक बीमारियों की व्यापकता को लेकर गंभीर भ्रांति है। करीब 55 प्रतिशत से अधिक लोगों का मानना है कि आबादी में मानसिक रोगों की व्यापकता केवल एक या दो प्रतिशत ही है।
- 89 प्रतिशत ने कहा कि मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों का अधिक उपहास उड़ाया जाता है, उनके साथ भेदभाव होता है और उन्हें नीचा दिखाया जाता है जबकि 63 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इन मानसिक बीमारियों के कारण मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए सम्मानजनक जीवन जीना मुश्किल होता है।
- 94 प्रतिशत लोगों को मानना है कि मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक को हटाने के लिए कुछ खास प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
- 80 प्रतिशत लोगों का मानना है कि पूर्वाग्रह एवं कलंक के कारण मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों का समुचित इलाज नहीं हो रहा है और पूर्वाग्रहों एवं भ्रांतियो के कारण मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों की स्थिति गंभीर होती जाती है।
- 86 प्रतिशत लोगों को किसी मानसिक हेल्प लाइन के बारे में पता नहीं है। - 65 प्रतिशत लोगों का मानना है कि जागरूकता के अभाव के कारण मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों का समुचित इलाज नहीं हो पाता है।
सीआईएमबीएस के इस सर्वे से पता चलता कि मानसिक बीमारी को कलंक मानने की समस्या लगातार कायम है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और रोगी लंबे समय से जूझते आ रहे हैं।
मानसिक स्वास्थ्य नीति में सुधार पर काम करने वाले और इस अध्ययन के समन्वयक, वकील प्रणव मित्तल ने कहा,
"चौंकाने वाली बात यह है कि 89 प्रतिशत लोगों का मानना था कि मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों का उपहास उड़ाया जाता है, उनके साथ भेदभाव किए जाने की संभावना होती है, या समाज उन्हें हेय दृष्टि से देखता है।"
गरिमामय जीवन व्यतीत करना मुश्किल बना देती है मानसिक बीमारी प्रणव मित्तल ने कहा,
"63 प्रतिशत लोगों का मानना था कि मानसिक बीमारी गरिमामय जीवन व्यतीत करना मुश्किल बना देती है। इन्हीं सब कारणों से 89 प्रतिशत लोगों का सोचना है कि मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों के प्रति पूर्वाग्रह और दुर्भावना इतना अधिक है कि ये लोगों को इलाज कराने से रोक देते हैं।"
भारत में वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ (डब्ल्युएफएमएच) पहल का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ मनोचिकित्सक एवं कास्मोस इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज (सीआईएमबीएस) के निदेशक डॉ. सुनील मित्तल कहते हैं,
"क्लिनिकल अध्ययनों से संकेत मिलता है कि मानसिक या व्यवहार संबंधी डिसआर्डर कहीं भी पांच प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत लोगों को उनके जीवन में कभी भी प्रभावित कर सकता है। फिर भी, लोगों का मानना है मानसिक बीमारी बहुत ही दुर्लभ है।"
उन्होंने कहा,
"55 प्रतिशत से अधिक लोगों का मानना है कि यह सिर्फ 0.1 प्रतिशत से 2 प्रतिशत लोगों में ही होता है, जो कि वास्तविकता से 10 गुना से भी कम है। यहां तक कि मेट्रो शहरों में भी, मानसिक बीमारियों से प्रभावित आधे से भी कम लोगों को पर्याप्त उपचार मिल पाता है। मानसिक बीमारी को गुप्त रखने और इसे लेकर अपराध की भावना महसूस करने की प्रवृत्ति अब भी जारी है।"
गंभीर मानसिक बीमारी को भी छिपाते हैं लोग
सीआईएमबीएस में कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ. शोभना ने कहा,
"हमारे पास अक्सर ऐसे मानसिक रोगी आते हैं जो अपनी बीमारी का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने से डरते हैं। हालांकि गोपनीयता बनाए रखना हमारी दिनचर्या का हिस्सा है और हमारे लिए भी महत्वपूर्ण है, लेकिन हमने देखा है कि शीर्ष कंपनियों के प्रमुखों से लेकर सार्वजनिक हस्तियों सहित सभी पृष्ठभूमि और क्षेत्रों के गंभीर मानसिक बीमारी या यहां तक कि डिप्रेशन, एंग्जाइटी और तनाव जैसी सामान्य समस्याओं से पीड़ित रोगी भी अपनी बीमारी को गुप्त रखना चाहते हैं।"
उन्होंने कहा,
"यहां तक कि मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोग अपने पति या पत्नी से या सहकर्मियों से भी अपनी बीमारी को गुप्त रखना चाहते हैं, जिसके कारण रिश्तों में अविश्वास की भावना पैदा होती है और वे अपने आसपास के लोगों से सहयोग लेने से वंचित रह जाते हैं। इसे कलंक न मानते हुए, जरूरी मदद लेकर और इसका इलाज कराकर मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को सक्रिय कर उनकी गरिमा को बहाल किया जा सकता है।"
सीआईएमबीएस की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक मिताली श्रीवास्तव ने कहा,
"हम देखते हैं कि यह समस्या सिर्फ मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनके आसपास के लोगों तक भी फैली हुई है। 47 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि मानसिक या मनोवैज्ञानिक संकट में अन्य लोगों ने इसके खुद ठीक हो जाने की उम्मीद में रोगी का इलाज नहीं कराया। केवल आठ प्रतिशत लोगों ने ही महसूस किया कि किसी प्रोफेशनल विशेषज्ञ से वास्तव में संपर्क किया जाना चाहिए। लेकिन यह बहुत छोटा प्रतिशत है, जो कि बहुत चिंताजनक है। 86 प्रतिशत से अधिक लोगों को किसी भी राष्ट्रीय हेल्पलाइन के बारे में जानकारी नहीं थी, जिससे वे मदद ले सकते थे। इस तरह मानसिक रोगियों को स्वस्थ करने में देखभाल करने वालों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर अन्य गतिविधियों के अलावा, सीआईएमबीएस ने मनोवैज्ञानिक संकट से उबरने में मदद करने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर '9717402402' जारी किया है, जिसके तहत मनोचिकित्सक या प्रशिक्षित प्रोफेशनल उन लोगों का मार्गदर्शन करते हैं।
(साभार-देशबन्धु)


