विस्थापन के खिलाफ छत्तीसगढ़ किसान सभा ने निकाली रैली
विस्थापन के खिलाफ छत्तीसगढ़ किसान सभा ने निकाली रैली
संजय पराते
रायपुर। सरगुजा जिले के लुंड्रा तहसील में कुंदी गांव को केन्द्र बनाकर “गागर फीडर जलाशय” के निर्माण की परियोजना के खिलाफ छत्तीसगढ़ किसान सभा ने एक विशाल रैली 17 मार्च को आयोजित की. इस रैली में 1000 से ज्यादा ग्रामीणों ने हिस्सेदारी की, जिसमें अधिकाँश आदिवासी और महिलाएं थी.
इस विशाल जलाशय के निर्माण का प्रस्ताव 10 साल पुराना है. प्रस्ताव के अनुसार, इससे 11 गांवों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा. लेकिन वास्तविकता यह है कि जलाशय निर्माण से 7 गांव पूर्णतः और कई आंशिक डूबत में आने वाले हैं और 10000 आदिवासी विस्थापित होंगे. विस्थापितों के पुनर्वास की कोई कारगर योजना सरकार के पास नहीं है.
सबको मालूम है कि असली मकसद खेती को सींचना नहीं, पूंजीपतियों के कारखानों को सींचना है और इसके लिए सैकड़ों किमी. लंबी नहरें बनाई जाने वाली है, जो झारखंड की सीमा तक जायेगी. अतः इस जलाशय के निर्माण का विरोध शुरू से हो रहा है.
पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में यह एक प्रमुख मुद्दा था. तब कांग्रेस और भाजपा, दोनों ने यह आश्वासन दिया था कि जलाशय बनाने नहीं दिया जाएगा. विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई, लेकिन क्षेत्र से कांग्रेस का प्रत्याशी जीता.
लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से भाजपा का सांसद बना और केन्द्र में भाजपा की सरकार. माकपा ने भी दोनों चुनाव लड़े थे, लेकिन पार्टी के इस मुद्दे पर ‘संघर्ष करने’ के आह्वान पर आम जनता ने ध्यान नहीं दिया.
आज कांग्रेस-भाजपा दोनों ही इस मुद्दे पर आपराधिक चुप्पी साधे हुए हैं और भाजपा सरकार जलाशय निर्माण की ओर बढ़ रही है. राज्य सरकार में भाजपा के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा ने तो बाकायदा इस परियोजना का शिलान्यास तक कर डाला है.
इस परियोजना की स्वीकृति के लिए फर्जीवाड़े भी कम नहीं किये गए हैं. सरगुजा 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, जहां पेसा क़ानून लागू है. लेकिन आदिवासी समुदाय की सहमति दिखाने के लिए ग्राम सभाओं के ‘फर्जी प्रस्ताव’ पारित कर लिए गए हैं.
एक पंचायत के प्रस्ताव पर एक महिला सरपंच के हस्ताक्षर दर्शाए गए है, जबकि उस पंचायत में कभी भी कोई महिला सरपंच नहीं बनी. आदिवासियों को पूरे फर्जीवाड़े का पता तब चला, जब भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी फर्जी तरीके से पूर्ण करके मुआवजा लेने के लिए नोटिस थमाए जाने लगे. आदिवासियों की सिंचित जमीन को असिंचित बताकर एक लाख रूपये प्रति एकड़ की औसत दर से मुआवजा राशि घोषित की गई है.
आदिवासियों की भूमि छीनने की इस प्रक्रिया में न तो वनाधिकार क़ानून और न ही भूमि अधिग्रहण क़ानून के प्रावधानों का पालन किया गया है. सामाजिक प्रभाव आंकलन की अनिवार्य प्रक्रिया को भी दरकिनार कर दिया गया. जलाशय निर्माण रूकवाने की हर कोशिश जब कांग्रेस-भाजपा के दरवाजे जाकर समाप्त हो गई, तब आदिवासियों को धोखाधड़ी का अहसास हुआ और उन्होंने किसान सभा के झंडे तले संघर्ष का ऐलान किया.
रैली के पूर्व किसान सभा ने एक व्यापक अभियान चलाकर ग्रामीणों को लामबंद करने का प्रयास किया. दसियों गांवों में बैठकें की गई. योजना के कागजात निकलवाकर ग्रामीणों को वास्तविकता की जानकारी दी गई. किसान सभा का प्रयास सफल रहा और पचासों किमी. दूर से पैदल चलकर सैकड़ों आदिवासी रैली में शामिल हुए. इसका नेतृत्व अ.भा. किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला, वित्त सचिव पी. कृष्णप्रसाद, छ.ग. किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और सचिव ऋषि गुप्ता, आदिवासी एकता महासभा के राज्य महासचिव बालसिंह आदि कर रहे थे. नेताओं ने आमसभा को भी संबोधित किया.
मुख्य वक्ता के रूप में हन्नान मोल्ला ने इस देश में सरकारों द्वारा कृषि क्षेत्र में लागू की जा रही ‘उदारीकरण’ की नीतियों के दुष्प्रभावों को रेखांकित किया तथा किसान सभा के देशव्यापी संघर्षों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि किस तरह कारपोरेटों के हित में इस देश के किसानों व आदिवासियों की जमीन को लूटा जा रहा है और इस लूट के शिकार छत्तीसगढ़ और सरगुजा के किसान भी हो रहे हैं.
उन्होंने छत्तीसगढ़ में वनाधिकार कानून और मनरेगा के लचर क्रियान्वयन की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि पूरे देश के किसान बदहाल हैं. वे फसल पैदा करते हैं, लेकिन सरकार लाभकारी मूल्य नहीं देती. खेती घाटे का सौदा है और किसान क़र्ज़ के फंदे में फंसकर आत्महत्या करने पर मजबूर है. किसान आत्महत्याओं के मामले में छत्तीसगढ़ अव्वल है.
किसान सभा की वैकल्पिक नीतियों को पेश करते हुए उन्होंने कहा कि किसान सभा का आह्वान है कि किसान अब आत्महत्या नहीं करेंगे, बल्कि कृषि विरोधी नीतियों को बदलने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करेंगे. कुंदी में जलाशय निर्माण व विस्थापन के खिलाफ संघर्ष किसान सभा के देशव्यापी भूमि संघर्ष का हिस्सा है. इस लड़ाई को और तेज करने का उन्होंने आह्वान किया.


