वेलेंटाइन डे और भगतसिंह को फाँसी की सजा का संघी कुत्साप्रचार
वेलेंटाइन डे और भगतसिंह को फाँसी की सजा का संघी कुत्साप्रचार
शहीद भगतसिंह की विचारधारा (ideology of Shaheed Bhagat Singh) से संघ आज भी खौफ खाता है पिछले कुछ वर्षों से वेलेंटाइन डे (Valentine's Day)के दिन संघ अपने परम्परागत तरीके मार पिटाई के अलावा विरोध (the protest of Valentine's Day) का एक ओर तरीका प्रयोग में ला रहा है। उसने इस दिन को किसी ओर दिन के रूप में पेश करने की भी कोशिश शुरू कर दी है।
संघ के कुछ लोग इस दिन मातृ-पितृ पूजन दिवस (Matra-pitra poojan diwas) मनाने की वकालत करते हैं तो कुछ ये प्रचार कर रहे हैं कि इस दिन 1930 में शहीद भगतसिंह और उनके साथियों को फाँसी की सजा सुनाई गई थी। शुरूआती कुछ सालों में तो ये बेशर्मी से इसी दिन को भगतसिंह को फाँसी की सजा देने की तारीख (date of the death sentence of Shaheed Bhagat Singh) बताते थे पर बाद में इनका ये झूठ जब चला नहीं तो इन्होने ये प्रचार चालू किया कि इस दिन उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी।
इतिहासबोध से रिक्त मध्यम वर्ग के बीच इस प्रचार का अच्छा खासा प्रभाव भी हो चुका है। यहां तक कि एक अख़बार राजस्थान पत्रिका ने तो बाकायदा इसको एक बड़ी सी तस्वीर के साथ शेयर किया है। जैसी कि आशा थी, उस पोस्ट को लाखों लाइक और शेयर भी मिल गये।
भगतसिंह के केस की सच्चाई The truth of Bhagat Singh's case
हकीकत ये है कि भगतसिंह के केस का ट्रायल (Bhagat Singh case trial) ही 5 मई 1930 में शुरू हुआ था। 7 अक्टूबर 1930 को उन्हें फांसी की सजा का ऐलान हुआ व 23 मार्च 1931 को फाँसी दे दी गई। अब सवाल ये उठता है कि संघ ने भगतसिंह की शहादत को ही इस अफवाह के लिए क्यों चुना? शहीद भगतसिंह ने अपने जीते जी साम्प्रदायिकता की राजनीति (साम्प्रदायिकता की राजनीति) का जमकर विरोध किया, देश के गरीबों, मेहनतकशों को क्रान्ति के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। नौजवानों को क्रान्ति का सही रास्ता दिखाया। ऐसे में शहीद भगतसिंह की विचारधारा से संघ आज भी खौफ खाता है। उनकी किताबों के दर्शन मात्र से संघी कार्यकर्ताओं की हालत खराब हो जाती है। लेकिन शहीद भगतसिंह आज भी देश के युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं, संघ के लिए ये सम्भव नहीं है कि उनके विरूद्ध कोई कुत्साप्रचार कर सके। इसलिए संघ ने बीच का रास्ता निकाला है कि शहीद भगतसिंह की जिन्दगी से जुड़े तथ्यों से छेड़छाड़ की जाये। इससे वो एक तीर से दो निशाने लगा सकते हैं, एक तो अपने आप को इन शहीदों से जोड़ लेते हैं, दूसरी ओर इसी बहाने अपने वेलेंटाइन डे के विरोध को भी जायज ठहरा देते हैं।
हालिया कुछ वर्षों में मध्यम वर्ग के नौजवानों के बीच अपना आधार बढ़ाने के लिए भी संघ सीधे तौर पर मार-पिटाई (खासकर महानगरों में) के तरीकों की जगह ऐसे कुत्साप्रचार के हथकण्डे आजमा रहा है। एक झूठ को सौ बार बोलकर सच साबित करने की नीति पर काम करते हुए पिछले कुछ वर्षों में इन्होने इस तथ्य को आम नौजवानों के बीच पैठा भी दिया है। इसलिए गोएबल्स शैली के इस झूठ का पर्दाफाश जरूरी है। ना सिर्फ शहीदे-आज़म भगतसिंह की विचारधारा की रक्षा के लिए बल्कि इतिहासबोध की रक्षा के लिए भी।
(सत्यनारायण, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। उनकी यह टिप्पणी हस्तक्षेप पर प्रथम बार February 14,2015 07:07 को प्रकाशित हुई थी)
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