व्यापमं घोटाले को दबाने की कोशिशें जारी हैं- वामदलों का आरोप
व्यापमं घोटाले को दबाने की कोशिशें जारी हैं- वामदलों का आरोप
भोपाल। वामपंथी दलों ने मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार पर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले की जांच को दबाने और अपराधियों को बचाने की कोशिशें जारी रखने का आरोप लगाया है। वामदलों ने कहा है मध्यप्रदेश में सघन स्थानीय आंदोलनों के बाद प्रदेश की 4 वामपंथी पार्टियां 6 अक्टूबर को भोपाल में एक रैली कर वैकल्पिक नीतियों को रखेंगे और उनके लिए संघर्ष को जारी रखने के अगले चरण की घोषणा करेंगे।
राजधानी भोपाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव बादल सरोज, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राज्य सचिव अरविंद श्रीवास्तव, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया(कम्युनिस्ट) के राज्य सचिव प्रताप सामल और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीआई-माले) लिबरेशन के देवेन्द्र सिंह चौहान ने संयुक्त पत्रकारवार्ता में कहा, "अब तक के ज्ञात सबसे बड़े घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपी जा चुकी है। लेकिन सीबीआई द्वारा उच्च न्यायालय में यह कहना कि मध्य प्रदेश सरकार जांच में सहयोग नहीं कर रही है, इस आम धारणा की पुष्टि करता है कि प्रदेश सरकार इस घोटाले को दबाने और अपराधियों को बचाने के लिए किसी भी तरह के अपराध को अंजाम दे सकती है।"
उन्होंने आगे कहा कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के शीर्ष राजनैतिक, प्रशासनिक नेतृत्व की लिप्तता और 49 संदिग्ध मौतों वाले अब तक के सबसे बड़े घोटाले को तार्किक अंत तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि सीबीआई जांच की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय करे और इससे संबंधित मुकदमों की सुनवाई मध्य प्रदेश से बाहर किसी सक्षम न्यायालय में की जाए।
वामपंथी नेताओं ने कहा, "सीबीआई द्वारा उच्च न्यायालय में दिए गए बयान के बाद अब और आवश्यक हो जाता है कि जांच पूरी होने तक शिवराज सिंह मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दें।"
वामपंथी नेताओं ने आगे कहा, "डीमेट की जांच के लिए भी सीबीआई को समुचित अमला तथा संसाधन मुहैया कराया जाए। गड़बड़ी अवधि के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रभार में रहे सभी मंत्रियों और प्रमुख सचिवों को भी अभियुक्त बनाया जाए।"
उन्होंने झाबुआ के पेटलावद में हुए विस्फोट पर सरकार के रवैए पर चिंता जताई और कहा, "एक पखवाड़े से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी जांच आगे नहीं बढ़ी है। मुख्य आरोपी को गिरफ्तार करना तो दूर, सारे प्रयत्न उसे बचाने और मामले को खुर्दबुर्द करने की हो रही है। इस मामले को भी सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए।"
वाम नेताओं ने कहा, “अब तक के सर्वाधिक भ्रष्ट राजनैतिक नेतृत्व के चलते प्रदेश में हर स्तर की नौकरशाही पूरी तरह अनियंत्रित, अक्षम, अकर्मण्य और बेईमान हो गयी है। भीषण तेजी से बढ़ती महंगाई को काबू करने की कोई कोशिश तक नहीं की जा रही है, वहीँ 150 रुपयों की अपमानजनक निराश्रित पेंशनों के भुगतान 11-11 महीनों से नहीं हुए हैं। एक साल से तीन साल तक पुराने मनरेगा के भुगतान लटके हुए हैं। सूखे जैसी स्थिति के असर के बावजूद मनरेगा के काम नहीं कराये जा रहे हैं। पंचायत प्रणाली को अनिर्वाचित नौकरशाही की जकड़न में पहुंचाया जा रहा है। खाद्य सुरक्षा और सस्ते राशन का वितरण एक और व्यापमं बन गया है। निजी विद्यालयों, महाविद्यालयों के माफिया को लूटपाट के मामले में खनन माफिया के दर्जे तक पहुंचा दिया गया है।“
उन्होंने कहा, “ठप्प पड़ी विधानसभा में आनन फानन में पारित किये गए कानूनों में से एक क़ानून श्रम कानूनों में भारी भरकम बदलाव का है। प्रदेश की श्रम शक्ति को बंधुआ दासता की स्थिति में पहुंचा दिया गया हैं। अध्यापकों के शांतिपूर्ण आंदोलन पर किया गया भीषण दमन, प्रदेश भर में सभाओं, जलूसों पर लगाई गयी प्रशासनिक बंदिशें संविधान के बुनियादी अधिकारों का हरण कर रही हैं। मध्य प्रदेश देश का ऐसा प्रदेश हो गया है जहां पूरे प्रदेश में धारा 144 लगी हुयी है/ लगी हुयी होने का दावा प्रशासन करता है। एन सी आर बी की रिपोर्ट के अनुसार दुष्कर्म और नारी उत्पीड़न के मामले में प्रति दिन 14 रिपोर्ट दर्ज हुए मामलों के साथ एक साल में इसमें 358% की वृद्धि हुयी है। ग्रामीण इलाकों में दलित आदिवासियों को लगभग मध्य युगीन दशा में पहुँचा दिया गया है। नगरों में भी उनकी स्थिति शोचनीय बनी हुयी है। अल्पसंख्यकों के विकास और उनके अधिकारों की स्थिति की भाजपा के साम्प्रदायिक सोच को देखते हुए कल्पना की जा सकती है।“
वाम दलों की प्रेस कांफ्रेंस की कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें –
बिजली और बेदखली में सरकारी अमले का दुरुपयोग
कारपोरेटों को बेशकीमती जमीन देने के लिए नागरिकों तथा किसानों की बेदखली और विस्थापन तथा गैर सरकारी फर्जी बिल वसूली के लिए पुलिस तथा प्रशासन का दुरुपयोग और बेजा इस्तेमाल चिंताजनक तीव्रता तक पहुँच गया है।
किसान आत्महत्यायें
प्रदेश में किसानों की आत्महत्यायें रुकने को नहीं आ रही हैं। आत्महत्या के मामले में मप्र पांचवे से तीसरे स्थान पर पहुँच गया है।
केंद्र व राज्य सरकारों की नीतियों ने कृषि स्थिति में बहाली की सभी सम्भावनायें समाप्त कर दी हैं।
हर जगह भाजपा, फिर दोषी कौन?
केंद्र और राज्य तथा स्थानीय निकायों तक में भाजपा का वर्चस्व होने तथा अधिकारियों और कर्मचारियों में से उसी अमले को मुख्य पदों पर रखे जाने जो आरएसएस से जुड़ा है, के बाद अब यह सत्तागिरोह अपनी विफलताओं के लिए कोई बहाना नहीं बना सकता। अपने इस वर्चस्व का उपयोग यह गिरोह जनता को राहत देने या विकास करने की बजाय उसे विभाजित करने तथा साम्प्रदायिक विषाक्तता को फैलाने में कर रहा है।
विनाशकारी नीतियों को जारी रखके कोई सुधार संभव नहीं है।
इन्हीं नीतियों पर पूरी दीवानगी से अमल करके राजनीतिक हाराकीरी करने वाली नेतृत्वहीन, दिशाहीन कांग्रेस इन सब का विरोध करने की ऊर्जा गँवा चुकी है, नैतिक अधिकार खो चुकी है। गुड़ खाते हुए गुलगुलों से परहेज का नाटक यूं भी अधिक समय नहीं चल सकता।
नीतियों के विकल्प के लिए संघर्ष
नीतियों में बदलाव के बिना इन दुष्कर हालात देश व जनता का बाहर आ पाना संभव नहीं है।
सिर्फ वामपंथी दल हैं जो इस स्थिति से बाहर आने वाली नीतियां प्रस्तुत करते रहे हैं। उन्हें हासिल करने के जनता की व्यापक्तम् एकता बनाते रहे हैं। मध्यप्रदेश में सघन स्थानीय आंदोलनों के बाद प्रदेश की 4 वामपंथी पार्टियां 6 अक्टूबर को भोपाल में एक रैली कर वैकल्पिक नीतियों को रखेंगे और उनके लिए संघर्ष को जारी रखने के अगले चरण की घोषणा करेंगे।
6 अक्टूबर को 11 बजे से इक़बाल मैदान में होने वाली वाम दलों की रैली को सीपीआई(एम) पोलिट ब्यूरो सदस्या, पूर्व सांसद सुभाषिणी अली, सीपीआई केंद्रीय कार्यसमिति सदस्य पूर्व सांसद अजीज पाशा, एसयूसीआई(सी) केंद्रीय समिति सदस्य सत्यवान संबोधित करेंगे।


