शांति के लिए महिलाओं की वैश्विक पहल
शांति के लिए महिलाओं की वैश्विक पहल
शांति के लिए महिलाओं की वैश्विक पहल
कुमार कृष्णन
जलगांव स्थित गांधी तीर्थ में संपन्न हुए अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में सभी देशों की महिलाओं से वैश्विक शांति और सामाजिक न्याय के लिए एकजूट होने की अपील की गयी है।
सम्मेलन के आखिरी दिन 'जलगांव घोषणा पत्र' के नाम से जारी वक्तव्य में कहा गया है कि हम महिला समाजकर्मी दुनिया भर में हर व्यक्ति के सम्मान को सुनिश्चत करने के साथ सभी स्त्री पुरूषों को शांति से रहने के अधिकारों को जानने और उसे हासिल करने में सहयोग करेंगे। हम स्वीकार करते हैं कि मानव जीवन में महिलाओं के सहयोग के बिना शांति स्थापित नहीं हो सकती है। इसलिए उनके सशक्तीकरण के साथ हम पुरूषों को महिलाओं के साथ कंघे से कंघा मिलाकर सहयोग करने के लिए आमंत्रित और प्रोत्साहित करते रहेंगे। इसके लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के बीच सहयोग, संगठन और संपर्क तंत्र का सामाजिक सेतुबंघ बनाएंगे, जिससे अहिंसात्मक वैश्विक शांति और अहिंसक समाज का निर्माण हो सके।
जलगांव घोषणा पत्र में धरती के सम्मान और इसकी रक्षा के लिए शांतिमय और अहिंसक जीवन शैली को अपनाते हुए हर तरह के अन्याय, दमन और शोषण का विरोध जारी रखेंगे और आर्थिक व्यवस्था को पारदर्शी बनाने और संस्थागत हिंसा का विरोध करने के लिए अनवरत अग्रसर रहेंगे।
घोषणा पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि इस घरती पर सभी मुल्कों में सामजिक,आर्थिक और राजनीतिक अधिकार सभी के लिए है। इसलिए आज से हम स्वर्णिम, सुखद, शांतिमय और उर्वर भविष्य के लिए हम अपनी सक्रियता लगातार बढ़ाते रहेंगे।
ये घोषणा पत्र शांति अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में शामिल तीस से अधिक देशों की दो सौ से ज्यादा गांधी विचार में यकीन करनेवाली महिला समाजकर्मियों,विशेषज्ञों,पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने एकमत होकर पारित किया।
यह घोषणा पत्र इंटरनेशनल गांधीयन इनिसिएटिव फॅार ननभायलेंस एंड पीस की निदेशक जिल कार हैरिस ने रखा।
इंटरनेशनल गांधीयन इनिसिएटिव फॅार ननभायलेंस एंड पीस , एकता फाउंडेशन ट्र्स्ट, गांधी रिशर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित तीन दिनों से विराट अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में महिला समाजकर्मियों ने वैश्विक और स्थानीय स्तर पर सामाजिक न्याय और शांति कायम करने के लिए प्रशिक्षण, संगठन रचना और संघर्ष की भावी रणनीति पर गहन चिंतन मनन किया।
तीन के इस सम्मेलन में विभिन्न दस सत्रों में महिलाओं की सुरक्षा, स्वतंत्रता और उसके ससशक्तीकरण के साथ विभिन्न मुल्कों में लैगिक और आर्थिक समानता, महिला शांति सेना, महिला और सामाजिक आंदोलन, तनावपूर्ण क्षेत्रों में शांति अघ्ययन, महिला और स्थानीय अर्थव्यवस्था, कला के जरिये शांति प्राप्ति, महिला और अहिंसक आंदोलन के साथ 2020 में वैश्विक स्तर पर जयजगत अभियान महिला नेतृत्व विकास पर अलग—अलग संगठनों के प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों ने अपने अनुभवजन्य सुझावों से सम्मेलन को उपयोगी बनाया।
सम्मेलन के समापन के दिन जार्जिया, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा,भारत, नेपाल, केन्या, फिलीपीन्स,थाईलैंड, अजरबैजान, कंबोडिया, स्वीडन, अमेरिका, स्वीजरलैंड के साथ पुणे, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ, झारखंड, केरल,बिहार और दिल्ली युवा महिला समाजकर्मियों ने अपने— अपने क्षेत्रों में शांति, समानता, सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए महिलाओं द्वारा किए जा रहे आंदोलनों और अभियानों की चर्चा की और अपनी— अपनी कामयावी की मिशालों को भी पेश किया।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध गांधीवादी चंद्रशेखर धर्माधिकारी ने भारत में शिव को अर्धनारीश्वर का प्रतीक बताते हुए कहा कि महिलाओं को बेहतर समाज की रचना के लिए पुरूषों को अपने साथ जोड़ना जरूरी होगा। हमारा प्रयास कब्रिस्तान के सन्नाटे के लिए नहीं बल्कि स्त्री —पुरूष दोनों के लिए बेहतर समाज की रचना का होना चाहिए। दुनिया भर की महिलाओं से स्वतंत्रता के लिए हिम्मत दिखाने की अपील करते हुए कहा कि वे सुरक्षा के लिए किसी की मोहताज न बने।
उन्होंने गहरी चिंता जताते हुए कहा कि आज सबसे अधिक अत्याचार आदिवासी महिलाओं पर होता है क्योंकि उनकी कोई पहचान नहीं है। जबकि वे गैरआदिवासी और सभ्य कही जाने वाली महिलाओं की तरह गुलाम नहीं हैं।
सम्मेलन के आखिरी दिन वैश्विक एकजुटता के लिए गांधी तीर्थ के संस्थापक स्व. भंवरलाल जैन की स्मृति में गांधी तीर्थ परिसर में पीपल का वृक्ष लगाया गया। इस मौके पर एकता यूरोप की प्रधान मारग्रेट होगेनटोवियर, जैन एरिगेशन लिमिटेड के प्रमुख अशोक जैन, वरिष्ठ समाजकर्मी राजगोपाल पी.व्ही, मुंबई आईआईटी के चेयर प्रोफेसर सुदर्शन आयंगार, गौरी कुलकर्णी,गांधीरिसर्च फाउडेशन के डीन जॉन चेलादुरई, अनुभूति की निदेशक निषा जैन, आशा रमेश, प्रतिभा शिंदे, विभा गुप्ता, श्रद्धा कश्यप, यमुना वाई बसावा, चिरौंजी बाई, सुधा रेड्डी, मारग्रेट हुगेंटोबलर, बेटराइज कैनेडा, अइडा गैमवो, इर्रेने सेंटेगा, हदिर मैनचेस्टर ने बीरेन्द्र कुमार, प्रसून लतांत, आशा रमेश आदि ने हिस्सा लिया।
सम्मेलन के पहले दिन विश्व अहिंसा दिवस पर महात्मा गांधी से प्रेरणा लेते हुए दुनिया भर की संघर्षषील महिलाओं ने एकजूट होकर शांतिपूर्ण समाज बनाने का संकल्प लिया। इन महिलाओं ने शांति और अहिंसा के लिए वैश्विक एकजुटता दिखाने के लिए अपने- अपने मुल्क की मिट्टी वयोबृद्ध गांधीवादी नेता कृष्णम्माल जगन्नाथम् को सौंपी। साथ ही विभिन्न देशों में शांति कायम करने की कोशिश करनेवाली समाजकर्मियों ने पचास से अधिक भारतीय संर्घषशील महिलाओं को उनके कार्यो के लिए सम्मानित किया।
महिलाओं की सभा को संबोधित करते हुए कृष्णम्माल जगन्नाथन ने कहा कि महिलाएं क्या नहीं कर सकती हैं। उन्होंने पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता वनर्जी का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में न्याय के लिए सिंगुर में लोगों ने धनवलियों और को धूल चटा दी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के पास उनकी आंतरिक शक्ति इतनी है कि अगर वह वह अपने लक्ष्य को हासिल कर सकती हैं।
महिला महासम्मेलन के मकसद को उजागर करते हुए आईजीआईएनपी की निदेशक जिल कार हैरिस ने कहा कि आज की दुनिया कई गंभीर समस्याओं से जूझ रही है। ना सिर्फ हम अपने देश में बल्कि दो राष्ट्रों के बीच के युद्ध और अपना जड़ जमा चुके विवादों को भी देख रहे हैं जिसके मूल में असमानता और गरीबी छिपी हुई है। यहां भी कई प्रकार के विवाद हैं। इन संकटों का सामना करने के लिए विश्व भर की महिलाओ को अलग विचार के साथ वैश्विक रूप से साथ मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। मतभेद होना नई बात नहीं परन्तु हिंसा होना आम बात हो गई है। इसके जड़ में आर्थिक वृद्धि राष्ट्रीय विकास का मीडिया द्वारा अलग ढ़ंग से विवेचना करना भी है। संरचनात्मक हिंसा से मात्र कुछ लोगों के हित के लिए बहुत सारे लोगों को नुकसान पहुंचता है। हमें इस संरचनात्मक हिंसा को कम करने के उपाय ढ़ूंढ़ने होंगे ताकि वैश्विक स्तर पर युद्ध और विवाद की संभावना को कम किया जा सके।
सम्मेलन में मध्य प्रदेश की पुलिस महानिदेशक अनुराधा शंकर,सुमैया फरहत नसर, इरने सेनट्रीगगो, हरनुस खरत्याम,योहन्ना अलमेडिया, केरिना फुक्स,साउथेरी येम, रजिया पटेल,नफीसा बारोत, पामेला मतसारिया,थावोरी हुट, ओलिना अंब्रामसविली, लीन मार्टिसन, इडा ले ब्लंक, अवासोवा जामोरिया, लीली कुट्टी, संध्या, मंजू, कस्तुरी चेलता बाई, मीना, लक्ष्मी आदि ने अपने अनुभवों को साझा किया।


