रजनीश कुमार अम्बेडकर
यह बात फरवरी 2014 की है जब पूरे देश में 16वीं लोकसभा के चुनाव चल रहे थे। उसी समय मुझे अपने एक मित्र के साथ छत्तीसगढ़ के ‘धमतरी विधानसभा’ के ग्राम पंचायत ‘अरौद’ में अपने शोध कार्य के सिलसिले में जाने का मौका मिला।
रायपुर से धमतरी जाते वक्त रास्ते में धान के लहराते हुए खेत देखने को मिलें जिसको देखकर मन प्रसन्न हो गया। देश में सबसे ज्यादा आज धान का उत्पादन यही प्रदेश कर रहा है।

जब मैं अपने मित्र के साथ अरौद पहुँचा तो पता चला कि अरौद के आसपास लगभग 30 गांवों में एक साथ ‘रामचरित मानस का काव्यपाठ की प्रतियोगिता’ चल रही है। इसके अंतर्गत हर गांव में प्रतिदिन लगभग 40 टोलियाँ आती-जाती हैं। जिनको अपनी बातचीत काव्यात्मक ढंग से कहने का 40 मिनट का समय मिलता, प्रत्येक टोली 8 सदस्यों की होती है।
जब मैंने एक टोली के सदस्य राधे मोहन यादव से बातचीत की तो उसने बताया कि इस तरह की प्रतियोगिता पहले नहीं होती थी। अभी लगभग फरवरी 2004 से इसका चलन काफी बढ़ गया है। जो प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाती है।
जिस गांव में जहां पर प्रतियोगिता हो रही थी वहां पर तेज डी. जे. संगीत के माध्यम से रामचरित मानस के बारे में काव्यात्मक ढंग से बताया जा रहा था।
मेरा मानना है कि इस काम को ब्राह्मणवाद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लोग संगीत के द्वारा आज के छात्र-नौजवानों, बड़े-बूढ़े सभी को मानसिक रूप से कैसे गुलाम बनाने का काम दलित, आदिवासी, पिछड़ा और सामाजिक न्याय पसंद वर्ग के लोगों में किया जा रहा है। क्या ऐसा नहीं लगता है कि आज धर्म को कैसे समाज में ले जाने के लिए नित्य नए-नए संसाधनों का प्रयोग किया जा रहा है....? उसके लिए नई तकनीकों का सहारा लेकर जिससे युवाओं को अपने वश में किया जा सके।
ये कैसी विडम्बना है कि आज इतना पढ़ने-लिखने के बाद भी ऐसी घटनाएं हमारे समाज में धर्म के नाम पर अंधविश्वास व आडम्बर को फैलाया जा रहा है।
मैंने देखा कि तेज ध्वनि के कारण खासकर नवजात शिशु या उससे थोड़ा सा बड़े जिनको लगातार ऐसी तेज ध्वनि से ‘बहरा’ बना सकती है। क्या ये लोग अपनी नई पीढ़ी के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं....?
इस पर हमें सोचना होगा आखिर ऐसा क्यों...? क्या सिर्फ वोट बैंक के लिए ऐसे संगीतमय आयोजन किए जाते रहेगें...? या फिर इसके पीछे कोई और विचारधारा काम कर रही है, जो समाज को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। आज मनुष्य की दैनिक मूलभूत जरूरतों में जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, औद्योगिक और युवाओं को रोजगार आदि मुहैया कराना चाहिए। इसको न करके सरकारें भी जनता के मूल सवालों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसे आयोजन खुलेआम कर रही हैं। समाज आगे जाने के बजाए पीछे जा रहा है आखिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा...? छात्र-नौजवान से लेकर सामाजिक न्याय पसंद लोग अगर इसकी चपेट में आ जायेगें तो हमारा भविष्य खतरे में पड़ जाएगा और समाज अपने पुराने गर्त में न चला जाएगा। इसलिए यह जरूरी है, और हम सभी की जिम्मेदारी भी बनती है कौन से आयोजन होने चाहिए और कौन से नहीं...? इस पर अवश्य हमें विचार मंथन करना होगा....?
साथ ही पढ़ने-लिखने और शिक्षित होने के लिए लोगों को प्रेरित करना होगा, तभी हम एक तर्कपूर्ण, वैज्ञानिकता पर आधारित समाज की स्थापना कर सकते हैं।