संगीनों के साये में स्कूल
डरी फ़िक्रमंद मांओं ने
बलैयाँ ली नजर उतारी
दुआएँ माँगी अल्लाह ताला से
जिगर के टुकड़ों को चूम कर रुखसत किया
फ़ौजी संगीनों के साये में स्कूल बैरक हो गई
जेल सी ऊंची स्कूल की दीवारें
अमन की फ़ाख्ता नदारद थी
फूलों में बारूदी गंध
माहौल में गोलियों की आवाज़ें
तितलियों के कटे पंख
लो बच्चे फिर स्कूल आ गये
बच्चों ने क़ौमी तराना गाया
पाक ज़मीं शाद बाद
किश्वर-ए-हसीन शाद बाद
आगे गाया
परचम-ए-सितारा ओ हिलाल
रहबर-ए-तरक़्क़ी ओ कमाल
तर्जुमान-ए-माज़ी शान-ए-हाल
जान-ए-इस्तक़बाल
साया-ए-खुदा जुल जुलाल
बच्चों ने सोचा होगा
सचमुच ख़ूबसूरत रह गई हमारी जमीं
सजदे के क़ाबिल है लहूलुहान ज़मीं
ले कहां जा रहा क़ौमी परचम
कहां है तरक्की की मंज़िल
क्या यही है दिलकश दौर / शानदार आज़
मुस्तकबिल की उम्मीद कहाँ है
जो बचायेगा खुदा का निशान-ए-परचम
क्लास में नहीं थे ढेरों दोस्त
सलमा नहीं थी सलमान नहीं था
आयशा अरमान नहीं थे
यहाँ रहमान वहां तब्बसुम बैठती थी
अहमद ने इस जगह दम तोड़ा वहाँ नजमा गिरी थी
नौ टीचर क़ुर्बान हुई बच्चों की ख़ातिर
प्रिंसिपाल ताहिरा काजी नहीं थी
ज़िंदा जलायी गयी
रोई आँखों ने सजदे किये हाथों ने माँगी दुआएँ
खून के धब्बे नहीं थे दीवारों पर
गोलियों के निशाँ भर दिये
पर ज़ख़्म कहां भरे थे दिलों के
बच्चे जिनकी आँखों में दहशत थी
दिल मे नफरत थी
बच्चे जो सोये नहीं कई रातों से
बाबस्ता थे डरावने ख़्वाबों से
दिल में इंतकाम की आग लिये सुलग रहे बच्चे
बच्चे जो चुप थे
बच्चे जो गुम सुम थे
स्कूल में होकर भी गुमशुदा थे
कुछ ग़मज़दा थे
ख़ौफ़ज़दा थे
बोलते थे कैमरे पर
चाहते थे कलाश्निकोव
बच्चे तो बच्चे ही हैं
तालीबानी फ़ितरत क्या जानें
थमा देंगे उनके हाथों में
बाँध देंगे कमर में बम
उड़ जाएंगे बच्चे बेगुनाहों के संग
शहीद का दर्जा देंगे
दहशतगर्द बना देंगे
बोको हराम से कोकराझार
यही करते हैं यही करेंगे
बच्चों बच्चे ही रहो
तालीम लो
इक अमनपसंद नई दुनियाँ की तामीर करो
//जसबीर चावला//