माता या विमाता
श्रीमती ईरानी का अभिनय सुलोचना या निरूपाराय का नहीं, ललिता पवार का था
स्मृति ईरानी के संसद में ही विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव का सामना करने की नौबत आ गयी है।
शिक्षा मंत्री अगर माता हैं तो एबीवीपी समेत संघ परिवार की माता होंगी, कम से कम रोहितों और कन्हैयाओं के लिए तो विमाता ही हैं। भारत के नौजवान लड़ेंगे, तभी ऐसी फर्जी ममता से बचेंगे!
राजेंद्र शर्मा
यह संयोग ही नहीं है कि संसद के दोनों सदनों में और खासतौर पर प्रतिनिधि सदन में रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर किए जाने के दु:खद और एक समाज के नाते शर्मनाक प्रसंग के संदर्भ में, ‘एक माता’ का काफी प्रभावशाली अभिनय करने के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री सुश्री स्मृति ईरानी के संसद में ही विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव का सामना करने की नौबत आ गयी है। उन पर संसद के दोनों सदनों में हैदराबाद के केंद्रीय विश्वविद्यालय तथा जेएनयू की ताजा घटनाओं के संदर्भ में और उसमें भी खासतौर पर रोहित वेमुला के मामले में संसद को गुमराह करने के आरोप हैं। रोहित की संस्थागत हत्या के सिलसिले में मानव संसाधन विकास मंत्री पर कई-कई मामलों में सरासर गलत बयानी का आरोप है। लेकिन, इनमें भी सबसे गंभीर निहितार्थों वाला आरोप, श्रीमती ईरानी के इस दावे के संबंध में है कि रोहित के नाम पर राजनीति करने वालों यानी उसका मुद्दा उठाने वालों ने, उसके फांसी लगाने की जानकारी मिलने के पूरे बारह-चौदह घंटे तक, उस तक किसी डाक्टर, किसी पुलिसवाले को जाने ही नहीं दिया था!
स्मृति ईरानी प्रकटत: तेलंगाना पुलिस द्वारा हैदराबाद हाई कोर्ट में पेश किए गए बयान के आधार पर यह दावा कर रही थीं और विशेषाधिकार हनन के आरोपों अपने बचाव का उनका यही मुख्य तर्क होने जा रहा है। लेकिन, मुद्दा सिर्फ इतना नहीं है कि केंद्र सरकार की मंत्री ने एक ऐसी रिपोर्ट को आधार बनाया, जो सचाई से कोसों दूर है। बेशक, यह एक सोचे-समझे चुनाव का मामला है कि मंत्री महोदया ने खुद संबंधित विश्वविद्यालय द्वारा भेजे गए आधिकारिक विवरण को अनदेखा कर, पुलिस के उक्त बयान को अपना आधार बनाया। बहरहाल, कहानी के प्लॉट की तरह, पुलिस का उक्त बयान ही चुने जाने का असली अर्थ तक सामने आता है, जब श्रीमती ईरानी इस प्लाट पर अपनी ही स्क्रिप्ट रचती हैं और मैलोड्रामाटिक अभिनय के अपने कौशल से जोडक़र, अपने हिसाब से एक भावनाओं में बहाने वाला लोकसभा टेलीविजन एपीसोड रच देती हैं।
इस एपीसोड में 28 साल के शोध छात्र रोहित वेमुला को, जो एक सचेत तथा बहुत ही आॢटकुलेट सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता भी था, बार-बार चाइल्ड का संबोधन कर एक ‘मासूम बच्चे’ में तब्दील कर दिया जाता है और फिर ‘मां’ बनकर शिक्षा मंत्री इसका बैन करती दिखाई देती हैं कि हाय, उसके लाल को बचाने की किसी ने कोशिश नहीं की। उसके पास तक किसी डाक्टर को पहुंचने ही नहीं दिया। हो सकता है कि वक्त पर डाक्टरी मदद मिल जाती तो उस लाल की जान जाती ही नहीं। हो सकता है कि हमें यह दिन न देखना पड़ता। हो सकता है कि हमारे ऊपर दु:ख यह पहाड़ ही नहीं टूटता। पर उसके संग-साथ वाले ही मेरे लाल की जान के दुश्मन बन गए। वे ही उसे मारकर माने। और वह भी किसलिए, सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे की खातिर। भारत माता के लाल की लाश पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की खातिर!
यह टीअरजर्कर वास्तव रोहित वेम़ुला की मौत के लिए उसके संगी-साथियों से लेकर, उसकी मौत से उठने वाले मुद्दे उठाने वालों तक को ही कातिल साबित करने और स्मृति ईरानी के नेतृत्व में हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर, मौजूदा संघ-भाजपा राज तक को न सिर्फ निर्दोष साबित करने बल्कि पीड़ित पक्ष बनाने के अपने खेल में काफी हद तक कामयाब भी हो गया था। लेकिन, खुद रोहित वेमुला की मां, भाई और उसके सामाजिक-राजनीतिक संगियों ने, श्रीमती ईरानी के ‘मां’ के अभिनय की पोल खोल दी।
हाथ के हाथ यह सच सामने आ गया कि रोहित की आत्महत्या की खबर मिलते ही, उसके साथियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर, विश्वविद्यालय की डाक्टर तथा पुलिस तक सब को खबर कर दी थी। खुद विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य केंद्र की डाक्टर ने टेलीविजन कैमरों के सामने यह बयान देकर, श्रीमती ईरानी और भाजपा प्रवक्ताओं के झूठ की कलई खोल दी कि वह रोहित के फांसी पर लटकने की जानकारी मिलने के चंद मिनट के अंदर-अंदर घटनास्थल पर पहुंच चुकी थीं और जांच कर यह नतीजा निकाल चुकी थीं कि उसकी मौत हुए कुछ घंटे जरूर हो चुके थे।
जाहिर है कि पुनर्जीवित करने के किसी भी तरह के प्रयास के लिए, उसके फांसी लगाने की जानकारी मिलने तक ही बहुत देरी हो चुकी थी। इसके साथ ही यह सच भी सामने आ गया कि घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस उस कमरे तक पहुंच चुकी थी। यह सब, जानकारी मिलने के चंद घंटों में ही रोहित के छोटे भाई के होस्टल के संबंधित कमरे तक पहुंचने तक हो भी चुका था। बात सिर्फ इतनी थी कि शायद उत्तेजित से ज्यादा शोक विदग्ध छात्रों ने, अगली सुबह तक अपने साथी का शव हटाने नहीं दिया था।

साफ हो गया कि श्रीमती ईरानी का अभिनय सुलोचना या निरूपाराय का नहीं, ललिता पवार का था। वह माता नहीं विमाता की भूमिका में थीं। तभी तो जिस समय श्रीमती ईरानी रोहित की आत्महत्यानुमा हत्या के लिए, उसके साथ खड़े होने वालों को ही गरिया रही थीं, ठीक उसी समय रोहित की असली मां, उसके संगियों के साथ दिल्ली के एक थाने के दरवाजे पर रोहित की याद में मोमबत्तियां जला रही थी क्योंकि श्रीमती ईरानी की सरकार की पुलिस ने उन्हें इंडिया गेट पर ऐसा करने से रोकने के लिए, हिरासत में ले लिया था। यह दूसरी बात है कि उसी पुलिस को उसी इंडिया गेट पर, राष्ट्रवाद के नाम पर, उन्हीं संघ-संचालित वकीलों को तिरंगा लेकर अपना उग्र जुलूस निकालने की इजाजत देने में कोई दुविधा नहीं हुई थी, जो इससे ठीक पहले और दो-दो बार, पटियाला हाउस अदालत में, पुलिस की मौजूदगी में पत्रकारों, जेएनयू के छात्रों व अध्यापकों व अन्य लोगों पर खुल्लमखुल्ला हमले कर चुके थे! इतने आक्रामक तरीके से तो नहीं, पर रोहित के मामले में मानव संसाधन विकास मंत्री ने, निलंबन/ निष्कासन का निर्णय करने वाली कमेटी में दलित सदस्य होने से लेकर, उसकी छात्रवृत्ति के न रोके जाने तक के दूसरे अनेक अद्र्घसत्यों व असत्यों का भी सहारा लिया है, जिसका आने वाले दिनों में उन्हें संसद में और संसद के बाहर भी जवाब देना पड़ेगा।
लेकिन, इससे कोई यह न समझे कि श्रीमती ईरानी ने संसद में अपने पहले बड़े प्रदर्शन को, अपने विभाग तथा अपनी सरकार की करतूतों का और उच्च शिक्षा की संस्थाओं तथा खासतौर पर हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय व जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में संघ का दबदबा थोपने के औजार के रूप में, एबीवीपी को रोपने की जनतंत्रविरोधी कोशिशों का, बचाव करने तक ही सीमित रखा। खासतौर पर जेएनयू के खिलाफ अपनी सरकार तथा समूचे संघ परिवार के ही चौतरफा हमले का ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधियां’ के झूठे आरोपों के सहारे बचाव को आगे बढ़ाते हुए, श्रीमती ईरानी ने ‘‘महिषासुर दिवस’’ के आयोजन को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के आरोपों की सूची में शामिल कर, बता दिया कि मौजूदा सरकार, राष्ट्रवाद की संघ की उस परिभाषा को ही जस का तस भारतीय राज्य से लागू कराने में जुटी है, जिसमें हिंदू होना राष्ट्रीय होने के लिए जरूरी तो है, लेकिन काफी नहीं है। इस राष्ट्र में दुर्गा की पूजा परंपरा तो आ सकती है, लेकिन महिषासुर की पूजा की परंपरा ‘राष्ट्र विरोधी’ ही मानी जाएगी! दलित, आदिवासी, कम्युनिस्ट; सब की परंपराएं यहां राष्ट्र विरोधी हो जाती हैं।
पर स्मृति ईरानी इस मामले में भी सिर्फ शुष्क तथ्यों पर ही नहीं रुक गयीं। खासतौर पर पश्चिम बंगाल तथा असम के आने वाले विधानसाई चुनाव को नजर में रखकर उन्होंने, महिषासुर दिवस के प्लॉट को भी बाकायदा एक और भावोत्तेजक एपीसोड में बदल दिया। उन्होंने ‘मां दुर्गा का अपमान’ पर आर्तनाद किया, कम से कम लोकसभा में (राज्यसभा में वह सारी कोशिश के बावजूद ऐसा नहीं कर पायीं) विस्तार से इसका पाठ किया कि अपमानकर्ता मां दुर्गा के खिलाफ क्या-क्या कहते हैं और अपने राजनीतिक विरोधियों को चुनौती दी कि कोलकाता की सडक़ों पर इसका समर्थन कर के दिखाएं!
स्वाधीन भारत के किसी शिक्षा मंत्री ने, यहां तक कि एनडीए-1 के शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने भी, ऐसी खुल्लमखुल्ला सांप्रदायिक दुहाई का का सहारा लेने की बात कभी सोची भी नहीं होगी। शिक्षा मंत्री अगर माता हैं तो एबीवीपी समेत संघ परिवार की माता होंगी, कम से कम रोहितों और कन्हैयाओं के लिए तो विमाता ही हैं। भारत के नौजवान लड़ेंगे, तभी ऐसी फर्जी ममता से बचेंगे!
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