संघ प्रमुख का पाखंड।
The hypocrisy of the RSS chief अगर इस चुनाव में नरेंद्र मोदी के कहने पर चार सौ से अधिक लोकसभा उम्मीदवारों की जीत हुई होती तो, आपने सोमवार को जो कुछ कहा है, वहीं कहा होता, मोहन भागवत जी ?

अगर BJP 400 पार हो गई होती, तब भी आपके यही विचार होते भागवतजी ?
The hypocrisy of the RSS chief
वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी प्रमुख हमेशा से ही बोलते आ रहे हैं कि संघ सांस्कृतिक संगठन है। और हम हमारे संगठन में सिर्फ चरित्र निर्माण का कार्य करते हैं। हमारा राजनीति से कोई संबंध नहीं है। एक तरफ यह भूमिका और 21 अक्तूबर 1951 में मतलब संघ के स्थापना के पच्चीस साल के भीतर तत्कालीन संघ प्रमुख श्री. माधव सदाशिव गोलवलकर ने जनसंघ नाम का राजनीतिक दल की स्थापना की। और शुरू में श्यामाप्रसाद मुखर्जी को इस दल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यह दल शत-प्रतिशत संघ की राजनीतिक ईकाई होने के बावजूद, संघ का आलाप की हम सांस्कृतिक संगठन है ?
जनसंघ को स्थापित करने की वजह महात्मा गाँधी जी की हत्या के बाद छह महीने ( फरवरी 1948 से -जुलै 1948 तक ) संघ के ऊपर तत्कालीन सरकार ने, और उसमे भी सब से प्रमुख नाम तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने, संघ के उपर महात्मा गाँधी जी की हत्या के मामले में बैन लगाने का काम किया है। और इस बारे में सरदार वल्लभभाई पटेल और तत्कालीन संघ प्रमुख गोलवलकर के बीच हुआ पत्राचार मौजूद हैं। और इसलिए गोलवरकर ने सोचा कि हमारा अपना राजनीतिक दल होना चाहिए। वह है, उस समय का जनसंघ। और अभी का 1980 के बाद भारतीय जनता पार्टी। लेकिन गाहे-बगाहे संघ की तरफ से हमारा राजनीति से कोई संबंध नहीं है। यह राग अलापना जारी था। और जनसंघ 1977 में जनता पार्टी के भीतर अपना जनसंघ का विसर्जन करने के बाद, शामिल हो गया था। लेकिन इसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आये दिन जनता पार्टी के भीतर दखलअंदाजी को लेकर ही, जिसे पॉप्युलर नोशन में ( दोहरी सदस्यता कहा जाता है। जनता पार्टी और संघ के बीच। ) जनता पार्टी उन्नीस महिनों के भीतर ही बिखर गई। और पुराने जनसंघ भारतीय जनता पार्टी के रूप में 6 अप्रैल 1980 में अस्तित्व में लाया गया।
और उसके बाद भाजपा को अच्छे दिन लाने के लिए, खुलकर संघ के प्रचारक एकेक भाजपा को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से भाजपा में भेजे गए। जिसमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हीं प्रचारकों में से एक हैं। जैसे राम माधव से लेकर विनय सहस्रबुद्धे, संजय जोशी, और भी बहुत सारे लोग भाजपा में महत्वपूर्ण पदों पर संघ के द्वारा भेजे गए हैं। और वर्तमान स्थिति में भाजपा को गली से लेकर दिल्ली तक सत्ता में लाने के लिए, सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करते हुए, ही यह मुकाम हासिल किया है। जिसके लिए रामजन्मभूमि विवाद से लेकर गोहत्या बंदी मदरसा, हिजाब और कई जगहों पर रामजन्मभूमि के जैसे ही विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के इर्द-गिर्द संपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों को, संघ के द्वारा एक षडयंत्र के तहत अंजाम देने का काम किया गया। और जब - जब स्थानीय निकाय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में भाजपा के उम्मीदवारों के लिए पन्ना स्तर से संघ के लोग सक्रिय रूप से काम करते हैं। लेकिन संघ प्रमुख का हम सांस्कृतिक संगठन है। हम तो बस चरित्र निर्माण का कार्य करते हैं। यह राग अलापना जारी है।
लेकिन 1951 से लेकर, 14 जून 2024 मतलब आज की तारीख में। समय - समय 1951 से लेकर 1977 जनसंघ और 1980 के बाद भारतीय जनता पार्टी के आज भारत और भारत के विभिन्न प्रदेशों में भाजपा की सरकारों को सत्ताधारी बनाने के लिए, संघ अपने सदस्यों के द्वारा पूरी ताकत झोककर भाजपा को सत्तारूढ़ करने के लिए मदद करता है। वर्तमान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा लाख बोले होंगे कि "हमें संघ के मदद की जरूरत नहीं है।" और शायद नागपुर के संघ शिक्षावर्ग के समापन समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इसिलिये तिलमिलाते हुए, भाजपा की हार के कारण गिनाते हुए, "मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से चल रही हिंसा को लेकर बयान दिया है।"
पूर्वोत्तर में आग के पीछे संघ ?
लेकिन संघ के सैकड़ों प्रचारक पूरे उत्तर पूर्वी प्रदेशों में 50 वर्ष से अधिक समय से फैले हुए हैं, जिसमें मणिपुर भी आता है। और मैं व्यक्तिगत रूप से इनमें से कुछ लोगों को जानता हूँ। कभी उत्तर पूर्व के प्रदेश में गया था, तो इनके साथ मिलना और बातचीत करने का मौका मिला है। और मैं अस्सी के दशक से 1997 तक कलकत्ता में रहने के वजह से, यह लोग उत्तर पूर्वी राज्यों से आते-जाते वक्त मुझे मिलकर जाते थे। प्रमुख नाम एकनाथ रानडे तथा डॉ. लक्ष्मी, बालकिशन को छोड़कर सभी महाराष्ट्रियन ब्राह्मण ही हैं। और मोहन भागवत को इसके पहले मणिपुर में क्या चल रहा है ? यह किसी भी अन्य लोगों की तुलना में अधिक जानकारी रहते हुए, वह चुप क्यों रहे ? वास्तव में उत्तर पूर्वी प्रदेशों के ज्यादातर विवाद संघ के लोगों की वजह से ही शुरू हुए हैं। क्योंकि नागपुर से साठ साल पहले ही बालासाहब देवरस संघ के प्रमुख थे 1973 के बाद से। आदिवासी इलाकों में घुसकर, उन्हें हिंदू पहचान दिलाने की शुरुआत की है। वास्तव में आदिवासी भारत के किसी भी प्रदेश में रहने वाला हो, वह निसर्ग पtजक है। और वह वर्तमान समय में विश्व के किसी भी स्थापित धर्म के नहीं हैं। और यह गलती ख्रिश्चन धर्म प्रचारकों से लेकर मुस्लिम तथा वर्तमान में संघ आदिवासियों को तथाकथित हिंदू धर्म के ही हैं, यह फैलाने का प्रयास सभी आदिवासियों के बीच में जाकर कर रहा है। और मणिपुर में वर्तमान समय चल रहे, असंतोष में संघ का भी हाथ है।
इसके पहले संघ ने सुधीर देवधर के माध्यम से त्रिपुरा में भी यही कोशिश की है, जिसका भाजपा को तात्कालिक फायदा हुआ है! लेकिन लंबे समय में वहां भी असंतोष हुआ तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अभी लोकसभा चुनाव में मणिपुर की दोनों लोकसभा सीटों पर भाजपा के हार के बाद यह कहना जले पर नमक छिड़कना है।
अब रही बात 'अहंकार' की तो नरेंद्र मोदी का अहंकारी होने की बात मेरे अहमदाबाद के गुजराती लोकसत्ता अखबार के वरिष्ठ पत्रकार और मेरे घनिष्ठ मित्र मित्र दिगंत ओझा ने तो नरेंद्र मोदी कैसे अहंकारी हैं, और उन्होंने नागपुर से खास अहमदाबाद भेजें गए संघ प्रचारक संजय जोशी को बदनाम करने से लेकर, शायद उसे भाजपा के भी बाहर करने के लिए, कौन सा षडयंत्र किया, इसके ऊपर एक पुस्तिका भी लिखी है। और विशेष रूप से इस पुस्तिका का एक विमोचन नागपुर में मेरे ही हाथों हुआ है। और इस पुस्तिका में, दिगंत भाई ने नरेंद्र मोदी कैसे - कैसे संघ के साथ व्यवहार कर रहे हैं, इसके पर्याप्त प्रमाण लेकर लिखा है।
लेकिन 27 फरवरी को गोधरा कांड और उसके बाद गुजरात दंगों को नरेंद्र मोदी ने अपने आप को 44 इंची बनियान होने के बावजूद! 56 इंच छाती बना कर, 'हिंदू हृदय सम्राट' का दर्जा हासिल कर लिया है। क्या मोहन भागवत को यह बात संजय जोशी 'तेरे कूचे से बेआबरू' होने के बाद नरेंद्र मोदी के हठधर्मिता के कारण नागपुर में वापस लौटने के बाद भी, भागवतजी से मुलाकात नहीं हुई है ? और संजय जोशी को बदनाम करने के लिए, झूठमूठ की चरित्र हनन करने के लिए, धुंधली सीडी बनाने का मामला मोहन भागवत और अन्य संघ के पदाधिकारियों को मालूम नहीं है ? और जिस संतुलन की बात भागवतजी कर रहे हैं क्या नरेंद्र मोदी ने 27 फरवरी के बाद अपने मंत्रियों को भरी मंत्रिमंडल की बैठक में "कल से गुजरात में जो भी प्रतिक्रिया होगी, उसे होने देना है। कोई भी हिंदुओं को रोकने - टोकने का काम नहीं करेंगे।" यह कैबिनेट की बैठक में कहीं हुई बात भी संतुलन के लिए थी ? और उसके पहले जैसे ही 27 फरवरी की गोधरा की बात पता चली तो खुद गांधीनगर से 200 किलोमीटर दूर गोधरा जाकर कलेक्टर जयती रवी के मना करने के बावजूद, 59 अधजली लाशों को विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष को सौंपना, और उनको अहमदाबाद में खुले ट्रकों पर रखकर जुलूस निकाला जाना, भी संतुलन के लिए था ? वैसे ही खुद ही केंद्र सरकार को सेना भेजने का पत्र लिख कर, सेना को तीन दिन तक अहमदाबाद के हवाईअड्डे के बाहर नहीं आने देना, भी आपके कहने के अनुसार संतुलन बनाए रखने के लिए था ? और उनसे भी वरिष्ठ स्वयंसेवक उस समय प्रधानमंत्री थे। और उन्होंने दंगों के बाद अपनी गुजरात भेंट के समय "आपने राजधर्म का पालन करना चाहिए था", यह नरेंद्र मोदी को कहना भी आपके कहने के अनुसार संतुलन के लिए था ?
उसके बाद नरेंद्र मोदी तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान थे। और उसी बीच में उन्होंने 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए। और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के रहते हुए। अण्णा हजारे के तथाकथित जनलोकपाल आंदोलन की पृष्ठभूमि में, हुए चुनाव में, भी नरेंद्र मोदी को जिस तरह से आप सभी ने खुली छूट दी, और उन्होंने अपने दोस्त गौतम अदानी तथा अंबानी के प्राइवेट विमानों का इस्तेमाल करने वाले, दिन में दस बार कपड़े बदलने वाले, सबसे बडे स्टार प्रचारक के रूप में लोकसभा चुनाव में प्रचार किया और भाजपा को तीन सौ से अधिक सिटे जिताने में क्या संघ ने सहयोग नहीं किया था ? तब नरेंद्र मोदी बहुत ही विनम्र दिखाई दे रहे थे ? फिर उसके बाद 2019 के इलेक्शन में बंगाल में महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश के हजारों की संख्या में स्वयंसेवक भेजने का निर्णय किसने लिया था ? और उस चुनाव में भी नरेंद्र मोदी और अधिक सीटें जीतकर प्रधानमंत्री बने। तो वह सरकार नरेंद्र मोदी की हो गई ? और कोरोना के सर्टिफिकेट से लेकर, देश के हर पेट्रोल पंप, और महत्वपूर्ण जगह-जगह पर नरेंद्र मोदी के फोटो के साथ, विशालकाय होर्डिंग आपको या किसी भी संघ स्वयंसेवक को दिखाई नहीं दिए ? और यह सब कम था तो, नरेंद्र मोदी ने 2024 का पूरा चुनाव ही नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए, यह मोदी की गारंटी है, जैसे अत्यंत मग्रुरी के साथ, आप मे से किसी के भी कान और आंखों को दिखाई नहीं दिया ? अब सीट कम होने के बाद आपको अहंकार, मणिपुर, विनम्रता वगैरह दिखाई दे रहा है ?
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में दस साल, और तेरह साल गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में देखकर, संजय जोशी जैसे कमिटेड प्रचारक को सार्वजनिक जीवन से गायब करने वाले 'अहंकारी' आपको या अन्य किसी भी स्वयंसेवक जो दस सालों से नरेंद्र मोदी के साथ मंत्रिमंडल में शामिल नितिन गडकरी से लेकर अन्य संघ से बचपन से शामिल राजनाथ सिंह जैसे नरेंद्र मोदी के साथ कैसा अनुभव कर रहे हैं ? यह बात आपको मालूम नहीं है ? अगर इस चुनाव में नरेंद्र मोदी के कहने पर चार सौ से अधिक लोकसभा उम्मीदवारों की जीत हुई होती तो, आपने सोमवार को जो कुछ कहा है, वहीं कहा होता, मोहन भागवत जी ??????????.
डॉ. सुरेश खैरनार
(सुरेश खैरनार, लेखक सुप्रसिद्ध मराठी साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)


