आज राम नवमी है यानी मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी का जन्म दिन। ज़ाहिर है इस दिन को मनाने वाले लोगों के मन और उसकी आधुनिक अभिव्यक्ति फेसबुक वाल पर राम का बाल्य रूप (child form of ram) ही दिखना चाहिए। लेकिन आप पाएंगे कि क़रीब 95 फीसदी लोगों ने जो फोटो लगाई हुई है उसमें वो धनुष में तीर चढ़ा कर ताने हुए युद्ध की मुद्रा में हैं।

राम की छवि में चीनी और यूनानी मार्शल आर्ट वाली झलक

पिछले 5-6 सालों में डिजायनिंग और ग्राफिक के तकनीक में हुए विकास के कारण उनकी इस छवि में चीनी और यूनानी मार्शल आर्ट वाली झलक भी दिख जाएगी। जबकि राम नवमी से इस फोटो का कोई तालमेल ही नहीं है, क्योंकि कोई भी जन्म लेते ही तो तीर धनुष चलाने नहीं लगता है।

राम का रौद्र रूप कब प्रकट हुआ

जिन्होंने भी रामायण पढ़ी या रामानन्द सागर वाली रामायण देखी होगी उन्हें पता होगा कि राम का यह रौद्र रूप रावण से युद्ध के समय का है या फिर समुद्र को सुखाने के लिए तीर खींचने के समय का।

1980 के दशक की पैदाइश वाले लोगों ने राम की जो तस्वीरें कैलेंडरों में देखी हैं उसमें धनुष उनके कन्धे पर टँगा होता था। बगल में लक्ष्मण और सीता जी भी होती थीं और चरणों में बैठे हनुमान जी भी। बिना इन चारों के राम की तस्वीर की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। तब आम तौर पर हिंदू परिवार संयुक्त परिवार हुआ करते थे और राम आम हिंदू संयुक्त परिवारों के आदर्श थे। लेकिन 90 के शुरूआत में भाजपा और संघ के राम मंदिर आंदोलन ने राम के इस रूप को बदलना शुरू किया। कैलेंडरों से अचानक सीता जी, लक्ष्मण और हनुमान जी गायब होने लगे। राम जी का धनुष कंधे से निकल कर हाथ में आ गया और दूसरे हाथ से तीर खींचने लगे। जय सिया राम की जगह भी जय श्री राम ने लेना शुरू कर दिया। क्योंकि अब सिया (सीता) के राम की ज़रूरत भी नहीं रह गयी थी। संयुक्त हिंदू परिवार भी एकल परिवार बनने लगे थे। लोग अपनी जड़ों से उखड़ कर भाइयों से अलग रहने लगे। इसलिए जीवन में लक्ष्मणों की भूमिका भी कम होने लगी। धार्मिक मूल्यों से कटे इसलिए महिलाओं के प्रति सम्मान भी कम हुआ। भूल गए कि राम रावण का युद्ध ही महिला के सम्मान के लिए हुआ था। यह भूल गए, इसलिए राम के नाम पर राजनीति करने वाला अगर कोई गेरुआधारी दूसरे धर्म की महिलाओं के खिलाफ़ अपहरण और बलात्कार की धमकी देता है तो लोगों को अच्छा लगता है, उसे पूरा परिवार राम राज लाने के नाम पर वोट दे आता है।

कैसे राम का युद्ध रावण से न होकर बाबर से हो गया

वहीं अचानक बाल्मीकि के इस महान रचना से उसके खल पात्र रावण भी गायब होने लगे। अब विष्णु के सातवें अवतार राम का संघर्ष रावण से नहीं रह गया। अब उनका संघर्ष एक मनुष्य बाबर से हो गया जो 15 वीं शताब्दी में उज्बेकिस्तान से राजपूत राणा सांगा के बुलावे पर मुस्लिम इब्राहिम लोदी से लड़ने के लिए यह सोच कर आया था कि काम निपटाने के बाद जल्दी ही लौट जायेगा। लेकिन उसे भारत की आबो हवा पसन्द आ गयी और वो और उसकी आगे की सात पीढी यहीं बस खप गयी। उसने कल्पना भी नहीं की होगी कि जो भी सौ पचास युद्ध उसने किये होंगे उसे भुला कर उसे एक ऐसे युद्ध का खलनायक बना दिया जाएगा जो उसने लड़ा ही नहीं और ना लड़ सकता था।

रावण से युद्ध के बजाय बाबर से युद्ध क्यों पसंद आने लगा?

लोगों को राम का यह संस्करण पसंद आने लगा। क्योंकि रावण को साक्षात खोजने और उससे लड़ने के लिए बहुत नैतिक बल की ज़रूरत थी क्योंकि वो आपके अंदर का मामला था। जबकि बाबर के वंशजों से लड़ने के लिए किसी भी तरह के नैतिक बल की ज़रूरत नहीं थी। यहाँ तो अनैतिक होना था। और वो आसानी से आपको पड़ोस में, बगल वाले मोहल्ले में, सब्ज़ी-फल बेचते, गावों में मिल सकते थे। उन्हें उनके नामों और पहनावों से भी पहचाना जा सकता था। इसीलिए उस दौर के कथित रामभक्तों का सबसे प्रिय नारा था - तेल लगाओ डाबर का नाम मिटा दो बाबर का

अयोध्या के मित्र पुजारी जुगल किशोर शरण शास्त्री ने एक बार बताया था कि 80 के उत्तरार्ध में जब वो विश्व हिंदू परिषद में थे तब राम मंदिर आंदोलन को लेकर एक बैठक हुई जिसमें आंदोलन में इस्तेमाल होने वाले राम जी के फोटो पर बात होनी थी। शास्त्री जी का मत था कि चूंकि आंदोलन राम लला के जन्म स्थान को लेकर (Movement regarding the birth place of Ram Lalla) है इसलिए रामचंद्र जी के बाल्यकाल की ही फोटो पोस्टरों पर होनी चाहिए। जो तार्किक भी था। लेकिन विहिप के बाकी नेताओं ने इस सुझाव को ख़ारिज कर दिया और हाथ में धनुष लेकर तीर चढ़ाने वाले फोटो को इसके लिए स्वीकार किया। ज़ाहिर है विहिप का लक्ष्य कुछ और था। शास्त्री जी भी वहाँ से अलग हो गए। ये वही दौर था जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच द्वारा 1981 में रामजन्म भूमि स्थल के पुजारी नियुक्त किये गए बाबा लाल दास भी संघ और भाजपा को खटकने लगे थे क्योंकि वो राम के सैन्यकरण और वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किये जाने के मुखर विरोधी थे। 16 नवम्बर 1993 को उन्हें गोलो मार दी गयी। ठीक जैसे राम के उपासक मोहनदास करमचन्द गांधी को गोली मार दी गयी थी।

संघ ने चुपके से हनुमान जी का लाल लंगॉ केसरिया कर दिया

अब जो नई पीढ़ी है उसने उस राम को नहीं देखा। अब वो उस हनुमान को भी नहीं जानती जिनकी लंगोट का रंग लाल हुआ करता था। किसी भी गांव क़स्बे में हनुमान जी के मंदिर के बाहर ऊँचे से बांस पर लाल पताका फहराता रहता था। लेकिन गौर से देखिये अब इस लाल रंग की जगह केसरीया रंग ने ले लिया है। चूंकि लाल और गहरे केसरिया रंग में बहुत अंतर नहीं दिखता इसलिए संघ ने चुपके से ये कांड कर दिया। या फिर लोगों ने इसलिए भी इसे हो जाने दिया होगा कि अंदर से भी अब हर चीज़ को केसरिया रंग में देखने की इच्छा लोगों में बढ़ी है। ये एक तरह से एक प्राचीन महान धर्म का एक आधुनिक राजनीतिक विचारधारा और दल द्वारा अपहरण है। ऐसा शायद ही किसी और धर्म के साथ इस हद तक हुआ हो। लेकिन लोगों को यह अपहरण पसंद आ रहा है तभी तो लोग मानने लगे हैं कि जो राम को लाए हैं हम उन्हें लायेंगे। जिस समय के कैलेंडरों में राम जी का धनुष उनके कन्धे में था और साथ में सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी भी हुआ करते थे, तब लोग ऐसा नहीं मानते थे। तब मान्यता थी कि राम जी उन्हें लाए हैं।

अपहरणकृताओं से राम को छुड़ाइये

लेकिन इसके दोषी सिर्फ़ ऐसा करने वाले ही नहीं हैं बल्कि ऐसा हो जाने देने वाले भी हैं। क्योंकि वो भूल गए कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व में फर्क होता है। जब आप ये भूल जायेंगे ना तो नौकरी, संवैधानिक अधिकार, अपने भगवान सब गंवा देंगे। राहुल गांधी यही चेतावनी तो देते हैं। इसलिए राम को अपहरणकृताओं से छुड़ाइये। और यह ज़िम्मेदारी सिर्फ़ हिंदुओं की नहीं है क्योंकि कोई भी संत, सूफ़ी, अवतार, महापुरुष, पैगम्बर, महान वैज्ञानिक, महान विचारक के विचार किसी एक जाति, धर्म या नस्ल के कल्याण के लिए नहीं होते।

महात्मा गांधी ने अपने अंतिम दिनों में बिरला हाउस में हर शाम होने वाले सर्वधर्म प्रार्थना सभा में एक दिन कहा था कि इस्लाम को मानने वालों के पास बहुत सारे देश हैं इसलिए अगर किसी एक देश के मुसलमान कट्टर हो जाएं और इस्लाम के खिलाफ़ आचरण करने लगें तब भी अच्छे मुसलमानों की संख्या काफी बची रहेगी और इस्लाम भी बचा रहेगा। लेकिन अगर हिंदू कट्टर हुए और धर्म के विरुद्ध आचरण करने लगे तो दुनिया से हिंदू धर्म समाप्त हो जाएगा क्योंकि इनकी आबादी वाला सिर्फ़ एक देश ही है।

आप सभी को रामनवमी की शुभ कामनाएं।

शाहनवाज़ आलम

चेयरमैन अल्पसंख्यक कांग्रेस

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी

How Sangh-BJP changed the form of Ram