संभवतः पहली बार शकील बदायूँनी को याद किया बदायूँ के किसी सांसद ने
संभवतः पहली बार शकील बदायूँनी को याद किया बदायूँ के किसी सांसद ने
नई दिल्ली। महान शायर और गीतकार शकील बदायूँनी का आज जन्मदिन है। शकील बदायूँनी के इस जन्मदिन को यादगार बना दिया बदायूँ के सांसद धर्मेंद्र यादव ने फेसबुक पर श्रद्धांजलि देकर।
उत्तर प्रदेश के बदायूँ का ऐतिहासिक महत्व है। गुलाम वंश का संस्थापक इल्तुतमिश, जिसकी पुत्री रज़िया सुल्तान प्रथम महिला शासिका हुई, इसी बदायूँ का गवर्नर था। सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की पैदाईश भी बदायूँ की ही है। शास्त्रीय संगीत में बदायूँ घराना अपनी एक पहचान रखता है, जिसमें कई पद्म सम्मान से विभूषित संगीतकार हुए हैं। शायरे-आजम फ़ानी बदायूँनी को अपनी गरीबी से परेशान होकर बदायूँ छोड़ना पड़ा था और हैदराबाद में शरण लेनी पड़ी थी, तब फ़ानी ने लिखा था
फ़ानी हम तो जीते जी मय्यत हैं बेगोरे क़फ़न।
गुरबत जिसकी रास न आई और वतन भी छूट गया।
बहरहाल शकील बदायूँनी का यह जन्मदिन इस बार खास इसलिए बन गया क्योंकि 1984 के बाद यह पहली बार है कि शकील साहब को बदायूँ के किसी सांसद ने उनके जन्मदिन पर श्रद्धांजलि दी।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव इस समय बदायूँ के सांसद हैं, वे दूसरी बार बदायूँ का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
बदायूँ का दुर्भाग्य यह है कि 1980 के बाद से बदायूँ अपना स्थानीय सांसद नहीं चुन सका है। मरहूम असरार अहमद 1980 में अंतिम बार चुने गए स्थानीय सांसद थे। 1984 से लगातार बाहरी व्यक्ति ही बदायूँ का सांसद बनता रहा है। 1984 में कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी, असरार अहमद साहब का टिकट कटवाकर सासंद चुने गए, वह इलाहाबाद के रहने वाले हैं। 1989 में होशंगाबाद (मप्र) के रहने वाले शरद यादव (इस समय जद-यू अध्यक्ष) सांसद चुने गए। 1991 में गोण्डा के रहने वाले स्वामी चिन्मयानंद सांसद चुने गए। 1996, 1998, 1999 व 2004 में फिर सलीम शेरवानी सांसद चुने गए लेकिन इन कार्यकाल में वे सपा के सांसद चुने गए। 2009 एवं 2014 में इटावा के जसवंतनगर निवासी धर्मेंद्र यादव सांसद चुने गए।
1984 के बाद धर्मेंद्र यादव पहले सांसद हैं, जिन्होंने बदायूँ में अपना घर बनाया, वरना 1984 से 2009 तक तो बदायूँ के सांसद का घर बदायूँ में होता ही नहीं था। सलीम शेरवानी के विषय में तो मशहूर था कि चुनाव प्रचार के दौरान भी वे अपनी रात बदायूँ लोकसभा क्षेत्र में न गुजारकर पड़ोस के कासगंज लोकसभा क्षेत्र स्थित अपनी न्यौली शुगर मिल में बिताते थे।
इसलिए समझा जा सकता है कि बदायूँ की संस्कृति, वहां की ऐतिहासिक व साहित्यिक परंपरा से माननीयों का कोई लगाव क्यों नहीं रहा। हालांकि धर्मेंद्र यादव ने स्थानीय नागरिकों के इस शिकवे को काफी कुछ दूर करने का प्रयास किया है, परंतु स्थानीय जनप्रतिनिधि होने की कमी लोगों को खलती तो है ही। हालांकि धर्मेंद्र यादव के स्वजातीय सपा के स्थानीय दिग्गज उनका बिसतर गोल करवाने का प्रयास करते ही रहते हैं।
खैर “चमन पर वर्क गिरने से ही पहले/ जला लेता हूँ खुद में अपना शामियाना” लिखने वाले शकील बदायूँनी साहब को हस्तक्षेप.कॉम का नमन और शकील साहब को सम्मान देने के लिए सांसद धर्मेंद्र यादव का आभार।
अमलेन्दु उपाध्याय
शकील बदायूँनी का जीवन परिचय
उत्तर प्रदेश के बदायूँ क़स्बे में 3 अगस्त 1916 को जन्मे शकील अहमद उर्फ शकील बदायूँनी का लालन पालन और शिक्षा नवाबों के शहर लखनऊ में हुई। लखनऊ ने उन्हें एक शायर के रूप में शकील अहमद से शकील बदायूँनी बना दिया। अपने दूर के एक रिश्तेदार और उस जमाने के मशहूर शायर जिया उल कादिरी से शकील बदायूँनी ने शायरी के गुर सीखे। शकील बदायूँनी ने अपनी शायरी में ज़िंदगी की हकीकत को बयाँ किया। उन्होंने ऐसे गीतों की रचना की जो ज्यादा रोमांटिक नहीं होते हुये भी दिल की गहराइयों को छू जाते थे।
शकील बदायूँनी का सिने जगत में प्रवेश
मुंबई में उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उर्फ कारदार साहब और महान संगीतकार नौशाद से हुई। यहाँ उनके कहने पर उन्होंने 'हम दिल का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे...' गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफ़ी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुरंत ही कारदार साहब की दर्द के लिये साईन कर लिया गया।<1>
शकील बदायूँनी के प्रमुख गीत
शकील बदायूँनी ने क़रीब तीन दशक के फ़िल्मी जीवन में लगभग 90 फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। उनके फ़िल्मी सफर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि उन्होंने सबसे ज्यादा फ़िल्में संगीतकार नौशाद के साथ ही की। वर्ष 1947 में अपनी पहली ही फ़िल्म दर्द के गीत 'अफ़साना लिख रही हूँ...' की अपार सफलता से शकील बदायूँनी कामयाबी के शिखर पर जा बैठे। शकील बदायूँनी के रचित प्रमुख गीत निम्नलिखित हैं-
अफ़साना लिख रही हूँ... (दर्द)
चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो... (चौदहवीं का चांद)
जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये.. (बीस साल बाद, 1962)
नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं... (सन ऑफ़ इंडिया)
गाये जा गीत मिलन के.. (मेला)
सुहानी रात ढल चुकी.. (दुलारी)
ओ दुनिया के रखवाले.. (बैजू बावरा)
दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पडे़गा (मदर इंडिया)
दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.. (कोहिनूर)
प्यार किया तो डरना क्या...(मुग़ले आज़म)
ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962)
नैन लड़ जइहें तो मन वा मा कसक होइबे करी.. (गंगा जमुना)
दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965)
http://bharatdiscovery.org/india/शकील_बदायूँनी


