दुनिया के किसी भी दूसरे देश में संविधान को लेकर इतना तीखा और लम्बा संघर्ष फिलहाल कहीं नहीं

इस मज़ेदार देश को हिंदी दिवस की तरह ही संविधान दिवस भी मुबारक हो

Happy constitution day

26 नवंबर को मनाया जाता है संविधान दिवस

Constitution Day is celebrated on 26th November

शाहनवाज आलम

भारतीय संविधान पूरी दुनिया में शायद इकलौता ऐसा संविधान है जिसका सीधा टकराव भारतीय सामाजिक मूल्यों से रहा है। जैसे हमारा संविधान सभी को बराबर मानता है, लेकिन समाज एक दूसरे को छोटा-बड़ा मानता है, संविधान छुआ-छूत को अपराध मानता है, लेकिन समाज उसे अपनी प्यूरिटी को बचाये रखने के लिए ज़रूरी मानता है। संविधान वैज्ञानिक सोच विकसित करने की बात करता है लेकिन समाज कर्मकांड को अपना प्राण मानता है।

Half constitution implemented for one day in context of India?

इस तरह हम कह सकते हैं कि सभी तरह के जातीय, साम्प्रदायिक और लैंगिक संघर्ष में शामिल लोग संविधान के दोनों छोर पर पाए जाने वाले लोग हैं। और ये संघर्ष दरअसल संविधान को न मानने और मानने वालों के बीच का ही संघर्ष है। मसलन दलित हिंसा के शिकार दलित चाहते हैं कि उनको संविधान प्रदत्त अधिकार मिले और हमलावर चाहते हैं कि उन्हें दलितों को पीटने का संविधान पूर्व का पारंपरिक अधिकार अभी भी मिलना जारी रहे।

इसी तरह साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार मुसलमान चाहते हैं कि देश संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों से चले लेकिन उनके हमलावर चाहते हैं कि देश संविधान विरोधी संघ के इशारे पर चले। इस तरह, हम एक राष्ट्र के बतौर पिछले 70 साल से संविधान को उखाड़ने और लागू करने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

दुनिया के किसी भी दूसरे देश में संविधान को लेकर इतना तीखा और लम्बा संघर्ष फिलहाल कहीं नहीं चल रहा है। जो बहुत हद तक स्वाभाविक भी है क्योंकि आप सिर्फ एक दस्तावेज़ लिखकर हज़ारों सालों के सामाजिक रिश्तों को तो नहीं बदल सकते ना, वर्चस्वशाली तबका जिसे उस पारंपरिक व्यवस्था से लाभ था, ऐसे ही तो हथियार डाल नहीं देगा। हो सकता है वो मुँह पर कुछ ना बोले, लेकिन मन से वो तैयार थोड़े ही होगा इसके लिए। मसलन समता मूलक संविधान देने वाले अम्बेडकर का सम्मान तो उनके सहयोगी करते थे, लेकिन उनके घर जाने पर मंत्रिमंडल के ही कई लोग पानी पीने से इनकार करने के लिए कई तरह के बहाने बना देते थे। कोई कहता था कि उसका व्रत है तो कोई प्यास नहीं लगी है कह कर अपने मन मस्तिष्क को संविधान पूर्व की स्थिति में ही रखने की कोशिश करता था। लेकिन सभी तो अम्बेडकर हो नहीं सकते ना, जिन्हें सिर्फ मौखिक तरीके से ही टरकाया जा सके।

दशरथ मांझी जैसे आम लोगों को तो जिन्हें लगता था कि क़ानून बन जाने से देश अचानक अपने को उसके अनुरूप ढाल लेता है, चट्टी चौराहों पर पिटना पड़ता था। तब उन्हें समझ में आता था कि जमींदारी उन्मूलन कानून बन जाने से जमींदार और हरवाहा बराबर नहीं हो जाते। यानी उन्हें इस पिटाई से संदेश दिया जाता था कि संविधान बन जाने से वे ज़्यादा उड़े नहीं, नहीं तो ठीक कर दिए जाएंगे। लेकिन अम्बेडकर और दशरथ मांझी दोनों ने पलटवार किया। एक ने गुस्से में धर्म बदल लिया और एक ने पहाड़ ही काट दिया।

हां, जब कभी संविधान समर्थक लोगों का पलड़ा भारी रहा है, देश आगे बढ़ा है और हम आधुनिक दुनिया का हिस्सा लगने लगे हैं। लेकिन जब संविधान विरोधी खेमा मजबूत हुआ है तो देश प्राचीन युग की उलटी यात्रा पर निकल गया है। फिलहाल हम इसी उलटी यात्रा पर हैं जिसमें कई साल पीछे छूट चुके कई स्टेशन हम लोग पिछमुकिया क्रॉस करेंगे। जैसे अभी कुछ दिन पहले ही हम कभी अविकसित से विकासशील घोषित होने वाले स्टेशन से गुज़रे हैं।

सबसे मजेदार कि इस उलट यात्रा में खूब लंबे अंधेरे सुरंग हैं जिनसे गुज़रते हुए सभी यात्री खूब उत्साह से चिल्ला भी रहे हैं। वैसे भी हम अंधेरे में रोमांचित होने वाले समाज तो हैं ही, लेकिन इंतज़ार करिये जल्दी ही दूसरी तरफ जाने वाली इसी नाम की अप ट्रेन भी आने वाली है, जो रोशनी की तरफ जायेगी।

ये रस्सा-कशी चलती रहेगी। कई बार एक ही स्टेशन पर दोनों गाड़ियां एक दूसरे को क्रॉस करेंगी या एक साथ किसी तीसरी गाड़ी जो निश्चित है मालगाड़ी होगी, के निकल जाने का इंतज़ार करेंगी। इस दौरान बहुत से यात्री इसमें से उसमें और उसमें से इसमें भी आएंगे जाएंगे। खूब लिहो लिहो भी होगा। पता नहीं कौन कहाँ और क्यों पहुँचेगा। लेकिन यात्रा मज़ा देगी। जैसे ये देश मज़ा देता है। इस मज़ेदार देश को हिंदी दिवस की तरह ही संविधान दिवस भी मुबारक हो।

क्या यह ख़बर/ लेख आपको पसंद आया ? कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट भी करें और शेयर भी करें ताकि ज्यादा लोगों तक बात पहुंचे

कृपया हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें

Bhartiya samvidhan ka varnan kare, constitution of reading motivational day, when do we celebrate constitution day,