कयामत का मंजर यहींच
अरुंधति जो कह रही हैं वह सच है और इस अपकर्म में संसदीय पक्ष विपक्ष, रंगबिरंगी तमाम विचारदाराएं शामिल है जो दरअसल वंश वर्चस्व का अंग्रेजी हुकूमत का तोहफा है और इसीको हम लोकतंत्र समझ रहे हैं और धर्म और जातिकी अस्मिताओं को इसी खुशफहमी में मजबूत कर रहे हैं।
पलाश विश्वास
अरुंधति राय के ताजा बयान को मीडिया विवादास्पद बता रहा है। असहिष्णुता के खिलाफ राष्ट्रीय पुरस्कार पहले ही लौटा चुकी अरुंधति ने सीधे कहा है कि राजग सरकार सीधे ब्राह्मणवाद लागू करने पर उतारू है और मौजूदा हालात बयां करने के लिए असहिष्णुता काफी नहीं है। जलाने मारने काटने के इस क्तेआम को असहिष्णुता कहना काफी नहीं है।
हमने राजस्थान के बीकानेर जिले में प्रेम करने के अपराध में एक दलित युवक की निर्मम हत्या पर भंवर मेघवंशी की रपट लगायी और उसके साथ की जो तस्वीरें नत्थी की है, उनसे हमारी आत्मा भी लहूलुहान हो गयी। वीभत्सता की मनुष्यता और प्रकृति विरोधी इस वारदात की तस्वीरें साझा करना बहुत कष्टकर रहा है। लेकिन सच चाहे जैसा हो सामाजिक यथार्थ है। जब मनुष्यअब सामाजिक प्राणी नहीं ही रहा है, तो उसकी संवेदनाएं भी मर गयी हैं। सच कहने पर उसकी प्रतिक्रिया प्रतिक्रियावादी होती है। लेकिन सच कहना मनुष्य होने के नाते हमारा कार्यभार है।
अरुंधति ने सच कहा है जैसे हम लगातार कहते रहे हैं कि यह सोचना ही होगा कि अगर हम हिंदू समाज हैं, अगर हिंदुत्व हमारी साझा विरासत और संस्कृति है तो एकच रक्त के विज्ञान को खारिज करते हुए जाति वर्ण वर्चस्व के तहत लाखों अस्मिताओं के तहत बंटा क्यों है यह हिंदू समाज।
जाति व्यवस्था को बनाये रखना ही ब्राह्मणवाद है, मनुस्मृति शासन और मुक्तबाजार की अर्थव्यवस्था है।
हम इसे लगातार कह रहे हैं। अगर हम जाति को संबोधित करते हैं और जातियों को गाली दिये बिना हमारा अमृत वचन बेजुबान है तो इसका मतलब फिर वही है कि हम हरहालत में जाति को बनाये रखना चाहते हैं और इसीलिए हम जाति को मजबूत कर रहे हैं।
यह बहुत बड़ी त्रासदी है कि किन्हीं मजबूत जातियों का महागठबंधन सनातन हिंदू धर्म के झंडेवरदारों को हरा देता है। इसका सीधा मतलब है कि जनता की आस्था और उनकी समस्याओं, रोजमर्रे की जरुरतों, उनके वजूद से इस धर्म का कोई नाता नहीं है।
असल हिंदू हो जो वह जरुर अरुंधति के कहे का मतलब बूझ लें कि धर्म का राजकाज से कोई मतलब नहीं है।
भक्ति आंदोलन के मनीषियों ने मध्यकाल में ही इस दैवी सत्ता को खारिज करके रोशनी फैलायी है और कटकटेला अंधियारे के कारोबार ने उस रोशनी को धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद में ओ3म स्वाहा कर दिया है और उत्तरआधुनिक हिंदू धर्म को जाति और अस्मिताओं के शिकंजे में दबाकर रखा है।
संसद का अधिवेशन अंबेडकरस्मृति पारायण की वैदिकी रस्मअदायगी में तब्दील है तो राजकीय संविधान दिवस और संविधान संकल्प भी जाति उन्मूलन के एजंडे से दूर है जबकि हिंदुत्व के पुनरूत्थान के लिए उन्नीसवीं सदी का वह नवजागरण चाहिए जिसने सतीप्रथा, बहुविवाह, बाल विवाह का निषेद करते हुए स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह जैसे क्रांतिकारी कार्यक्म को अंजाम दिया।
उधर महात्मा ज्योतिबा फूले, सावित्री बाई फूले और हरिचांद ठाकुर गुरुचांद ठाकुरसमेत तमाम अछूत पिछड़े मनीषियों ने इसी कार्यक्रम को भारतीय यथार्थ बना दिया।
इस लिहाज से नवजागरण के साथ सात किसान आदिवासी आंदोलन का वह सिलसिला दरअसल भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल है और वर्तमान परिदृश्य अंधकार युग।
हमने अपने वीडियो टाक में पिछले दिनों विश्व साहित्य के मार्फत यह बताया है कि यह सिलिसिला 1170 में कैंटरबुरी के आर्कविशप की हत्या के साथ शुरु हुआ।
असहिष्णुता और शुद्धता संशोदन आंदोलन का खुलासा मर्डर इन द कैथेड्रल में और शेक्सपीअर के नाटकों में खूब हुआ है।
विडंबना यह है कि हम आजाद भारत में इसी को, इस औपनिवेसिक विरासत को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद बता रहे हैं क्योंकि रियासतें और जमींदारियां खत्म हुई नहीं है और न भारत में भूमि सुधार लागू हुआ है।
इसके उलट जलजंगल जमीन और नागरिकता से बेदखली का एफोडीआई यह मुक्तबाजार उन्माद है जिसके तार पूंजी बाजार से जुड़े हैं और गाय, गोबर, माटी से इसका कोई संबंध नहीं है।
इसीलिए हम एकच रक्त के भारत तीर्थ पर खून की नदियां बहाने वाले त्त्वों के हाथों खिलौना बने हुए हैं और राष्ट्र का विवेक जब भी बोलता है, उसके खिलाफ अविराम घृणा अभियान चला रहे हैं।
अरुंधति जो कह रही हैं वह सच है और इस अपकर्म में संसदीय पक्ष विपक्ष, रंगबिरंगी तमाम विचारधाराएं शामिल है जो दरअसल वंश वर्चस्व का अंग्रेजी हुकूमत का तोहफा है और इसी को हम लोकतंत्र समझ रहे हैं और धर्म और जातिकी अस्मिताओं को इसी खुशफहमी में मजबूत कर रहे हैं।
हिंदुत्व जीने और मरने वाले लोग इस देश में बहुसंख्य है जबतक वे इस हकीकत का सामना ना करें कयामत का यह मंजर बदलने वाला नहीं है।

लेखिका अरुंधति रॉय का बड़ा आरोप, हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दे रही है मोदी सरकार
Rajasthan Patrika - ‎13 hours ago‎

पुणे। पुणे। प्रसिद्ध लेखिका और असहिष्णुता के विरोध में राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने वाली अरुंधती रॉय ने मोदी सरकार पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपानीत एनडीए सरकार हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दे रही है। रॉय ने कहा कि जिस 'डर' के साए में अल्पसंख्यक जी रहे हैं उसे बताने के लिए 'असहिष्णुताÓ शब्द नाकाफी है।अरुंधति ने कहा कि लोगों की हत्या, उन्हें जिंदा जलाना और ऐसी ही बातों के लिए असहिष्णुता पर्याप्त शब्द नहीं है। ...rai 1. गौरतलब है कि अरुंधति रॉय उन लेखकों में शामिल हैं जिन्होंने हाल ही में देश में 'बढ़ती असहिष्णुताÓ के खिलाफ पुरस्कार लौटाया है।