It is difficult to know the truth, but not impossible ...

सवाल है कि हम शिकार की तरफ हैं या शिकारी की तरफ !

कुछ सच हमें अपनी आँखों से ही देखने होंगे, अपने मस्तिष्क से जज करने होंगे और अपने हृदय से स्वीकारने होंगे। सच की खोज (Find the truth) को शायद इसीलिए तप कहा जाता है। क्योंकि सच तक पहुँचना कभी बहुत सीधा और आसान नहीं रहा। सच तक पहुँचने का रास्ता भी बहुत ऊबड़ खाबड़ और दुरूह है। सच का रास्ता कठोर वे लोग बनाते हैं जो झूठ और छल छद्म से मालिक बने हुए हैं। वे डरते हैं कि अगर उनका झूठ खुल गया, अगर उनका नकाब उतर गया तो उनके शीशे का महल चकनाचूर हो जाएगा। उनकी झूठ की इमारत भरभरा के ढह जाएगी। वे रोकते हैं सच को। वे सच को विकृत करने की हर कोशिश करते हैं। वे सच को सात तहों के भीतर दबाने के लिए षड्यंत्र करते हैं। एक सच को मारने के लिए सौ झूठ बोलते हैं।

ऐसे झूठ कुछ लोगों के ही लालची मनसूबे पूरे करने की सीढ़ी बनते हैं। लालच तो चीज़ ही ऐसी है जो सत्ता का, पूँजी का, ताकत का संकेन्द्रण करती है। दूसरों के हिस्से की सत्ता, ताकत और पैसा छीनती है। और यह किसी एक लालची लोभी के पास जमा कर देती है। पर लोभी को इतने से भी चैन कहाँ ! वह तो और ज़्यादा, और ज़्यादा की फिराक में और लूटने में लगा रहता है।

लुटने वालों की संख्या ज़्यादा होती है, वंचितों की तादाद ज़्यादा होती है।

तो वंचित, लुटने वाले अपने जीवित रहने का, अपने स्वाभिमान का संघर्ष करते हैं। वे सच जानने की कोशिश करते हैं। वे सच को सात तहों के नीचे से भी खोद निकालते हैं। क्योंकि सच जानना उनके लिए जीवन मरण का सवाल है। यह जान बचाने वालों की जान लेने वालों से लड़ाई है। यह शिकार का शिकारी से संघर्ष है। इसलिए वह अंतिम साँस तक लड़ता है। उसके रुकने का अर्थ है मृत्यु।

मेरे दोस्तों, सच जानना कठिन ज़रूर है, नामुमकिन नहीं है।

हमारे लिए यह पक्षधरता का सवाल है। यह सवाल है कि हम शिकार की तरफ हैं या शिकारी की तरफ !

जब किसी का निर्दय शिकार हो रहा हो तब हम केवल तमाशा भी देखते रह सकते हैं। हम शिकार को चोट पहुँचने पर, शिकार की आर्तनाद चीखों पर इसलिए तालियां भी बजा सकते हैं कि शिकारी के जाल, शिकारी के षड्यंत्र में भोला शिकार फंस गया। हम शिकारी की धूर्तता की दाद भी दे सकते हैं। हम शिकार की मर्मान्तक कराहों का आनन्द भी ले सकते हैं। लेकिन जब हम ऐसा करेंगे दोस्तों, तब हम क्रूर दर्शक कहलायेंगे, हम बर्बर कहलायेंगे, हम रक्तपिपासु कहलायेंगे। तब हम उदारता, स्नेह, दया, इंसानियत जैसे मानवीय गुणों से दूर दानव या शैतान ही कहलाए जाएंगे।

इंसान होने का एक ही पैमाना है कि हम कमजोर के साथ खड़े हों। वंचितों और दबाए गए लोगों के साथ खड़े हों।

दोस्तों, जहां मासूम और भोले लोगों का शिकार किया जाता हो वहाँ हम सच को खोजें, अगर हम नन्हें बच्चे की मुस्कान पर आज भी खुश हो जाते हैं, तो उसी मुस्कान की खातिर दुनिया को बेहतर बनाएं। अगर हम पढ़े लिखे हैं तो तथ्यों की तह तक जाएं।

तथ्य किसी उथली जगह नहीं मिलेंगे। सच किसी टीवी चैनल पर चिल्लाएगा नहीं। सच इतना सस्ता नहीं कि थोक के भाव व्हाट्स एप्प और फेसबुक की दीवारों पर गझा पड़ा रहे!

कुछ परतें तो उघाड़िये, कुछ पन्ने तो पलटिये, थोड़ा सा दिमाग पर जोर दोजिये, थोड़ा किताबों की मदद लीजिये, लेकिन सबसे ज़्यादा अपने दिल की सुनिए। अक्सर सही आवाजें आपके बाईं तरफ, धड़कनों में छिपी होती हैं। आप चाहते ही हैं तो सच को जानने से कोई आपको रोक भी नहीं पाएगा।

कोई खबर, कोई तस्वीर, कोई वीडियो असली है या फर्जी, गढ़ा हुआ है या ओरिजिनल, यह जानने के लिए सोचें कि यह इंसानियत को बढ़ाने वाला है या मारने वाला। इस तस्वीर का नतीजा क्या हो सकता है? इसे देखकर आग भड़केगी या बुझेगी? अगर आग भड़केगी तो आखिरकार हमारा-आपका क्या फायदा होगा! तो किसका फायदा होगा ? इसे आखिर किसने जारी किया होगा? ऐसे भड़काऊ चित्र या वीडियो जारी करने के पीछे क्या मकसद हो सकता है?

दोस्तों, एक स्थिति ऐसी आती है जब किसी बहस का कोई अर्थ नहीं रह जाता। जब तर्क केवल सामने वाले को चुप कराने का हथियार भर रह जाते हैं। जब बस कहा जाता है, चिल्लाया जाता है, सुना कुछ नहीं जाता। कोई नहीं सुनता, सब बस चिल्लाते हैं। इतनी जोर से चिल्लाते हैं कि अंततः केवल शोर ही रह जाता है।

ऐसी स्थिति में हम दिल से काम लें। शोर से बाहर आएं। किताबों की शरण में जाएं। पुराने लोगों से बात करें। आज भी पुराने लोग बड़ी तादाद में ऐसे हैं जो बहुत संतुलित बात बताएँगे। वे अपने अनुभवों से बताएँगे कि कत्लोगारत से दुनिया नहीं चलती, हिंसा से दुनिया नहीं चलती, अफवाहों और झूठ से दुनिया को छोड़िये ज़िन्दगी तक नहीं चलती !!

ज़िन्दगी, समाज और दुनिया केवल सच से बेहतर बन सकते हैं।

जो सच है उसे स्वीकार करें। जो गलत है उसे सुधारें। अगर अतीत में कुछ गलत किया तो अब ठीक करें। कोई परफेक्ट नहीं होता, कोई चौबीस कैरट गोल्ड नहीं होता, हाँ, परफेक्ट बनना पड़ता है। हम भेदभाव करते रहे हैं, इंसानों में गैर बराबरी करते रहे हैं, किसी के मेहनत का हक हड़पते रहे हैं, किसी को सताते रहे हैं तो अब उसे छोड़ें। उस पर अड़े रहने से हम बड़े नहीं अड़ियल ही बनेंगे। उसे छोड़ने से ही हम बेहतर बनेंगे।

मुझे केवल इतना पता है कि सच जानना हमेशा से जरूरी रहा है।

हमारे वेदों, साहित्य और धार्मिक ग्रन्थों में सच की पूजा के तमाम आख्यान हैं। वही सत्य इंसानियत का इस दुनिया का आधार है। इसे बचाएँ, इसे खोजें, सतह पर लाएं और पूरे सम्मान से पुनर्स्थापित करें, ताकि समाज बचा रहे, प्रेम बचा रहे, इंसानियत बची रहे और इंसान बचा रहे।

संध्या नवोदिता