सचिव-मंत्री संवाद
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अभिषेक किशोर
"सर! क्या आपने भोपाल में गैस रिसाव के बारे में कुछ सुना है?" बी (ब्यूरोक्रैट) ने गंभीरता से पूछा.
"इसमें विशेष क्या है, मिस्टर बी? गैस सिलिन्डरों में हल्की-फुल्की गैस लिकेज तो सामान्य बात है. जहां तक मुझे मालूम है, दुखी और निराश सासों द्वारा आजकल बहुओं की हत्या के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला यह सबसे उपयोगी हथियार है." पी (पोलिटीशियन) ने एहसान जताते हुए कहा.
"नहीं सर, मैं रसोई गैस के लिकेज के बारे में नहीं कह रहा." बी के स्वर में निराशा के भाव स्पष्ट थे.
"इसके अलावा और क्या हो सकता है, मिस्टर बी?" पी ने अपनी नाराजगी छिपाते हुए अन्यमनस्क होकर कहा.
"सर, कल रात भोपाल स्थित युनियन कार्बाइड लिमिटेड के कारखाने में भारी गैस रिसाव हो गया. समाचार पत्रों के अनुसार मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जानलेवा गैस का रिसाव कारखाने में हुआ. यह रिसाव इतनी गंभीर प्रकृति का था कि भोपाल में तत्काल ही हज़ारों लोगों की मौत हो गई."
"अच्छा ऐसा हो गया! मैं तो समझ रहा था कि गैस का इस्तेमाल सिर्फ़ खाना बनाने में किया जाता है."
"नहीं सर, यह दुर्घटना, जैसा कि समाचार पत्र बता रहे हैं, अबतक की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक है."
"चलो कोई बात नहीं. चाहे इसका नाम त्रासदी ही क्यों न हो, भारत को नंबर एक पर आने का मौका तो मिला." पी अपने इस अनोखे निष्कर्ष पर आनन्दित हो रहा था.
बी भी समर्थन में अपना सिर हिला रहा था.
"मुझे आश्चर्य हो रहा है कि पहली जगह यह दुर्घटना कैसे हुई?" बी स्वयं को संबोधित करते हुए बुदबुदाया.
"किसी ने वाल्व खुला छोड़ दिया होगा."पी के मन में बी के प्रति तिरस्कार का भाव आया - इतनी ऊंची शिक्षा और प्रशिक्षण के बाद भी इन अफ़सरों का कामन सेंस बढ़ नहीं पाता. इतनी छोटी सी बात भी इनकी समझ में नहीं आती.
"कल दिसंबर २-३ की रात में एक टैंकर में जिसमें ४२ टन मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस भरी थी, कहीं से पानी घुस गया. इससे उत्पन्न उच्च तापीय प्रतिक्रिया के कारण टैंक के अंदर का तापमान २०० डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ गया. इसके कारण टैंक के अंदर का दबाव अचानक बढ़ गया. परिणामस्वरूप टैंक से गैस निकलने का मार्ग खुल गया. सारी विषैली गैस वातावरण में आ गई. उस समय पश्चिमोत्तर हवा चल रही थी, जिसके कारण विषैली गैस का विस्तार भोपाल शहर तक हो गया." बी ने समाचार पत्र पढ़ते हुए यह स्पष्ट किया. उसे अच्छी तरह मालूम था कि उसके मुंह से निकला एक भी शब्द पी की समझ में नहीं आया होगा. वह यह निश्चय नही कर पा रहा था कि इसका कारण पी की अल्प-शिक्षा या जनता के प्रति उसकी असंवेदनशीलता थी.
"इस स्तर की भयानक दुर्घटना के कारण सेवा कार्यक्रमों को अनायास ही मौका हाथ लग जाता है." पी ने गंभीरता से कहा.
"आगे क्या योजना है, सर?" बी ने धूर्तता से पूछा.
"मैं सोचता हूं इस भयावह दुखद दुर्घटना से प्रभावित लोगों के लिए अविलंब एक राहत कोष की स्थापना कर दी जाय." पी ने धीरे से कहा. अपनी बात जारी रखते हुए पी ने बी से मुखातिब होते हुए पुनः कहा - "तुम तो राहत राशि का प्रबंधन भलीभांति जानते हो. मैं तुम्हें ही इसका कर्ता-धर्ता बनाना चाहता हूं. मेरे कहने का क्या तात्पर्य है, तुम यह तो जान ही गए होगे."
"जो आप चाह रहे हैं, मैं अच्छी तरह समझ रहा हूं सर. सर! मैंने पता किया है कि सरकार इस हादसे की तह में जाने के लिए ढेर सारे जटिल उपकरण आयात करनेवाली है. मेरे एक निकट के संबंधी आयात-निर्यात के व्यवसाय में वर्षों से लगे हैं. अगर आपकी कृपा हो जाय तो इन उपकरणों की सप्लाई का ठेका उनको मिलने में कोई दिक्कत नहीं आएगी."
बी ने हां में अपनी सहमति दी और सधी हुई चाल भी चल दी.
"मिस्टर बी, मैंने सुना है कि आजकल आप करेंसी नोटों की गड्डियों से बने गद्दे पर सोते हैं."
"सर! आजकल कुछ ज्यादा ही कैश मैनेज करना पड़ रहा है. क्या बताऊं साहब, मज़बूरी में ऐसा करना पड़ रहा है." बी ने दांत निपोरते हुए सफाई दी.
"सर! क्या मेरे लिए स्विस बैंकों में एक खाता नहीं खोलवा देंगें? बड़ी कृपा होगी. इन बैंकों के मार्फ़त ‘मनी मैनेजमेंट’ आसान होता है सर."
"नहीं मिस्टर बी. स्विस एकाउंट आपलोगों के लिए नहीं है. आखिर आप किस बात से डर रहे हैं?"
"सर, मिस्टर जे (ज्युडिसियरी) जरा सी भी गंध पाते ही अपनी छड़ी घुमाने लगते हैं." बी ने अपनी चिन्ता जाहिर की.
"जे तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा." पी ने विश्वासपूर्वक कहा.
"ऐसा क्यों सर?"
"क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता - न्याय अंधा होता है. जे इज़ ब्लाइंड."
बी और पी ने एकसाथ जोरदार ठहाका लगाया.
(abhiblog से साभार)
अनुवादक - विपिन किशोर सिन्हा, वाराणसी


