सत्ता की अंधी गली के अलावा कुछ नहीं हो सकती विचारधारा और सिद्धान्त विहीन राजनीति की मंजिल
सत्ता की अंधी गली के अलावा कुछ नहीं हो सकती विचारधारा और सिद्धान्त विहीन राजनीति की मंजिल
‘आप के नेता कांग्रेस के मौसेरे, भाजपा के चचेरे और कॉरपोरेट के सगे भाई हैं’ से आगे की कड़ी...
मोदी का प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में अवतार, मीडिया की देन है (आरएसएस की उतनी नहीं),
उसी तरह केजरीवाल भी मीडिया की रचना
कॉरपोरेट पॉलिटिक्स की नई बानगी-2
प्रेम सिंह
आज तक देश में जितनी राजनीतिक पार्टियाँ बनी हैं, उनमें किसी का भी एकमात्र लक्ष्य आम आदमी पार्टी की तरह तत्काल और येन-केन-प्रकारेण चुनाव लूटना नहीं रहा है। केवल चुनाव लड़ने और जीतने को ही राजनीति मानने वाली पार्टी, असफलता और सफलता दोनों में, मुख्यधारा राजनीतिक पार्टियों से ज्यादा नीचे फिसल सकती है। पिछले दिनों हमें उत्तराखंड के गांव कांडीखाल में युवाओं के लिये आयोजित राष्ट्र सेवा दल के शिविर में जाने का अवसर मिला। वहाँ आए अंग्रेजी साप्ताहिक ‘जनता’ के संपादक डॉ. जीजी पारीख से हमने पूछा कि महाराष्ट्र में जो समाजवादी साथी आप में शामिल हुये हैं उनका उत्साह कैसा है?
डॉ. पारीख ने बताया कि वे सभी दिल्ली विधानसभा के चुनाव पर आंख गड़ाए हुये हैं।अगर दिल्ली में आप की सरकार बन जाती है तो वे पार्टी में रहेंगे, अन्यथा कुछ और सोचेंगे। यह बच्चा भी बता सकता है कि दिल्ली में कांग्रेस-भाजपा के अलावा किसी अन्य पार्टी की सरकार नहीं बन सकती। अलबत्ता, दोनों को बहुमत में कुछ सीटें कम पड़ जाएं और आप को कांग्रेस-भाजपा के नक्शेकदम पर चलते हुये कुछ सीटें मिल जायें तो उसके नेता दोनों के साथ जा सकते हैं।
कॉरपोरेट पॉलिटिक्स की नई बानगी पेश करने वाली इस पार्टी की कुछ हाल की गतिविधियों पर गौर करें तो उसके चरित्र को अच्छी तरह समझा जा सकता है।
भारत की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियाँ मुसलमानों को वोट बैंक मानती हैं।
आम आदमी पार्टी के नेताओं की नजर में भी मुसलमान, भारत के नागरिक नहीं, वोट बैंक हैं।
पिछले दिनों मीडिया में खबर थी कि कुछ खास मुसलमानों को आप में शामिल किया गया। वर्तमान दौर में कह सकते हैं, ‘मीडिया मेहरबान तो गधा पहलवान’। जैसे मोदी का प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में अवतार मीडिया की देन है (आरएसएस की उतनी नहीं), उसी तरह केजरीवाल भी मीडिया की रचना है। मीडिया आम आदमी पार्टी की खबरें ही नहीं देता, बल्कि उस रूप में देता है जैसा पार्टी का मीडिया प्रकोष्ठ चाहता है। आप के नेताओं ने चाहा कि खबर इस तरह प्रसारित हो कि लोगों में यह संदेश जाये कि देश के सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमानों में आम आदमी पार्टी की घुसपैठ हो गयी है।
यहां ‘खास मुसलमान’ वाली बात पर भी गौर करने की जरूरत है।
राजनीतिक पार्टियाँ खास मुसलमानों की मार्फत पूरे मुस्लिम समुदाय को वोट बैंक बनाती हैं। खास मुसलमान केवल सेकुलर पार्टियों को ही नहीं, कुछ न कुछ भाजपा को भी उपलब्ध हो जाते हैं। भारत की राजनीति पिछले दो दशकों में अमेरिका-इजरायल की धुरी से बंध गयी है तो उसमें इन खास मुसलमानों की भी खासी भूमिका है।
आप में शामिल होने वाले खास मुसलमानों को लगा होगा कि सत्ता में आने पर पार्टी उन्हें बड़े ओहदे देगी। आजकल इसे ही धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।
आप में भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा जैसी पार्टियों के नेताओं के शामिल होने की खबरें मीडिया में छपती हैं। अभी इन पार्टियों की छंटोड़ (काने-गले होने के चलते ढेर से अलग निकाल दिये जाने वाले फल-सब्जियाँ) आप में शामिल हो रही है। चुनाव नजदीक आते-आते टिकट न मिलने पर असंतुष्ट होने वाले कुछ स्थापित नेता भी आप में शामिल हो सकते हैं। इस राजनीति की तार्किक परिणति झुग्गियों, पुनर्वास कॉलोनियों और गाँवों में शराब और नोट बाँटने में होगी।
आप का कांग्रेस-भाजपा को टक्कर देने लायक धनबल चुनाव आने तक बना रहेगा तो शराब व नोट बाँटने वाले स्वयं यह काम संभाल लेंगे।
विचारधारा और सिद्धान्त विहीन राजनीति की मंजिल सत्ता की अंधी गली के अलावा कुछ नहीं हो सकती।
आजकल आप द्वारा किये जाने वाले खर्च और उसे मिलने वाले धन की खासी चर्चा सुनने को मिलती है। यह भी प्रचारित किया जा रहा है प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव खर्च के लिये पार्टी की ओर से कितने लाख रुपये दिये जाएंगे। तीस-पैंतीस लाख का आंकड़ा बताया जाता है जो वास्तविकता में एक करोड़ पहुँच ही जायेगा। उम्मीदवारों के लिये यह बहुत बड़ा लालच है।
आप द्वारा खेला जाने वाला पैसे का यह खेल आम चुनाव आने तक किस कदर बढ़ जायेगा, इसका अंदाजा अभी से लगाया जा सकता है।
आप की अभी तक की राजनीतिक गतिविधियों से यह स्पष्ट हो गया है कि उसके नेता, अन्य मुख्यधारा राजनीतिक पार्टियों की तरह, राजनीति को सबसे पहले पैसे का खेल मानते हैं। यानी वे गरीब देश में महँगे चुनावों के हामी हैं, जिन्हें भविष्य में कॉरपोरेट राजनीति के रास्ते पर और महँगे होते जाना है।
आप पार्टी के प्रमुख नेताओं को किस स्रोत से कितना विदेशी धन मिलता है, इसका कुछ ब्यौरा भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के दौरान ‘समयान्तर’ में प्रकाशित हुआ था। अब तो काम काफी बढ़ गया है। धन की बाढ़ भी चाहिए।
दरअसल, आप नेताओं की अभी तक की कुल योग्यता पैसा बनाने और झींटने की रही है। आगे फोर्ड फाउंडेशन जैसी नवसाम्राज्यवाद की पुरोधा संस्थाओं और कॉरपोरेट घरानों से ज्यादा से ज्यादा धन झींटने में इस योग्यता का उत्कर्ष देखने को मिलेगा। देश-विदेश के लोग खुद पैसा दे रहे हैं, यह कोई बचाव नहीं है।
सब जानते हैं, पैसा ही पैसे को खींचता है।
मुख्यधारा राजनीतिक पार्टियों की तरह आप का भी किसानों, आदिवासियों, दलितों, मजदूरों, कारीगरों, छोटे दुकानदारों/व्यापारियों, छात्रों, बेरोजगारों से सरोकार नहीं है।
यह मध्यवर्ग द्वारा मध्यवर्ग की मध्यवर्ग के लिये बनी पार्टी है। ऐसा मध्यवर्ग जो नवसाम्राज्यवादी लूट में हिस्सा पाता है और अपने को नैतिक भी जताना चाहता है। भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में वह इतने बड़े पैमाने पर यह जताने के लिये कूदा था कि पिछले 25 सालों से जो विस्थापन और आत्महत्याओं का दौर उसकी आँखों के सामने चला, उसमें सहभागिता के बावजूद उसकी नैतिक चेतना मरी नहीं है।
मध्यवर्ग द्वारा खड़ा किया गया वह तमाशा इतना जबरदस्त था कि कई जेनुइन विचारक व जनांदोलनकारी भी उसकी चपेट में आ गये।
आगे भी जारी ....
Save


