पलाश विश्वास
आखिरकार आप के सरदर्द से निजात पाने के लिये वामपंथी, दक्षिणपंथी, मध्यपंथी, बहुजनपंथी राजनीति ने समाजवादी बहिष्कार के बावजूद अल्पमत सरकार की ओर से पेश लोकपाल विधेयक को अल्पमती राज्यसभा में पारित करा लिया।
हम पहले ही कह रहे थे कि खंडित जनादेश ने छात्र युवा महिला जैसी सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी की दिशाएं खोल दी हैं। वर्ण वर्चस्वी रालेगण सिद्धि में किरण बेदी और जनरल वीके सिंह की मौजूदगी में अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जीत लेने का जश्न शुरु कर दिया है। अभी लोकसभा में कल यह विधेयक पास होना है और अभी राष्ट्रपति का दस्तखत बाकी है। लेकिन इस प्रकरण ने साबित कर दिया है कि सत्तावर्ग के संकट में, बदलाव के आसार दिखते ही कैसे सर्वदलीय सहमति से आनन-फानन में देश की संसद कानून बनाती बिगाड़ती है।
न्यायपालिका की अवमानना सारी सरकारें कर रही हैं। असंवैधानिक गैरकानूनी सीआईए नाटो की खुफिया निगरानी परियोजना के कॉरपोरेट प्रमुख तो प्रधानमंत्रित्व के दावेदार भी हैं। तेल कम्पनियाँ और तमाम बैंक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुला उल्लंघन करते हुये लोगों को आधार नम्बर जमा करने का फतवा जारी कर रही हैं और मीडिया निराधार आधार को भारतीय नागरिकता की पहचान बनाने की मुहिम चलाकर महाविध्वंस रचने में लगा है। पाँचवी-छठी अनुसूचियों, पर्यावरण कानून, वनाधिकार और स्थानीय निकायों के अधिकारों पर जो फैसले और आदेश सुप्रीम कोर्ट के हैं, भारतीय संविधान में जो प्रावधान हैं, उनका खुल्ला उल्लंघन हो रहा है। लेकिन अवमानना का कोई मामला दर्ज नहीं हो रहा है और न सर्वोच्च न्यायालय कोई संज्ञान ले रहा है। इसके विपरीत दागियों को जेल भेजने और चुनाव लड़ने से रोकने का जो फैसला आया, लालू की गिरफ्तारी और जमानत पर रिहाई के मध्य उसका क्या हश्र हुआ, आपके सामने है। बाकी मुद्दों को हाशिये पर रखकर एनजीओ प्रायोजित समलैंगिकता के अधिकार पर कैसे विमर्श की दिशा मोड़ दी गयी है, संसद में विधेयकों को निःशब्द पारित कराने और परदे के पीछे संसद और सरकार के बाहर कारपोरेट नीति निर्धारण में उसका भी बड़ा काम है। हम आपका ध्यान लगातार इस ओर खींचते रहे हैं।
पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना ।