आप ने न सिर्फ कांग्रेस को रौंदा बल्कि मोदी को भी रोका
अंबरीश कुमार
चार राज्यों के चुनाव पर दिल्ली का चुनाव भारी पड़ गया है। आम आदमी पार्टी ने ना सिर्फ कांग्रेस को रौंदा है बल्कि मोदी को भी रोका है। यह वह वास्तविकता है जिसे अब स्वीकार करना चाहिए। भले इससे हम इससे सहमत हों या ना हों। इससे सभी दलों के साथ वामपंथियों को ज्यादा सबक लेना चाहिए। मायावती और मुलायम को भी। क्योंकि बिना किसी जातीय आधार के एक टीम बनाकर छात्र संघ के चुनाव की तरह अरविन्द केजरीवाल ने चुनाव लड़ा और उसी अंदाज में सबको ध्वस्त भी किया।
इन नतीजों की उम्मीद किसी को भी नहीं थी। इस तरह का चुनाव पहले कभी नहीं देखा गया था। अगर अन्ना हजारे खुद चुनाव मैदान से ना भागते तो आज दिल्ली में उनकी बहुमत की सरकार होती। उन्होंने राजनीति से पलायन किया और जो राजनैतिक पूंजी उनके आंदोलन से इकठ्ठा हुई थी उससे ही केजरीवाल ने नया इतिहास रचा। ऐसा नहीं था कि इसके पीछे राजनैतिक सोच नहीं थी। खांटी समाजवादी नौजवानों की एक टीम भी परदे के आगे और पीछे थी। प्रोफ़ेसर आनंद कुमार, योगेन्द्र यादव से लेकर अजीत झा सामने थे तो बहुत से लोग पीछे भी थे। मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास से लेकर संजय सिंह तक ही नाम नही सीमित है, लम्बी सूची है।
यह टीम आंदोलन से निकली और कांग्रेस के दंभ का शिकार हुई। जन लोकपाल की बात अगर कांग्रेस मान लेती तो सफ़र इतना लम्बा नहीं होता। पर इससे राजनीति की जो सफाई शुरू हुई है वह देश की भावी राजनीति के लिए शुभ संकेत है। वाज जाति, धर्म और बाहुबल की राजनीति के लिए बड़ी चेतावनी भी है। अब तक अपनी राजनीति जिन परंपरागत सांचों से चल रही थी वह टूट भी सकता है यही अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम ने बताया है। यह झटका सिर्फ कांग्रेस के लिए नही है बल्कि हिंदुत्व के नाम पर मोदी को आगे कर साम्प्रदायिक राजनीति करने वाली भाजपा के लिए भी है, तो दलित पिछड़े और मुस्लिम की सोशल इंजीनियरिंग से जीतने वाले मुलायम सिंह, मायावती, लालू, पासवान और नीतीश की राजनीति को भी है।
यह प्रयोग आगे बढ़ेगा और बदलाव भी लाएगा। हालाँकि इसकी वजह से आगामी लोकसभा चुनाव में ही किसी बड़े बदलाव की अपेक्षा नहीं की जा सकती है क्योंकि दिल्ली जैसे महानगर और दूर दराज के गांवों की राजनीति में इतनी जल्दी किसी बदलाव के लिए समाज भी तैयार नहीं है। पर बड़े शहरों से यह प्रयोग शुरू हुआ तो भी बड़े दलों को बड़ी चुनौती मिल सकती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मोदी को लेकर दिल्ली में बड़ा भ्रम भी टूट गया है। दिल्ली में जीती तो सिर्फ आप पार्टी है बाकी सभी की हार हुई है। दो चार सीटों के समीकरण से जनादेश नहीं मापा जा सकता और मोदी को सिर्फ राहुल गांधी रोक सकते हैं यह भ्रम भी टूट चुका है। अब लोकसभा चुनाव को लेकर जो तैयारी होगी उसमें यह सभी को ध्यान भी रहेगा। अब बारी उत्तर प्रदेश और बिहार की है।
आप पार्टी की इस सफलता से सबसे ज्यादा सबक लेने और मंथन करने की जरुरत वाम दलों की है। जिनका कालेज और विश्विद्यालयों में जनाधार ख़त्म होता जा रहा है और पार्टी में नौजवानों की संख्या कम होती जा रही है। आम पार्टी में नेतृत्व की अगली क़तर में सिर्फ नौजवान ही है, यह ध्यान रखना चाहिए।
अंबरीश कुमार, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। छात्र राजनीति के दौर से ही जनसरोकारों के पक्षधर रहे हैं। मीडिया संस्थानों में पत्रकारों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं।