समाजवादी तिलक में लंच पर हिंदू राष्ट्र की खिचड़ी!
समाजवादी तिलक में लंच पर हिंदू राष्ट्र की खिचड़ी!
समाजवादी तिलक और एक मंच पर लालू-मुलायम-मोदी और हिंदू राष्ट्र का सपना
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पोते लोकसभा सदस्य तेज प्रताप सिंह यादव और राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी राजलक्ष्मी की शादी से पहले आयोजित तिलक समारोह समाचार माध्यमों की सुर्खियों में रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सूट की नीलामी की जितनी चर्चा हुई इस दिव्य समाजवादी तिलक की चर्चा उससे कम न रही। मुलायम सिंह यादव खुश हो सकते हैं कि मोदी के सूट के मुकाबले उनकी दावत ज्यादा चर्चा में रही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस समाजवादी तिलक में शिरकत की। प्रधानमंत्री ने तेज प्रताप सिंह यादव को आशीर्वाद दिया और कार्यक्रम स्थल पर करीब 50 मिनट बिताए।
सोशल मीडिया पर चर्चा रही कि लगभग दो लाख लोगों के दिव्य भोजन का प्रबंध किया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ही सवा लाख लोगों को जर्मन हैंगर्स पंडाल में खाना परोसा गया। खाने के लिए 80 हजार स्क्वेयर फीट में तीन पंडाल लगाए गए। पानी के 100 टैंकर भी लगाए गए। जर्मन हैंगर्स वाटर और फायर प्रूफ थे। कई तरह के पंडाल लगाए गए। 500 सुपीरियर क्वॉलिटी के स्विस कॉटेज पंडाल एक स्टेडियम में लगाए गए। 1500 लोगों के लिए 250 साधारण कॉटेज पंडाल एक कॉलेज ग्राउंड में लगाए गए। इटावा जिले के करीब सभी होटल बुक थे। मेहमानों को मैनपुरी, आगरा, फिरोजाबाद और दूसरे जिले के होटलों में भी ठहराया गया।
वीआईपी मेहमानों के लिए खाना बनाने के दिल्ली और मुंबई के फाइव स्टार होटलों के शेफ बुलाए गए। बिहार के खास व्यंजन मसलन-बाटी चोखा और लिट्टी भी इन फाइव स्टार शेफ ने बनाए। नरेंद्र मोदी के लिए गुजराती डिशेज भी बने। खाने में 100 से ज्यादा व्यंजन परोसे गए।
यूँ तो विवाह आदि निजी समारोह हैं और जब दोनों पक्ष दो राज्यों में सत्तारूढ़ दल हैं, तो जगजाहिर है कि समारोह भव्य होगा ही। लेकिन यह समाजवादी तिलक सवालों के घेरे में है और सही कारणों से इस पर सवाल उठ रहे हैं। लालू और मुलायम दोनों ही डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद के वारिस होने और सामाजिक न्याय के प्रहरी होने का दावा करते हैं। इस लिहाज से यह तिलक न तो समाजवाद के पैमाने पर दुरूस्त था और न सामाजिक न्याय के पैमाने पर।
डॉ. लोहिया के जमाने से ही समाजवादियों ने नेहरू-गांधी परिवार के परिवारवाद को संघियों के साथ मिलकर ज़िन्दगी भर कोसा है। इन समाजवादियों ने लोकतंत्र में रानी बनाम मेहतरानी जैसे जुमले गढ़े और नेहरू-गांधी परिवार को राजपरिवार साबित करने में सफलता भी पाई। आज यही सवाल इन समाजवादियों से है।
तेजप्रताप के तिलक में ही दो लाख लोगों को दिव्य भोजन कराया गया, जाहिर है विवाह समारोह में यह संख्या 5 लाख तक पहुंच सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आयकर विभाग का अंदाजा है कि इस समारोह में दो करोड़ रुपए का बोतलबंद पानी पिया गया। जब दो करोड़ रुपए का पानी ही पी लिया गया तो इस लिहाज से भोजन पर सौ करोड़ खर्च हुए ही होंगे।
क्या नेहरू-गांधी परिवार के परिवारवाद को कोसने वाले समाजवादी बता सकते हैं कि प्रियंका गाधी के विवाह समारोह में कितने लोगों को दिव्य भोजन कराया गया? स्वयं इंदिरा गांधी का विवाह बहुत सादगी के साथ संपन्न हुआ था। लेकिन डॉ. लोहिया के वारिसों का समाजवाद कमाल का है।
ठीक है, समाजवादी होने का मतलब गरीबी में जीना नहीं है, लेकिन समाजवाद के नाम पर इस तरह का भौंडा प्रदर्शन भी जायज नहीं है। एक तरफ लालू प्रसाद यादव ट्वीट करते हैं- “प्रधानमंत्री जी, कभी निगम स्तर के चुनावों में भाषणबाजी से फुर्सत मिले तो जून के बाद किसानों की आत्महत्या के आँकड़े भी देख लेना”, तो क्या लालू और मुलायम से ये सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि जब 2 लाख लोगों के शाही भोज का प्रबंध कर रहे हो तो किसानों की आत्महत्या के आँकड़े भी देख लेना !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी होने का दावा करने वाले लालू और मुलायम ने मोदी को दावतनामा भेजा। इस दावतनामे का इस अर्थ में तो स्वागत किया जाना चाहिए कि राजनीतिक मतभेदों को दूर रखकर यादव शासकों ने मोदी को बुलाया, लेकिन इस पर सवाल भी है। क्या ऐसे ही राजनीतिक मतभेद भुलाकर सोनिया और राहुल को भी दावतनामा भेजा गया? क्योंकि दस वर्ष तक यूपीए सरकार लालू-मुलायम के समर्थन से चली है। ऐसी ही सदाशयता मायावती को दावतनामा भेजकर क्यों नहीं दिखाई गई? क्या मायावती या सोनिया गांधी व राहुल गांधी को भी दावतनामा देकर ऐसी ही सदाशयता नहीं दिखाई दी जानी चाहिए थी?
जाहिर है ऐसे में सवाल उठेंगे ही कि कहीं मोदी को दी गई दावत की आड़ में भविष्य में कुछ राजनीतिक समीकरण बनाने की चेष्टा तो नहीं है ? भले ही निजी समारोह में ही सही, मोदी-मुलायम-लालू, एक मंच पर दिखाई दिए, तो इसके राजनीतिक अर्थ तो ढूंढे ही जाएंगे। राजनीति में डिनर पर चर्चा होती ही है और नरेंद्र मोदी तो चाय पर चर्चा करके बराक ओबामा से भी दोस्ती गांठ लेते हैं, तब इस समाजवादी तिलक के सियासी अर्थ भी निकाले ही जाएंगे। क्या इस समाजवादी तिलक में लंच पर हिंदू राष्ट्र की खिचड़ी पकी है?
मोदी का इस तिलक में पहुंचना यादव शासकों के हलकेपन को भी उजागर कर गया। एक तरफ आप मोदी से मुकाबला करने के लिए जनता परिवार इकट्ठा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मोदी के साथ चित्र खिंचाने के लिए दोनों यादव राजवंश उतावले हुए जा रहे हैं। जब आपके परिवार के लोग ही मोदी के साथ एक क्लिक के लिए गिरे पड़े जा रहे हैं, उस स्थिति में आप अपने कार्यकर्ताओं को क्या संदेश दे रहे हैं, ये समाजवादी ही जानें।
इस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी का कितना असर था, इस बात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि सपा महासचिव और मुलायम सिंह के चचेरे भाई रामगोपाल यादव, प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिंचवाने के लिए सोफे के हैंडल पर ही बैठ गए।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी जैसे ही वे तेज प्रताप को आशीर्वाद देने पहुंचे, मंच का नजारा ही बदल गया। यादव परिवार का हर शख्स उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए उतावला हो गया। इनमें महिलाएं भी शामिल रहीं।
इस समाजवादी तिलक पर सवाल इसलिए उठेंगे और उठने ही चाहिए, क्योंकि ऐसे ही मिलते-जुलते सवाल यही मुलायमपंथी समाजवादी चुनावी मुद्दे बनाते रहे हैं। मायावती को दलित नहीं दौलत की बेटी कहना, मायावती के जन्मदिन पर मिलने वाले नोटों की माला पर बरसों तक बयानबाजी करना, इन मुलायमपंथी समाजवादियों का शगल रहा है।
आप मायावती के जन्मदिन पर उनके समर्थकों से मिल रहे उपहार पर बवाल मचाएंगे, मोदी के नौलखिया सूट पर हूट करेंगे लेकिन चाहेंगे कि 2 लाख लोगों के दिव्य समाजवादी भोजन पर सवाल न उठाया जाए! वाह रे समाजवाद।
उत्तर प्रदेश सरकार गरीब बच्चियों की शादी और शिक्षा पर कई कल्याणकारी योजनाएं चलाती हैं, यानी सत्तारूढ़ दल सूबे के अवाम की असल माली हालात से वाकिफ है, उसके बाद भी अगर ऐसी दावतें होती हैं तो सवाल तो उठेंगे ही।
जाहिर है कि अगर नरेंद्र मोदी के सूट की नीलामी ने इस देश के गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ाया है तो लालू-मुलायम भी इस समाजवादी तिलक के जरिए इस देश के 40 फीसदी से ज्यादा गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे गरीबों का मज़ाक उड़ाने से पीछे नहीं रहे हैं।
अमलेन्दु उपाध्याय


