सरकार की अराजकता और विपक्ष के नकारेपन के खिलाफ जनता को खड़ा होना ही होगा
सरकार की अराजकता और विपक्ष के नकारेपन के खिलाफ जनता को खड़ा होना ही होगा
ऐसा लग रहा है कि जैसे लोग भांग खाये घूम रहे हों। पूंजीपतियों के दबाव में मोदी सरकार ने किसानों को उसके खेत में और मजदूरों को फैक्टरियों, निजी कार्यालयों में बंधुआ बनाने की पूरी तैयारी कर ली है। आदमी जो थोड़ा बहुत अपने हक के लिए लड़ता था, उस पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की तैयारी है। निजी संस्थाओं पहले से ही शोषण और दमन का खेल चरम पर है। ऊपर से यह सरकार 44 श्रम कानूनों में बदलाव करने जा रही है।
ये सब संशोधन पूंजीपतियों के पक्ष और श्रमिकों के विरोध में होने हैं। मतलब श्रमिक जो थोड़ा बहुत अन्याय से लड़ लेता था उसको पूरी तरह से पंगु बनाने की तैयारी कर ली गई है।
भूमि अधिग्रहण में संशोधन कर किसानों, आदिवासियों की जमीन को हथियाकर पूंजीपतियों को सौंपने की पूरी तैयारी इस सरकार ने कर ली है।
अब तक देश में चल रही लूट-खसोट व दूसरी जानकारियां आरटीआई (RTI) के तहत मांगी जाती रही हैं। यह सरकार आरटीआई को खत्म करने की तैयारी में है।
चंदे के मामले में पहले ही सरकार के अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल (Attorney General Venugopal,) ने कह दिया है कि जनता को चंदे से क्या मतलब है। उसे तो अपने उम्मीदवार से मतलब होना चाहिए। मतलब जनता की औकात बताने की कोशिश इस सरकार ने की है। ये वे ही लोग हैं जो चुनाव के समय जनता करा जनार्दन कहते हैं।
बढ़ते (NPA) के चलते अर्थव्यवस्था (Economy) पूरी तरह से गड़बड़ा गई है। ये जो लोग शेयर मार्केट (Share Market) की बात करते हैं। शेयर माकेट में अरबों का नुकसान हो चुका है। लाखों डिग्रीधारक युवा मजदूरी करने को मजबूर हैं। वह भी नहीं मिल रही है।
निजी संस्थानों में 10-12 घंटे काम लिया जा रहा है। वह स्तर से गिरकर। पैसा तो नौकरी में रहा ही नहीं है अब मान और सम्मान भी नहीं बचा है।
जो लोग पेंशन ले रहे हैं या फिर पहली कमाई से संपन्न हैं। वे अपने बच्चों से आज के मार्केट की स्थिति के बारे में पूछें। मंथन करें कि इस व्यवस्था में उनके बच्चों का क्या होगा। खुद तो पेंशन ले रहे हैं पर उनके बच्चों को नहीं मिलेगी। हां देश में यदि कोई एक दिन के लिए भी जनप्रतिनिधि बन जाए उसे जिंदगी भर पेंशन मिलेगी। पर साठ साल तक नौकरी करने वाले को नहीं। इस पर प्रधानमंत्री नहीं बोलेंगे ?
The public has made its own waste system itself.
संविधान की रक्षा करने वाली संस्थाएं न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया इस सरकार ने पूरी तरह से पंगु बना दी हैं। अपने पक्ष में सरकार सबका इस्तेमाल कर रही है। जो लोग अमरीका, चीन, रूस जैसे देशों से प्रधानमंत्री से अच्छे संबंध की बात कर रहे हैं, वे यह बात अच्छी तरह से समझ लें कि इन सब देशों को व्यापार करना है। उन्हें मालूम है कि हमारे देश में उनका सामान खरीदने के लिए लोग तो हैं ही। उनके कारोबार के लिए न केवल जमीन सस्ती उपलब्ध हो जाएगी बल्कि श्रम भी। इसका वादा मोदी ने इन देशों से कर दिया है। भूमि अधिग्रहण और श्रम कानून में तो पिछली सरकार में ही संशोधन होने वाला था। वह तो राज्यसभा में बहुमत न होने की वजह नहीं हो पाया था। अब हो जाएगा। जनता ने अपनी बर्बाद की व्यवस्था खुद ही कर दी है।
भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष के नेताओं को तो टारगेट बनाया जा रहा पर सत्तापक्ष के एक भी नेता पर अभी तक शिकंजा नहीं कसा गया है। क्या सत्ता में बैठे सभी नेता ईमानदार हैं। ये जो दूसरे दलों से नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं ये सब दूध के धुले हुए हैं ? तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, सपा, इनेलो समेत विभिन्न दलों से ये जो नेता भाजपा में शामिल हुए हैं इनकी छवि तो बहुत अच्छी है।
मतलब यदि बचना है तो भाजपा में शामिल हो जाओ। भाजपा में शामिल होने वाले ये सब वे नेता अपनी खाल बचाने के लिए वहां पहुंच रहे हैं।
जिन-जिन प्रदेशों में चुनाव आने वाले हैं, उन प्रदेशों के मुख्य नेताओं को टारगेट बनाया जा रहा है। चुनाव जीतते ही इन नेताओं पर कसा जा रहा शिकंजा ढीला कर दिया जाएगा। ये सब ईमानदार हो जाएंगे। मतलब सरकार को देश और समाज का कोई भला नहीं करना है। अपनी सत्ता के लिए संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल करना है। जैसे कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को आय से अधिक संपत्ति मामले में क्लीन चिट दिलवा दी थी। अब जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव आ रहे हैं तो फिर से अखिलेश यादव पर शिकंजा कसने की तैयारी है।
केंद्र सरकार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अधिकतर जजों को भी अपने पक्ष में कर लेती है। उनको किसी आयोग के चेयरमैन का लालच दे दिया जाता है। हर कोई अपना बुढ़ापा सुधारना चाहता है। जमीर तो लोगों के अंदर बचा ही नहीं है।
आज देश जिस मुकाम पर आकर खड़ा हो गया है। ऐसे में मोदी सरकार की दोगली नीति को समझना होगा। जनता को खड़ा होकर भ्रष्टाचार मामले में विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों के भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। सरकार से रोजगार, सुरक्षा के मामले में जवाब मांगना होगा।
विशेषकर युवाओं को जाति और धर्म के नाम पर न भटकर कर अपने भविष्य की चिंता करनी होगी। अन्याय का विरोध करना होगा। राजनीतिक दल सत्ता के लिए जाति और धर्म के नाम पर पर लड़ाकर युवाओं का भविष्य बर्बाद कर दे रहे हैं। देश में सभी नीतियां पूंजीपतियों के हित को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं। बनाई भी क्यों नहीं जाएंगी जब ये दल इन्हीं के पैसे से ही राजनीति करते हैं और इनके ही पैसे से चुनाव लड़ते हैं तो फिर इनके लिए ही काम करेंगे न। कभी लोगों ने यह जानने की कोशिश की है कि मोदी जिस हेलीकाप्टर से चुनाव में घूमते रहे आखिर इस पर कितना खर्च आ रहा है। या फिर इसका खर्च निकालने के लिए उन्हें प्रधानमंत्री बनकर कितना जनता का नुकसान करना पड़ रहा होगा।
मोदी के मित्र अडानी पर 72 हजार करोड़ का कर्ज है। बैंकों का पूंजीपतियों पर पांच लाख करोड़ का कर्ज है। 1.48 लाख रुपये एनपीए यानी कि बट्टा खाते में डाल दिया गया है। इनके नाम भी लोगों को नहीं बताए जा रहे हैं क्योंकि ये लोग इज्जतदार लोग हैं। यदि इनका पता जनता को चल जाए तो इनकी इज्जत चली जाएगी।
आज रिजर्व बैंक की स्थिति यह है कि उसका रिजर्व पैसा भी सरकार ने निकाल लिया है। अच्छी छवि वाले व्यावसायियों के कर्जे के लिए भी बैंकों के पास पैसा नहीं है।
इन सबके बावजूद यह कहा जा रहा है कि देश में सब कुछ अच्छा चल रहा है। मोदी ने देश को विश्वगुरु बना दिया है। अमरीका, रूस, चीन, फ्रांस सभी देश मोदी के पीछ-पीछे घूम रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि पाकिस्तान को औकात बताते-बताते हमारी ही औकात पूरी दुनिया जान जाए। यदि लोग अभी भी जाति और धर्म से बाहर निकलकर इस अराजकता के खिलाफ न खड़े हुए तो फिर ये लोग खड़ा होने का मौका भी न देंगे।
हां मैं भी इसके पक्ष में हूं कि विपक्ष में भी बैठे लुटेरों की संपत्ति जब्त उन्हें जेल में डाला जाए पर इसके साथ ही सत्ता में बैठे लुटेरों, चोरों और अपराधियों को भी न बख्शा जाए।
चरण सिंह राजपूत
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


