कल 19 सितम्बर को बाटला हाउस की सातवीं बरसी पर रिहाई मंच यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में आयोजित करेगा सेमिनार
’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर सेमिनार, मुख्य वक्ता होंगे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम
लखनऊ 18 सितम्बर 2015। बाटला हाउस फर्जी मुडभेड़ कांड की सातवीं बरसी पर रिहाई मंच 19 सितम्बर को यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में ’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर सेमिनार आयोजित कर रहा है जिसके मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, इतिहासकार व वरिष्ठ रंगकर्मी शम्सुल इस्लाम होंगे।

जारी प्रेस विज्ञिप्ति में रिहाई मंच नेता हरे राम मिश्र ने कहा कि अब से सात वर्ष पूर्व होने वाला बटला हाउस फर्जी मुडभेड़ राज्य के फासिस्ट निजाम की अभिव्यक्ति था। उन्होंने कहा कि एमएम कालुबर्गी, डाभोलकर और पांसरे की हत्या को राज्य की मंशा के मुताबिक समाज के फासीवादीकरण के रूप में देखा जा सकता है। केंद्र में भाजपा-आरएसएस की सरकार बनने के बाद से ही लगातार दंगा-फसाद, घर वापसी, चर्चों पर हमले, मांस की बिक्री पर प्रतिबंध, लव जिहाद आदि के माध्यम से साम्प्रदायिक उन्माद की राजनीति को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है। पंद्रह महीने के अंदर केंद्र सरकार के द्वारा जिस तरह से शिक्षा के भगवाकरण को लेकर योजनाबद्ध तरीके से देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में एक खास विचारधारा के लोगों को भरती किया जा रहा है वह स्पष्ट करता है कि सरकार की प्रतिबद्धता देश संवैधानिक मूल्यों से इतर हिंदुत्व के प्रति है।
हरे राम मिश्र ने कहा कि अपने साम्प्रदायिक और फासीवादी एजंडे को लागू करने के लिए राज्य और उसकी एजेंसियां दलितों, आदिवासियों और समाज के वंचित वर्ग के लोगों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं जो कभी साम्प्रदायिक दंगों तो कभी चर्चों पर हमलों की शक्ल में जाहिर होता है। इस खतरनाक खेल को समझने, उसे बेनकाब करने और वंचित समाज में व्याप्त विभिन्न सामाजिक कुरीतियों और अंध विश्वासों के खिलाफ संघर्षरत लेखकों, समाज सुधारकों, संस्कृति कर्मियों और बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया जा रहा है। एमएम कालबुर्गी, नरेंद्र डाभोलकर और गोविंद पांसरे की हत्याओं और उनके बाद साम्प्रदायिक तत्वों के विष वमन से यह चीज और भी स्पष्ट हो जाती है। यह सब उस दीर्घकालिक खेल का हिस्सा है जिसके तहत एक खास तरह की चेतना को विकसित करने का प्रयास किया जाता है जिससे बटला हाउस फर्जी मुडभेड़ जैसी घटनाओं को समाज में स्वीकार्यता प्राप्त हो सके।