गोडसे को महात्मा कहने और गांधी बनने वालों को गोली मारने की बात करने वाले कमलेश तिवारी ने की थी सरायमीर में मीटिंग

लखनऊ/आज़मगढ़, 30 मई 2018। सरायमीर साम्प्रदायिक तनाव के एक माह पर सरायमीर का दौरा करने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता शरद जायसवाल और रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने 29 अप्रैल को सरायमीर में होने वाली कथित साम्प्रदायिक हिंसा से सम्बंधित रिहाई मंच, जनमुक्ति मोर्चा और आल इंडिया प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फेडरेशन की संयुक्त जांच रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि जिस घटना को पुलिस व मीडिया साम्प्रदायिक हिंसा का नाम दे रही है दर असल निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग और साम्प्रदायिक तत्वों के साथ कारित की गई तोड़फोड़ थी।


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सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि विनोद यादव, राजेश और तेजबहादुर ने रिपोट में कहा है कि प्रदर्शनकारी एक आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट करने वाले के खिलाफ रासुका लगाने की मांग कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से प्रदर्शकारियों की वाजिब मांग पर विचार करने के बजाए पुलिस ने उन्हें खदेड़ने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़े लोकतंत्र में उसके लिए कोई तर्क नहीं हो सकता। उपलब्ध वीडियों में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि प्रदर्शनकारियों के पास किसी तरह का लाठी–डंडा या हथियार नहीं थे और इस मामले में मुख्य आरोपी बनाए गए कलीम जामई स्वंय शान्ति बनाए रखने के लिए लगातार अपील कर रहे थे। जब प्रदर्शनकारियों के बीच से कुछ लोग बातचीत करने के लिए थाने में गए और मामला लगभग तय हो गया तो षणयंत्र के तहत पत्थरबाज़ी की घटना कारित करवाई गई ताकि बलप्रयोग के लिए तर्क गढ़ा जासके। उन्होंने कहा कि जब प्रदर्शनकारी घटना स्थल से जा चुके थे उसके बाद अचानक साम्प्रदायिक संगठनों के 200-250 सौ लोगों का लाठी–डंडा, त्रिशूल लेकर रोड पर आ जाना और पुलिस के साथ वाहनों और दुकानों में तोड़फोड़ करना किसी गहरी साज़िश का संकेत है और ऐसा लगता है कि इसकी पृष्ठिभूमि स्वंय तत्कालीन थानाध्यक्ष ने लाठीचार्ज के माध्यम से तैयार की थी। इस घटना के बाद ही हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी का दलबल के साथ का सरायमीर दौरा और साम्प्रदायिक संगठनों के साथ मीटिंग करना और तत्कालीन थानाध्यक्ष राम नरेश यादव से मिलना साज़िश के पहलू को और पुख्ता करता है।

रिपोर्ट में कहा है की जब सरायमीर की स्थिति संवेदनशील बनी हुई थी, पीएसी तैनात थी उसी दौरान कमलेश तिवारी जैसे लोगों का सरायमीर आना और मीटिंग करना साबित करता है कि सरायमीर का माहौल खराब करने की पहले से ही साज़िश थी जिसको अंजाम देने के लिए आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट करवाई गई थी। इस पहलू से निष्पक्ष जांच किए बिना मामले की जड़ तक नहीं पहुंचा जा सकता। जब मामला लगभग अपने तार्किक अंजाम को पहुंच चुका था तभी पत्थरबाज़ी व पुलिस लाठीचार्ज और उसके बाद साम्प्रदायिक तत्वों का गोलबंद होकर बाहर आ जाना स्वभाविक नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि वीडियो और सीसी कैमरों की फुटेज में पुलिस को तोड़फोड़ करते और गैलेक्सी ढाबा से लूटी गई कोल्ड ड्रिंक पीते हुए साफ साफ देखा जा सकता है। जिस तोड़फोड़ और लूट के लिए साम्प्रदायिक तत्वों और स्वंय दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए थी उसका प्रदर्शनकारियों पर आरोप लगा कर बेगुनाह लोगों को मुल्जिम बना दिया गया। इस मामले में तत्कालीन थानाध्यक्ष सरायमीर की भूमिका अत्यंत संदिग्ध है जिसकी निष्पक्ष जांच होना लोकहित में आवश्यक है।