सर्वोच्च न्यायालय ने 158 साल पुराना व्यभिचार कानून रद्द किया, संविधान पीठ का फैसला- व्यभिचार अपराध नहीं

जानवरों जैसा बर्ताव नहीं किया जा सकता महिलाओं के साथ: शीर्ष अदालत

नई दिल्ली, 27 सितंबर। शीर्ष अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीएस) की धारा 497 व्यभिचार को असंवैधानिक और मनमाना करार देते हुए इसे अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है।

फैसला सुनाने वाले एक विद्वान न्यायाधीश ने कहा कि महिलाओं के साथ जानवरों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा,

"व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता। यह निजता का मामला है। पति, पत्नी का मालिक नहीं है। महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए।"

मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस ए.एम.खानविलकर की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि कई देशों में व्यभिचार को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है।

उन्होंने कहा,

"यह अपराध नहीं होना चाहिए, और लोग भी इसमें शामिल हैं।"

मुख्य न्यायाधीश ने कहा,

"किसी भी तरह का भेदभाव संविधान के कोप को आमंत्रित करता है। एक महिला को उस तरह से सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिस तरह से समाज चाहता है कि वह उस तरह से सोचे।"

न्यायाधीश रोहिंटन एफ. नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा,

"महिलाओं के साथ जानवरों जैसा बर्ताव नहीं किया जा सकता।"

न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ ने एकमत लेकिन अलग फैसले में कहा कि समाज में यौन व्यवहार को लेकर दो तरह के नियम हैं, एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरूषों के लिए।

उन्होंने कहा कि समाज महिलाओं को सदाचार की अभिव्यक्ति के रूप में देखता है, जिससे ऑनर किलिंग जैसी चीजें होती हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय दंड संहिता (आईपीएस) की धारा 497 पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुख्य बिन्दु निम्न हैं -

- किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं

- व्यभिचार कानून असंवैधानिक

- आईपीसी की धारा 497 अवैध घोषित

- व्यभिचार अपराध नहीं

- चीन, जापान, ब्राजील में ये अपराध नहीं- सीजेआई

- ये पूर्णता निजता का मामला है

- व्यभिचार अनहैपी मैरिज का केस नहीं भी हो सकता

- अगर अपराध बनेगा तो इसका मतलब दुखी लोगों को सजा देना होगी

- बहुत सारे देशों ने व्यभिचार को रद्द कर दिया

- व्यभिचार असंवैधानिक है

- महिला को समाज की चाहत के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता

- व्यभिचार के साथ अगर कोई अपराध न हो तो इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए

- जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है वो अंसवैंधानिक है

- जो भी सिस्टम महिला को उसकी गरिमा से विपरीत या भेदभाव करता है वो संविधान के wrath को इनवाइट करता है

- ये कानून महिला के व्यक्तित्व पर धब्बा

- महिला के सम्मान के साथ आचरण गलत

- पति महिला का मालिक नहीं

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Topics - Section 497 of Indian Penal Code (IPS), honor of woman, infidelity law, unconstitutional, order of Supreme Court on adultery law, भारतीय दंड संहिता (आईपीएस) की धारा 497, महिला का सम्मान, व्यभिचार कानून असंवैधानिक, व्यभिचार कानून पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश,