विद्यार्थी परिषद अब अपराधी गुंडों का एक गैंग हो चुका है
कितना भयानक अनुभव होता है भारत में दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी होना - या स्त्री होना।
उज्जवल भट्टाचार्या
यह विद्यार्थी परिषद अब अपराधी गुंडों का एक गैंग हो चुका है।
पहले वह एक प्रतिक्रियावादी छात्र संगठन था, जिसके साए में अक्सर गुंडे पलते थे।
मसलन मेरे ज़माने में बनारस में राम बहादुर राय, सुरेश अवस्थी, दुर्ग सिंह चौहान - ये गुंडे नहीं थे।
सिमोन द बोवोआ के शब्दों को याद करते हुए मुझे लगता है कि दलित पैदा नहीं होता है। पैदा होने के बाद से ही हर क़दम पर उसे ज़हर देते हुए, हज़ारों साल का इतिहास उस पर थोपते हुए उसे दलित बनाया जाता है।
फिर शिकायत की जाती है कि वह ज़हरीला क्यों होता जा रहा है।
कितना भयानक अनुभव होता है भारत में दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी होना - या स्त्री होना।
और इसके बावजूद हम अपनी महान परंपरा, महान संस्कृति की बात करते हैं। भाड़ में जाय ऐसी हैवानी परंपरा, हैवानी संस्कृति। यह एक बजबजाते नाले के सिवा कुछ भी नहीं है, जिसमें लोग लहालोट हो रहे हैं।

यह मुल्क बहुजन दलितों का नहीं है
मुझे अब यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि यह मुल्क बहुजन दलितों का नहीं है। उन्हें इसे छीनना पड़ेगा।

बजबजाते नाले से सिर उठाकर
मैं बुदबुदाता हूं :
वसुधैव कुटुम्बकम् वसुधैव कुटुम्बकम्

सवर्णवादियों। वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें अपनी बेहूदगियों की पूरी कीमत चुकानी पड़ेगी।
(उज्जवल भट्टाचार्या के फेसबुक स्टेटस के संपादित अंश)