राजनीति की बिसात पर छड़ी सहारनपुर की शांति

विद्या भूषण रावत

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक समृद्ध जनपद सहारनपुर को लगतार है राजनीत की रोटियां सेंकने वालों ने घेरे लिया है। मुजफ्फरनगर, हरद्वार, देहरादून, यमुनानगर, शामली से घिरा हुआ जनपद सहारनपुर उत्तर प्रदेश को उत्तराखंड और हरियाणा से जोड़ने का काम भी करता है। हालाँकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जनपद सांप्रदायिक दंगों के चलते संवेदनशील माने जाते हैं, लेकिन सहारनपुर अपनी लाख खामियों के बावजूद अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण और व्यावहारिक दृष्टिकोण से बेहतर जीला रहा है।

सहाहार की ऐसी मिसाल की बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद भी यहाँ दंगे नहीं हुए। लेकिन पिछले तीन वर्षों में सांप्रदायिक और जातीय राजनीति ने सहारनपुर को निसान बना दिया है, जिसकी नतीजे भयावह हैं और प्रदेश की सरकार को चाहिए कि वो इसको समापन करने के लिए इमानदारी से प्रयास करे। लेकिन क्या वो ऐसा कर पाएगी, जब दंगों के बाद उनकी पार्टी को बयाज सहीत ठोक के भाव वोट मिल रहे हैं।

मुजफ्फरनगर घटनाक्रम के बाद भाजपा नेताओं के लगातार बयानों और आंकड़ों के चलते उनका राजनीतिक ग्राफ तात्कालिक हो गया।

ध्रुवीककरण की राजनीति की राजनीतिक चमक मोहम्मद अनलाक की हत्या के बाद बढ़ गया, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने अनलाक के फ्रेश की ही जानच शुरू की और केंद्र के मंत्रियों ने अनलाक की हत्या में आरोपित एक व्यक्ति की मौत के बाद उसके शव को तिरंगे में लपेटकर राजनीति शुरू की। नतीजा यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में इस समय पूरा ध्रुवीककरण है हालाँकि दलित पिछड़ों और मुसलमान इन बातों को साक्ष तौर पर समझ भी चुके हैं और ये सरकार 2019 के चुनाव को इतनी आसान से ना ले क्योंकि मुसलमान विरोध पर खड़ी गई पूरी इमारत में दलितों और पिछड़ों को नींव की ईंट बनाय गया जिसका पटाख़ेपीठ ही होना है।