बिजेन्दर त्यागी जाने माने फोटो पत्रकार हैं. उन्हें कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनुभव है. नॉर्थ ब्लॉक में चलने वाले सत्ता संघर्ष को उन्होंने बहुत नज़दीक से देखा है। पांच दशक की पत्रकारिता के दौरान राजदरबार में उन्होंने जो जो देखा उसे हम हस्तक्षेप डॉट कॉम पर आपके साथ साझा कर रहे हैं- इस बार सुनते हैं किस्से राजमाता सोनिया गांधी के त्याग और बलिदान के

पिछले दिसंबर महीने के अंतिम दिनों में सहारा समय चैनल पर एक विशेष कार्यक्रम दिखाया गया, जिसका शीर्षक था- सोनिया महान नेता। इस कार्यक्रम में सहारा समय ने कुछ महिलाओं को एक लाइन में खड़ा करके बारी- बारी से सोनिया का गुणगान करते दिखाया था।
कार्यक्रम में दिखाया गया कि कैसे राजीव की सोनिया से के साथ कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दिनों में पहली मुलाकात हुई। सोनिया गांधी को उनके पिता ने केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने भेजा था लेकिन उनका मन तो दूसरी ही पढ़ाई में लग गया। राजीव गांधी वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए थे इसी दौरान दोनों का नैन मटक्का हुआ और वह राजीव के साथ दिल्ली आ गईं। सोनिया को इंदिरा जी ने पहली नजर में ही पसंद कर लिया और फिर सोनिया और राजीव जीवन भर के लिए एक दूसरे के हो गए। इस चैनल ने दर्शकों के सामान्य ज्ञान में इजाफा किया कि सोनिया ने शादी के वक्त वही साड़ी पहनी जिसे इंदिरा जी ने फिरोज गांधी से अपनी शादी के वक्त पहना था। चैनल भूलवश यह बताना भूल गया कि प्रियंका ने भी रॉबर्ट बढेरा के साथ शादी के वक्त भी वही साड़ी पहनी कि नहीं! हां यह ज्ञानवर्द्धन जरूर किया कि इस साड़ी के सूत को पंडित नेहरू ने अपनी जेल यात्रा के दौरान अपने ही हाथों से काता था। बताया गया कि हरिवंशराय बच्चन और नेहरू परिवार के प्रगाढ़ रिश्ते पहले से चले आ रहे थे इसलिए अमिताभ और अजिताभ ने सोनिया के भाई की रस्में शादी के दौरान निभाईं।
सहारा समय के अनुसार संजय गांधी आपातकाल के दौरान युवा हृदय सम्राट बनकर उभरे। आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी, इस समय संजय गांधी ने युवकों के बीच में काम किया। लगभग तीन वर्ष बाद जनता पार्टी की सरकार का अंत हो गया। इंदिरा गांधी भारी बहुमत के साथ फिर सत्ता में लौटीं परन्तु संजय गांधी की आकस्मिक मौत हो गई। उनकी मृत्यु से रिक्त हुए स्थान को भरने के लिए राजीव गांधी को पायलट की नौकरी से इस्तीफा दिलवाकर कांग्रेस का महामंत्री नियुक्त करवा दिया गया।
सोनिया मायनो से सोनिया गांधी बनने की प्रक्रिया और भारत का सर्वाधिक मजबूत सत्ता केंद्र बनने की प्रक्रिया को संक्षेप में जाना जा सकता है। 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री निवास में ही अंगरक्षकों ने ही इंदिरा जी की हत्या कर दी। राजीव उस समय कलकत्ता में थे। जब वह शाम को दिल्ली लौटे तब तत्कालीन राष्ट्रपतिज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाकर प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवा दी। लेकिन राजीव के यह सुनहरे दिन ज्यादा नहीं चले और उन्हीं के रक्षा मंत्री राजा माण्डा विश्व नाथ प्रताप सिंह ने राजीव को बोफोर्स तोप दलाली में एक अभियुक्त की तरह देश के सामने पेश किया। लिहाजा राजीव की सत्ता से विदाई हो गई और वीपी प्रधानमंत्री बन गए। उधर श्रीलंकाई संगठन लिट्टे भी उनका जानी दुश्मन बन बैठा था। लेकिन राजीव गांधी ने थोड़े ही दिनों में वीपी से अपने अपमान का बदला ले लिया और चन्द्रशेखर को समर्थन देकर प्रधानमंत्री बनवा दिया। लेकिन बोफोर्स के भूत ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा और राजीव की चन्द्रशेखर के साथ कलह हो गई लिहाजा चन्द्रशेखर को 4 महीने में ही प्रधानमंत्री निवास को टाटा-बाय करना पड़ा। आम चुनाव के दौरान ही लिट्टे समर्थकों ने 21 मई 1991 को राजीव गांधी की नृशंस हत्या कर दी।
इसके बाद हालांकि सत्ता तो कांग्रेस के हाथ लौटी लेकिन घर में दो-दो हत्याओं को देख चुकी सोनिया बहुत घबराई हुई थीं और बहुत दुखी मन से उन्होंने ऐलान किया था कि वह राजनीति में कभी नहीं आएंगी। इस बीच कई सरकारें आईं और चली गईं। फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर जाने के बाद सोनिया घर से बाहर निकलीं और कई जनसभाएं करके कांग्रेस को खड़ा करने की कोशिश की। सहारा समय की इस रिपोर्ट में बताया गया कि राजीव की हत्या से लेकर अब तक सोनिया की पूरी जिन्दगी संघर्ष में ही गुजरी है।
इस फिल्म में सोनिया गांधी को वाजपेयी सरकार की चुनाव में हार के बाद संसद् के केन्द्रीय कक्ष में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में दिखाया गया। जबकि इस बैठक में पत्रकारों का प्रवेश वर्जित था। वर्श 2004 के आम चुनाव के बाद संसदीय दल की बैठक में कांग्रेस की पार्लियामेंट्री पार्टी की बैठक में हुए कथित सर्वसम्मत चुनाव के बाद कांग्रेसी सांसदों ने उनका बारी-बारी से स्वागत किया तब पत्रकारों को केन्द्रीय कक्ष में बुलाया गया। उसी सभा में अमेठी से चुनकर आए सांसद राहुल गांधी ने भी एक गुलाब का फूल सोनिया को भंेट किया था। यह फूल पत्रकारों केशोर-शराबे के बीच विश्व बंधु गुप्ता ने उठाकर उन्हें मुहैया कराया था।
लोगों को याद होगा कि इस चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने के बाद सोनिया जी तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिली थीं और अपने समर्थक सांसदों की सूची दी थी और अगले दिन उन्हें राष्ट्रपति भवन जाकर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनी थी। परन्तु ऐसा नहीं हो सका क्योंकि उनके विदेशी मूल के मुद्दे पर विपक्षी दलों ने कलाम से मिलकर विरोध जताया था।
अगले दिन फिर कांग्रेस संसदीय दल की बैठक संसद् के केन्द्रीय कक्ष में होती है और इस बैठक में भी मीडिया को घुसने की अनुमति नहीं होती है। जब पत्रकार बंधु संसद भवन पहुंचे तो सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें अन्दर जाने से यह कहकर रोक दिया कि पार्टी का आदेश है कि कोई भी मीडियाकर्मी अन्दर नहीं आएगा। मुझे उस समय आश्चर्य हुआ था कि अगर मैडम सोनिया को नजला भी हो जाता है तो नगाड़े और ढोलक हारमोनियम बजाने वाले उनके प्रवक्तागण विशिष्ट पत्रकारों के एक दल को बुलाकर सोनिया गांधी के जुकाम और खांसी की सूचना सार्वजनिक करा देते हैं। परन्तु दोबारा प्रधानमंत्री पद की दावेदार को चुनने के लिए बैठक में उस दिन पत्रकारों को नहीं जाने दिया गया। बाद में पार्टी के नीति निर्धारकों ने प्रचार का एक तरीका अपनाया कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद की कुर्सी स्वयं त्याग दी। इस प्रकार वह देश की महान ”त्यागी महिला“ बन गईं। स्थिति से स्पष्ट है कि वह मजबूरी में त्यागी बनीं। जबकि वास्तविकता यह थी कि उस दिन उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं था। दूसरे उनके साथ विदेशी मूल के होने का दुमछल्ला लगा था। तो ऐसी स्थिति में आप कैसे प्रधानमंत्री बनतीं? आपको डर था कि उस सभा में जो हंगामा होने को था शायद इसी शंका के कारण पत्रकारों को दूर रखा गया। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। अंततः कांग्रेस के वरिष्ठ एवं वफादार और तजुर्बेदार नेताओं की उपेक्षा करके मनमोहन सिंह को रबर स्टाम्प नेता चुना गया और वह प्रधानमंत्री बने।
आपको याद होगा कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के आखिरी दिनों में बिट्ठल भाई पटेल हाउस में एक सभा का आयोजन हुआ था उसमें वर्तमान वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी कर्नाटक के गुण्डूराव कांग्रेस के महामन्त्री श्याम सुन्दर महापात्रा आसाम के अशोक भट्टाचार्य उत्तर प्रदेश शुगर लॉबी के प्रकाश मल्होत्रा आदि कई नेता लोग मंच पर विराजमान थे इस बैठक में इन नेताओं ने राजीव गांधी पर कितने ही भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और अपने भाषणों में जहर उगला था। परन्तु वही प्रणब मुखर्जी आज सोनिया गांधी को पूर्ण रूपेण समर्पित हैं।
सहारा समय का सोनिया गांधी पर यह कार्यक्रम देखकर ताज्जुब हुआ कि सोनिया गांधी को महान नेता प्रदर्शित किया गया। सोनिया गांधी के दोबारा चुनाव की संसदीय दल का नेता चुनने की प्रक्रिया को सोनिया गांधी को यह कहते दिखाया गया कि वह अपनी अर्न्तआत्मा की आवाज पर प्रधानमंत्री पद नहीं लेना चाहती। उसी बैठक में एक सिंधी वकील को यह कहते हुए दिखाया गया कि हम आपके अलावा किसी अन्य को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते क्योंकि सिंधी तो मंत्रिमंडल के लिए अपनी वफादारी जताकर अपनी सीट पक्की कर रहा था। भले ही वह अपनी पत्नी के नाम से फैक्टरी चलाता हो। अभी हाल में उस फैक्टरी के मजदूरों ने पारलियामेन्ट स्ट्रीट पर प्रदर्शन भी किया था।
सवाल उठता है कि सोनिया जी आपको 119 साल पुरानी कांग्रेस में ऐसा कोई भी कांग्रसी नेता नहीं दिखाई दिया जिस पर आप या देश विश्वास कर सके? आपने उस आदमी को प्रधानमंत्री बनवाया जो विश्व बैंक और आईएमएफ के लिए कार्यरत रहा।
सोनिया जी यह एक कृषि प्रधान देश है। यहां 70 प्रतिषत आबादी कृषिं पर निर्भर है, जो गांव में निवास करती है। आप हों चाहे आपकी रबर स्टाम्प प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, दोनों ही इस सत्तर प्रतिशत जनता को नजरअंदाज करके उनकी जमीनों को एक्वायर कराकर खेती योग्य भूमि पर फैक्ट्रियां बनवा रहे हैं और खेती योग्य भूमि पर कंक्रीट के जंगल बनवा रहे हैं। देश के किसान कर्ज में दबकर आत्महत्या करने लगे। आप तो स्वयं को महान त्यागी घोषित करके यूपीए की चेयरमैन बनकर शासन चला रही हैं। आपको अब एक ऐसा रबर स्टाम्प आदमी मिल गया है जो आपकी हां में हां मिलाए और काम करता रहे और आप सिद्धान्तवादी बनी रहें, महान त्यागी बनी रहें। उस समय आपकी अर्न्तआत्मा ने आपको क्यों नहीं कचोटा जब महात्मा गांधी को तो नोटों पर छपवा दिया गया और स्वयं संपूर्ण परिवार गांधी नाम की चादर ओढ़कर बैठ गया।
इस देष के लघु उद्योगों को समाप्त करके भारतीय बाजार पर चीनी माल का साम्राज्य हो गया। चीन के सस्ते माल के आने से भारत के छोटे उद्योगों को ही भारतीय बाजार से बाहर कर दिया। सोनिया जी क्या आपकी अंतरात्मा की आवाज ने कभी नहीं कचोटा ? देश का गरीब और गरीब होता गया। देश के ग्रामीण अंचल की व्यवस्था को नष्ट करके एक नया तबका यानी उद्योगपति को और मालदार बनाया गया तब आपकी अर्न्तआत्मा कहांसोरही थी?
आपकी अंतरात्मा ने आपको क्यों नहीं कचोटा जब देश के सभी गरीबों के खाने योग्य दालें 25-30 रुपए की जगह 80-100 रुपए किलो तक बिकने लगीं। बरसात के दिनों में खुले में पड़ा गेहूं और चावल भीगता, रहा सड़ता रहा और आपकी अंतरात्मा सोती रही?
सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर आदेश दिया कि भीगे हुए अनाज को सड़ाने से बेहतर होगा कि इसे गरीबों में बांट दो। तो आपने और आपके रबर स्टाम्प प्रधानमंत्री ने प्रशासन को आदेश देकर इस अनाज को गरीबों को क्यों नहीं बंटवाया? शायद इसलिए क्योंकि आपका कृषि मंत्री आपकी बात नहीं मानता। आप लोगों को हमेशा डर लगा रहता है कि यदि कृषि मंत्री के साथ अनबन हो गई तो वह अपना समर्थन सरकार से वापिस ले लेगा और सरकार चली जाएगी। क्योंकि इस अनाज को तो बीयर और शराब बनाने वाली फैक्ट्रियों को सस्ते दामों पर देकर उनसे पैसा वसूलना है। आपकी अंतरात्मा ने आपको उस वक्त क्यों नहीं चेताया जब भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पर 75000 करोड़ के धोटाले में लिप्त पाए जाने के आरोप लगे। जब सुरेश कलमाडी के भ्रष्टचार के खिलाफ आवाज उठाई गई और उनसे इस्तीफा देने की मांग की गई तो उन्होंने कहा जब तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी उन्हें इस्तीफा देने के लिए नहीं कहेंगे वह इस्तीफा नहीं देंगे। यह सब आप और मनमोहन सिंह आंखों पर पट्टी बांधे देखते रहे। उन्होंने यह भी कहा कि ओलंपिक में लिए गए सभी फैसले आपके तथा मंत्रालय की सहमति से लिए गए। उनके अकेले के द्वारा नहीं। तब सीबीआई ने खेल की समाप्ति के तीन महीने पश्चात जांच शुरू की। सुरेश कलमाडी का यह कथन सभी पर भारी पड़ा कि निर्णय सभी की सहमति से लिए गए। शायद इसी कारण कलमाडी ने अपनी सुविधा के अनुसार 3 जनवरी 2011 को सीबीआई के सामने पेश होने के लिए कहा। यदि घपलों में लिप्त व्यक्ति अपनी सुविधानसार अपनी जांच कराए तो सत्यता का पता कैसे चलेगा और जांच किस दिशा में जाएगी?
सोनिया जी आपकी चेयरमैनशिप में आपके संचारमंत्री ने 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में 1.75 हजार करोड़ रुपए का नुकसान सरकार को पहुंचाया। आपके द्वारा नियुक्त मंत्रीगण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुझावों और टिप्पणियों को भी नजरअंदाज करते हैं। आप मूकदर्शक की भांति बैठी देखती रहीं। आपकी अंतरात्मा की आवाज कहां चली गई? कृपया उसे अपने हित में नहीं इस देश के हित में वापिस बुलाइये राजमाता जी और आप इस भ्रष्टचार के शासन को हटाकर देश को महंगाई से जनता को मुक्ति दिलाइए तभी आप त्यागी कहलाएंगी राजमाता!!!
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लेखक बिजेन्दर त्यागी देश के जाने-माने फोटोजर्नलिस्ट हैं. पिछले चालीस साल से बतौर फोटोजर्नलिस्ट विभिन्न मीडिया संगठनों के लिए कार्यरत रहे. कई वर्षों तक फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट के रूप में काम किया और आजकल ये अपनी कंपनी ब्लैक स्टार के बैनर तले फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हैं. ”The legend and the legacy: Jawaharlal Nehru to Rahul Gandhi” नामक किताब के लेखक भी हैं विजेंदर त्यागी. यूपी के सहारनपुर जिले में पैदा हुए बिजेन्दर त्यागी मेरठ विवि से बीए करने के बाद फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हुए. वर्ष 1980 में हुए मुरादाबाद दंगे की एक ऐसी तस्वीर उन्होंने खींची जिसके असली भारत में छपने के बाद पूरे देश में बवाल मच गया. तस्वीर में कुछ सूअर एक मृत मनुष्य के शरीर के हिस्से को खा रहे थे. असली भारत के प्रकाशक व संपादक गिरफ्तार कर लिए गए और खुद विजेंदर त्यागी को कई सप्ताह तक अंडरग्राउंड रहना पड़ा. विजेंदर त्यागी को यह गौरव हासिल है कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर अभी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीरें खींची हैं. वे एशिया वीक, इंडिया एब्राड, ट्रिब्यून, पायनियर, डेक्कन हेराल्ड, संडे ब्लिट्ज, करेंट वीकली, अमर उजाला, हिंदू जैसे अखबारों पत्र पत्रिकाओं के लिए काम कर चुके हैं.