पलाश विश्वास
सांढ़ संस्कृति का तांडव मूसलाधार।
मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र त्रिकोणमिति और रेखागणितीय प्रमिति की तरह है। निष्कर्ष पहल से तय है और उसे साबित करने की कवायद है, जो स्वयंसिद्ध है। नीतियां पहले से तय हो जाती हैं और उन्हें सिद्ध करने के लिए परिभाषाओं और आंकड़ों का करतब।
मसलन बजट में दूसर चरण के सुधारों का प्लेटफार्म बन जाने के बाद अचानक विनिर्माण, बिजली और खनन क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन की बदौलत मई में औद्योगिक उत्पादन 4.7 प्रतिशत बढ़ गया। इसी के आधार पर ब्याज दरें तय होनी हैं और नये सिरे से अगले हफ्ते से शेयरों की उछल कूद होगी, निवेशक मेहरबान होंगे और चालाक लोग आसमान पर सेनसेक्स निफ्टी पहुंचाकर आयात निर्यात खेल की तर्ज पर मुनाफावसूली भी करेंगे।
यह भी एक अबूझ बेटिंग हैं जिसपर दांव लगाकर बुरबक जनता खुल्लेआम लुटी जाती है। सरकारी उपक्रमों का पैसा वहीं लगना है। आम जनता का बीमा प्रीमियम वहीं खपना है।
तो पीएफ, पेंशन और ग्रेच्युटी भी बाजार के हवाले हैं।
ब्रोकर छोटे और मंझोले निवेशकों को सलाह अलग देते हैं और कारपोरेट कपनियों को अलग। ऊपर सेबी कारपोरेट मेहरबान।
रिजर्व बैंक को काबू में रखने के लिए उत्पादन के आंकड़े फक्ष में होने चाहिए तभी सेनसेक्स तीस पार होगा।
अब खुदै वित्त मंत्री ब्रोकर की भाषा बोल रहे हैं- अरुण जेटली ने कहा, 'हम ज्यादा टैक्स वाली व्यवस्था नहीं चाहते हैं। पिछली सरकार की हाई टैक्सेशन की नीति के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है।'
अब गधों की तबीयत हलकान कि इतना चारा कितना चरेंगे और कब तक चरेंगे।
सांढ़ों के तांडव का मूसलाधार इसी तरह जारी रहा तो मुद्रास्फीति, मूल्यवृद्धि, बेरोजगारी और भुखमरी भले बेलगाम हो कब्रिस्तानों और श्मशानों के स्मार्ट सिटी सेज गलियारा बुलेट देश में विदेशी पूंजी की महिमा से सेनसेक्स पचास पार भी हो जायेगा।
निनानब्वे फीसद जनता को इन आंकड़ों, परिभाषाओं और अवधारणाएं मालूम नहीं है। नीति निर्धारण की हवा तक नहीं पहुंचती और अब पेड न्यूज देश में मीडिया में भी शत प्रतिशत एफडीआई हैं।
राजनीति वोट मांगने के लिए लाखों लोगों की रैली करते हैं गांव से लेकर महानगर तक, लेकिन नीति निर्धारण प्रक्रिया को समझाने, अर्थ व्यवस्था का तिलिस्म तोड़ने और आम जनता को बुनियादी जानकारी देने के लिए कुछ भी नहीं करती। न यह काम कोई सामाजिक संगठन करता है।
बाजार इससे जोश में है। आम जनता को मालूम नहीं है कि सुधारों की दशा और दिशा क्या होनी जा रही है।
बाजार को सब कुछ मालूम है।
बाजार सांढ़ों के कब्जे में है तो समाज भी सांढ़ों के कब्जे में।
बाजार में भी मुनाफावसूली का आलम है तो समाज में भी सब कुछ एटीएम।
रियल टाइम मनी।
बाकी उछलकूद, शोरशराबा नूरा कुश्ती।
ब्रोकरों को मालूम है कि विनिवेश की बुलेट ट्रेन चालू हो गयी है और पूरा देश ही अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तहत सेलआफ।
बाकी स्ट्रेटेजिक सेलआउट है। आम जनता को मालूम नहीं है।
जैसे जल्दी ही देश के सबसे बड़े नेटवर्क वाले वित्तीय संस्थान भारतीय स्टेट बैंक और उसके साथ ही देशी बैंकों में अन्यतम पंजाब नेशनल बैंक की इक्विटी बाजार में आनी है। सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक व पंजाब नेशनल बैंक इस साल पूंजी बाजार में उतर सकते हैं।
ब्रोकरों को मालूम है कि ओएनजीसी कोलइंडिया में धमाका तय है तो रेलवे का हो गया बंटाधार। इसी तरह सब्सिडी राजनीतिक बाध्यताओं से निपटने के बाद वैसे ही खत्म हो जानी है जैसे खुदरा कारोबार में भी प्रत्यक्ष विनिवेश तय है। आम जनता को मालूम नहीं है।
ब्रोकरों को मालूम है कि सर्वत्र पीपीपी, गुजरात माडल की जय जयकार सारी योजनाएं, परियोजनाएं और कार्यक्रम उसी मुताबिक। आम जनता को मालूम नहीं है।
ब्रोकरों को मालूम है कि स्मार्ट शहरों, सेज और औद्योगिक कॉरीडोर के जरिये कृषि के खात्मे के साथ अंधाधुंध शहरीकरण के मार्फत भारत सरकार ही रियल्टी कंपनी हो गयी है। आम जनता को मालूम नहीं है।
अरुण जेटली के लिए चिदंबरम की सांख्यिकी को मानना व्यावहारिक ही है क्योंकि कुल मिलाकर फिर वही नीतियों की निरंतरता है।
इंफोसिस का सिक्का फिर चल गया। लगातार टॉप पर रहने वाली इस कंपनी की दसों उंगलियां घी से सरोबार क्योंकि धारणा के विपरीत यूपीए के नक्श-ए-कदम पर एनडीए भी डिजिटल देश बनाने के बहाने बायोमेट्रिक नागरिकता के जरिये फालतू जनता को ठिकाने पर लगाने जा रही है।
आधार अब जनसंख्या रजिस्टर से नत्थी है और संशोधित नागरिकता कानून के तहत आधार पा चुके लोगों की विदेशी होने न होने की जांच भी होगी।
आम जनता को मालूम नहीं है। आधार के खिलाफ दुष्प्रचार के मुकाबले जागरुकता के विज्ञापनों की कमाई अलग तय है।
आधार असंवैधानिक योजना के सौजन्य से भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी सेवा प्रदाता कंपनी इंफोसिस आउट सोर्सिंग बढ़ाने के लिए स्मार्टफोन एप्स और अन्य नवीनतम तकनीकी में ज्यादा निवेश करने की योजना बना रही है।
ब्रोकरों को मालूम है कि गरीबी रेखा बेमतलब है।
बेमतलब है गरीबी की परिभाषा।
बेमतलब है विकास दर और वित्तीयघाटे के आंकड़े।
बाजार निरंकुश है।
कीमतें बाजार को तय करनी हैं।
कीमतें विनियंत्रित हैं।
सेवाएं विनियंत्रित हैं और विनियमित भी हैं।
बाकी कहने को बहुत है, सामाजिक क्षेत्र की योजनाएं भी अब रियल्टी है।
जनवितरण प्रणाली और सब्सिडी खत्म।
आम जनता को मालूम नहीं है।
अब तेंदुलकर और रंगराजन दोनों की परिभाषाओं और आंकड़े बेमतलब हैं।
आम जनता को मालूम नहीं है।
विकासगाथा के उत्कर्षकाल के मुताबिक सिर्फ आंकड़े नीति मुताबिक तैयार किये जाने होते हैं और परिभाषाएं और पैमाने नये सिरे से समायोजित किये जाने होते हैं।
बजट के बाद अब वित्तीय सुधारों की बारी है और आर्थिक और खासकर मौद्रिक नीतियां वैश्विक छिनाल पूंजी की मर्जी मुताबिक तय की जानी है,जो अर्थ व्यवस्था के मूलाधार की नींव पर तय की जानी चाहिए। वह मूलाधार दरअसल उत्पादन प्रणाली है।
बजट के बाद धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं, जहां इस पद तक पहुंचने से पहले वे अवांछित थे। नीतिगत विकलांगता का आरोप मुक्त बाजार के ईश्वर पर लगाकर उन्हें सत्याच्युत करके अवांछित कल्कि के स्वागत में पलक पांवड़े बिछाये हैं अंकल सैम तो इसका मतलब भी कुछ निकलता ही है।
नीतिगत विकलांगता का आरोप कुल मिलाकर प्रतिरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, बीमा और खुदरा बाजार को अमेरिकी महामंदी में मंद युद्धक अर्थव्यवस्था के लिए खोलने की कोई तरकीब नहीं निकाल पा रहे थे मनमोहन और उसी मनमोहन को एक झटके से हलाल कर दिया अमेरिका ने, जिन्हें चंद्रशेखर जमाने में उत्पन्न अभूतपूर्व भुगतान संतुलन संकट के मध्य नरसिम्हाराव सरकार में वाशिंगटन ने ही बतौर वित्तमंत्री और नवउदारवादी मुक्तबाजार के ईश्वर का दर्जा देकर रोपा था और बतौर वित्तमंत्री, बतौर प्रधानमंत्री वे विश्वबैंक से पेंशन भी लेते रहे, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष व अन्य एमेरिकी वर्चस्व वाले वैश्विक संगठनों के शाथ नीति निर्धारण में पिछले तेईस साल के दौरान अहम भूमिका अदा करते रहे हैं।
अब सोवियत पतन के बाद एक ध्रुवीय विश्व में आतंक के विरुद्ध अमेरिका और इजराइल के ग्लोबल युद्ध में हिस्सेदारी के साथ भारत अमेरिकी परमाणु सैन्य गठजोड़ और संधि के आलोक में भारतीय राजनय की अमेरिकी और इजराइली हितों के संदर्भ में देखें।
इराक और अफगान युद्ध में भारत सरकार ने बाकायदा अमेरिकी बम वर्षकों को भारत से ईंधन भरने की इजाजत दी और हिंद महासागर से भारत की आकाशसीमाओं को छलांग कर अफगानिस्तान पर बम वर्षा की इजाजत भी दी। अब मोदी जब अमेरिका की यात्रा पर जा रहे तो इराक में गृहयुद्ध जारी है और पूरा मध्यपूर्व अशांत है। इसके साथ ही भारत के साथ अमेरिकी सैन्यगठजोड़ के सहयोगी जो इस वक्त भारत में आंतरिक सुरक्षा में भी भारत सरकार की मदद करती है, उस इजराइल ने गाजा पट्टी में प्रलयंकारी नरसंहार शुरू कर दिया है। लेकिन हमेशा ऐसी घटनाओं पर खासकर एशिया और हिंद महासागर के मामले में सक्रिय भारतीय राजनय फ्रिज में है।
भारत का शासक तबका अमेरिकी और इजराइली हितों के विरुद्ध कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। जबकि अमेरिका के बाद भारत केसरिया महावली बनने को उतावला है और हिंदू राष्ट्र के एजेंडे में उसकी उत्कट अभिलाषा है।
धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री एफडीआई परमवीर की अमेरिका यात्रा के मौके पर अमेरिकी पूंजी के पक्ष में रेडिंग आंकड़े भी पेश हो गये हैं।
पलाश विश्वास।लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।