सांप्रदायिक खतरे के खिलाफ संघर्ष का संकल्प पुख्ता करो
सांप्रदायिक खतरे के खिलाफ संघर्ष का संकल्प पुख्ता करो
सांप्रदायिक खतरे के खिलाफ संघर्ष का संकल्प पुख्ता करो
0 प्रकाश कारात
दिसंबर की 6 तारीख को बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने की काली करतूत की बरसी पड़ती है।
अब से 24 साल पहले आरएसएस-हिंदुत्व के गिरोहों ने बाबरी मस्जिद को ढहाकर, भारतीय गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष जनतांत्रिक चरित्र पर बहुत भारी हमला किया था।
अपनी इस एक करतूत से उन्होंने संविधान को चुनौती दी थी और अपने इसके इरादों का एलान कर दिया था कि वे भारतीय संविधान द्वारा स्थापित जनतांत्रिक तथा धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ही ध्वस्त करना चाहते हैं।
यह कोई संयोग ही नहीं है कि संघ परिवार ने बाबरी मस्जिद 1992 की 6 दिसंबर को ढहायी थी।
6 दिसंबर का दिन पूरे देश में भारतीय संविधान के रचयिता, डॉ. भीमराव आंबेडकर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
1956 में 6 दिसंबर को डॉ. आंबेडकर का निधन हुआ था। इस रोज लाखों लोग, जिनमें बहुत से दलित भी शामिल होते हैं, मुंबई में दादर बीच पर, जहां उनकी राख बिखरायी गयी थी, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्रित होते हैं।
संघ परिवार द्वारा बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए इस दिन का चुना जाना पूरी तरह से उस हिकारत तथा गहरे शत्रुभाव के अनुरूप ही है, जो भारत का संविधान हमेशा से सबसे बढक़र आरएसएस के सदस्यों के दिलो-दिमाग में जगाता है और उसके बाद आरएसएस द्वारा पाले-पोसे गए अनेक संगठनों के सदस्यों के दिलो-दिमाग में जगाता है, जिनमें उसका राजनीतिक बाजू, भाजपा भी शामिल है।
आरएसएस और हिंदू महासभा की साझा विचारधारा को मानने वाले लोग डॉ. आंबेडकर की और अन्यायपूर्ण व असमानतापूर्ण हिंदू कानूनों में उन्होंने जो बदलाव लाने की कोशिश की थी, उनकी बड़े मुखर होकर निंदा किया करते थे। और जब आखिरकार संविधान पारित हुआ, जिसे संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा के सामने पेश किया था, आरएसएस ने रत्तीभर वक्त गंवाए बिना संविधान की भर्त्सना की थी और यह दावा किया था कि उन्हें एक ही कानून या धर्मशास्त्र मंजूर है और वह है मनु का बनाया कानून।
राम मंदिर अभियान के पीछे की गयी इस लामबंदी ने ही भाजपा को कई राज्यों में और 1998 में केंद्र में सत्ता में पहुंचाया था।
उस समय वाजपेयी सरकार ने शासन के सार्वजनिक निकायों में आरएसएस की घुसपैठ कराने के लिए, हिंदुत्ववादी विचारधारा के आधार पर इतिहास का पुनर्लेखन करने के लिए और अपने विभाजनकारी एजेंडा के आधार पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए, वह सब किया था जो वह कर सकती थी।
इसके एक दशक बाद मोदी सरकार, लोकसभा में बहुमत के साथ सत्ता में आयी है। इसके सत्ता संभालने के साथ, सांप्रदायिक एजेंडा को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया तेज हो गयी है।
उच्च शिक्षा तथा शोध की संस्थाओं में हिंदुत्ववादी विचारधारा की घुसपैठ करायी जा रही है।
‘घर वापसी’, ‘लव जेहाद’, ‘गोरक्षा’ के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उन पर जहरभरे हमले किए जा रहे हैं और उन्हें आतंकवादी तथा राष्ट्रविरोधी तत्व बताकर बदनाम किया जा रहा है। जनतांत्रिक अधिकारों पर तानाशाहीपूर्ण हमला हो रहा है और असहमति के अधिकार को निर्ममता से कुचला जा रहा है। इसकी सोची-समझी कोशिश हो रही है कि न्यायिक नियुक्तियों में दखलंदाजी की जाए और प्रेस की स्वतंत्रता के पर गंभीर रूप से कतर दिए जाएं।
शासन के संघीय ढांचे पर भी हमला हो रहा है।
इस तरह बाबरी मस्जिद पर हमला, धर्मनिरपेक्ष तथा जनतांत्रिक भारत के खिलाफ एक लंबी लड़ाई की शुरूआत का इशारा था। इसलिए, 6 दिसंबर का दिन, सतर्क रहने की चेतावनी के दिन के तौर पर मनाया जाना चाहिए। यह दिन इसका मौका होना चाहिए कि हम इस तानाशाहीपूर्ण-सांप्रदायिक हमले का अपनी पूरी ताकत से तथा जनता के व्यापकतम हिस्सों को गोलबंद करने के जरिए प्रतिरोध करने का अपना संकल्प दोहराएं।
इस लक्ष्य को, नवउदारवाद तथा फूटपरस्त सांप्रदायिकता के जुड़वां हमले के खिलाफ वर्गीय तथा जनसंघर्षों का निर्माण करने के जरिए ही हासिल किया जा सकता है।


