देश में सांस्कृतिक बदलाव के लिये सबसे जरूरी क्या है?

देश में सांस्कृतिक बदलाव के लिये सबसे जरूरी है हमारे स्कूलों में कला शिक्षा के प्रसार हेतु गंभीर प्रयास किए जाएं।

हमारे देश की आजादी को 75 साल पूरे होने जा रहे हैं, समाज के कई क्षेत्रों में बड़े बदलाव हुए हैं किन्तु कला एवं संस्कृति (art and culture) जैसा महत्वपूर्ण क्षेत्र अभी भी हाशिये पर है उसे राष्ट्रीय स्तर पर वैसी प्राथमिकता प्राप्त नहीं हो पाई है जैसी हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए मिलनी चाहिये।

यों गिनाने के लिये अकादमियों तथा सांस्कृतिक संस्थाओं की स्थापना हुई है। केन्द्र में कला संस्कृति व पर्यटन का स्वतंत्र मंत्रालय भी है किन्तु शिक्षा की भॉति कला संस्कृति का बजट अन्य कई क्षेत्रों की तुलना में बहुत ही नगन्य है। राष्ट्रीय स्तर पर कला एवं संस्कृति के उत्थान के लिये स्पष्ट दृष्टि एवं नीति के अभाव में जो कुछ भी किया जा रहा है उसका गुणात्मक प्रभाव भी नहीं दिखाई दे रहा है।

यदि विकासशील देशों के सांस्कृतिक परिदृश्य से तुलना करें तो यह और भी स्पष्ट हो जायेगा हम बहुत पीछे हैं, खास तौर पर हम वहाँ के किसी शहर के कला संस्थानों ,कला दीर्घाओं तथा कला प्रदशनियों में एकत्र होने वाले कला प्रेमियों की भीड़ का तुलनात्मक जायजा लें। जिसका सबसे प्रमुख कारण है कि उन देशों में स्कूल से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा में कला शिक्षा पर काफी जोर दिया जा रहा है। वहाँ के प्राथमिक स्कूलों में तक प्रत्येक छात्र को ललित कलाओं की कार्यशालाओं में उतना ही प्रशिक्षण दिया जाता है जितना विज्ञान की प्रयोग शालाओं में। हमारे स्कूलों का सारा ध्यान विज्ञान की शिक्षा में ही खप जाता है।

वहाँ प्रत्येक छात्र ललित कलाओं की कार्यशालाओं में प्रशिक्षण पर इसलिये अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है कि वे सभी आगे जाकर कलाकार बनें, बल्कि उनकी मान्यता है कि प्रत्येक छात्र ललित कलाओं में इसलिये रूचि ले कि वे भविष्य में सभ्य नागरिक, कलाप्रेमी या कला पारखी बनें। वे समाज में कला एवं कलाकारों के महत्व को समझें। यही कारण है कि हमारी शिक्षा पद्धति में अधिकतर छात्र बिना कला की न्यूनतम रूचि या जानकारी के डिग्रिया प्राप्त करके समाज के बड़े निर्णायक पदों पर विराजमान है। कला की न्यूनतम जानकारी के अभाव में उनकी कला एवं संस्कृति के उत्थान में रूचि होती ही नहीं है।

इसीलिये आप देखेंगे कि कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास तभी हो पाया है जब राज्य का उच्चतर निर्णयकर्ता यह ठान ले कि समाज के सर्वार्गीण विकास के लिये सांस्कृतिक विकास भी उतना ही आवश्यक है जितना कि विज्ञान एवं तकनीक का।

सोचिये भला क्या सवा अरब का हमारा राष्ट्र केवल वैज्ञानिकों के बलबूते पर ही महान हो सकता ? जब तक उसमें श्री तैयब मेहता जैसे चित्रकार न हों जिनका चित्र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दस करोड़ की कीमत पर पर नीलाम हो जाता हो।

अन्त में,मैं यहीं कहना चाहता हूँ कि राष्ट्रीय स्तर कला एवं संस्कृति के विकास या उत्थान के लिये एक स्पष्ट दृष्टि एवं नीति बनाई जाय जिसमें सर्वप्रथम स्कूलों में कला शिक्षा के प्रसार की गंभीर योजना बने जिसे शीघ्रतम लागू किया जाय। यदि यह लम्बी अवधि की योजना है जिसके लिये निर्णय उच्च स्तर पर लिया जाना है तो हमें कुछ तात्कालिक कार्यक्रम बनाने चाहियें, जिसे प्रत्येक विद्यालय एवं उसके कला शिक्षक अपने स्तर पर भी आरंभ कर सकते हैं।

Efforts to increase interest and knowledge of students in art and culture

मैंने चर्चा की थी कैसे पश्चिम के स्कूलों में छात्रों की कला एवं संस्कृति में रुचि एवं जानकारी बढ़ाने हेतु प्रयास किये जाते हैं। मैंने देखा कि अमेरिका के स्कूल के पाँचवी कक्षा के छात्रों को खजुराहो के मूर्ति शिल्प की स्लाइड्स दिखाई जा रही थी। हमारे यहाँ कई डिग्री धारियों को कभी खजुराहो का नाम भी नहीं सुनने अवसर मिलता है। क्यों न हम हमारे स्कूलों में छात्रों को हमारी सांस्कृतिक विरासत की महत्ता के प्रति संवेदनशील बनाना आरंभ करें। यह कार्य हमारे कला अध्यापक अपने हाथ में ले सकते हैं। प्रति माह सप्ताह में दो बार उन्हें ऐसे कल्पनाशील आयोजन का जिम्मा दिया जा सकता है।

इसी तरह हम स्पिक मैके की तर्ज पर वरिष्ठ कलाकारों को आमंत्रित कर उनके लेक -डेमस का आयोजन कर सकते हैं तथा छात्रों को संग्रहालयों तथा प्राचीन पुरातत्वीय कला स्थलों पर ले जाने की भी व्यवस्था कर वहाँ कला परम्पराओं पर गंभीर चर्चा आयोजित की जा सकती है।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि इससे स्कूल के सभी छात्रों की कलाओं मे रूचि बढ़ेगी तथा इससे उनका कलाओं के प्रति सम्मान में भी अभिवृद्धि होगी। इस अभियान को सोच समझ कर और भी आगे बढ़ाया जा सकता है। प्रत्येक रीजन में एक सांस्कृतिक समिति का गठन कर उसके माध्यम से इस कार्यक्रम को और भी गुणवता प्रदान की जा सकती है।

मेरी यह मान्यता रही है कि सिर्फ चर्चाओं से बात नहीं बनेगी। जो कुछ सकारात्मक पहल हमारी ओर से संभव हो सकती है उसके प्रयास अवश्य करने चाहिये। यही बदलाव की कारगर रणनीति होती है।

प्रो. चिन्मय मेहता

Serious efforts should be made to spread art education in schools for cultural change