दलित साहित्य: अतीत, वर्तमान और भविष्य

असामता और सामाजिक अन्याय का प्रतिक है मेरीचंद परसांह

साहित्य और कला के मौजूद बाज़ारू स्वरूप के कारण ही स्त्री के विरुद्ध यौन अत्याचार के मामले बढ़ रहे

दलित साहित्य हो या जन साहित्य, उसमें सामाजीक सरोकार के स्वर मुख्‍य होने चाहिए। उसके तेवर सामाजीक, आर्थिक राजनैतिक तोड़ने के होने चाहिए। वह मुक्ति की आकांक्षाओं के मुकाबिल परिर्वतन का ओज होना चाहिए और हमारी लड़ाई मुख्यधारा में जीवन के हर क्षेत्र में अपने हक़ों को हासिल करने की होनी चाहिए।

पलाश विश्वास

अरसे बाद भुवनेश्वर जाना हुआ। कटक के चौरबेटिया कैंप, में मेरे पिता और मेरे गांव के ज्यादातर लोग बंगाल के विभिन्‍न शरणार्थी शिविरों खाने के बाद लंबे समय से डेराले हुए थे। वे लोग यहीं से उत्तराखंड की तराई में घनघोर जंगल में पुनर्वासित किए गए थे। मेरे पिता का विवाह भी चौरबेटिया शिविर में निवास के दौरान हुई। मेरी मां उड़िसा के ही मायूर्भंज जिले के बांकुड़ा से हैं। इस हिसाब से उड़िसा मेरी ननिहाल है। इसके अलावा पूर्वी बंगाल के जो हमारे स्वजन बंगाल के इतिहास- भूगोल से हमेशा- हमेशा के लिए बहिष्कृत किए गए, उनमें से ज्यादातर लोग उड़िसा (ओडिशा) में ही बसाए गए हैं। मालाकानगिरी और नवगांवपुर के उमरकोट के सैकड़ों गांवों के...