साम्प्रदायिक फासीवाद की चुनौती- नयी ज़मीन तोड़ते हुये
साम्प्रदायिक फासीवाद की चुनौती- नयी ज़मीन तोड़ते हुये
सुभाष गाताडे यहूदी तथा इसाई, हिन्दू तथा मुस्लिम ‘मूलवादी/बुनियादीपंथी’ श्रेठ्स भिन्नता (सुपीरियर डिफरेंस) की बात करते हैं। हरएक का मुहावला एक कनिष्क और डरावने अन्य से होता है। हरएक असमावेश की राजनैतिक में स्क्रिएं रहना है। इसलिए हरएक अपने दायरे में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए खतरे के तौर पर उपस्थित होता है। मुस्लिम मिलिटेंट के लिए ‘अन्य’ यहूदी होते हैं, कभी ईसाई होते हैं और दक्षिण एशिया में हिन्दू, ईसाई और अहमदी होते हैं। मैं ऐसे किसी धार्मिक-राजनैतिक संगठ को आज नहीं जानता जिसके सामने एक दावनीकृत, डरावना अन्य नहीं है।
अन्य हमेशा एक सक्रिय निस्सेध (active negation) होता है। ऐसे तमाम आंदोलनों नफरत की लामबंदी करते हैं और अक्सिर इसके लिए अभूतपूर्व सांगी निक प्रयास करते हैं।
हिंसा का सम्प्रदाय और दुश्मनों का विस्तार भिन्नता की विषयाधाराओं में निहित होता है। सभी अन्य के प्रति अपनी नफरत को संगठित करने के लिए हिंसा के जरिये अभिव्यक्त करते हैं। सभी धर्म और इतिहास की दुहाई देते हुए अपनी हिंसा को वैधता प्रदान करते हैं। लगभग सभी मामलों में दुश्मनों की संख्या बढ़ती जाती है। पहले भारतीय परिवार के निसानें पर मुस्लिम अन्य रहता था और अब उसने ईसाइयों को उसमे शामिल किया है।
(प्रोफाइल ऑफ द रिलिजियस राइट - इकबाल अहमद, 1999)
मुखौटा और आदमी बच्चों की फन्टासियाएँ अनन्त एवम् अकल्पनीय होती हैं।


