साहित्य अकादमी की स्वायत्तता के बहाने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी तो सत्ता की ही भाषा बोल रहे हैं?
साहित्य अकादमी की स्वायत्तता के बहाने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी तो सत्ता की ही भाषा बोल रहे हैं?
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के वक्तव्य पर पलाश विश्वास की प्रतिक्रिया
यह क्या, साहित्य अकादमी की स्वायत्तता के बहाने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी तो सत्ता की ही भाषा बोल रहे हैं?
साहित्यिक संस्था को राजनीति में न घसीटें। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने लेखकों से अनुरोध किया कि वे विरोध का दूसरा तरीका अपनायें।
विश्वनाथ तिवारी जी में नामवार सिंह अवतरित
सत्ता में सत्ता की भाषा बोलना हमारे आदरणीय साहित्यकारों की पुरानी आदत रही है। इसके अभूतपूर्व उदारहण स्वयं अशोक वाजपेयी हैं। वे लेखकों की हत्याओं और दादरी के गोमांस प्रकरण में एक बेगुनाह की हत्या का विरोध करते हुए फिर सत्ता की भाषा बोले हैं।
पुरस्कार लौटाने की पहल हिंदी के कवि कथाकार उदय प्रकाश ने की है, नयनतारा सहगल ने नहीं। अशोक जी ने उदय प्रकाश को सिरे से मटियाकर साबित किया कि वे कितने अंग्रेजीदां है। साथ ही उनने नयनतारा का समर्थन करते हुए यह बयान भी जारी किया कि अंग्रेजी के लेखक इस पचड़े में नहीं पड़ते।
यह सही है कि अंग्रेजी के लेखक हिंदी के संस्कृतिकर्मियों की तरह बेशर्म होकर राजनीतिक समकरण नहीं साधते, लेकिन अंग्रेजी साहित्य और पत्रकारिता में निरंतर जनपक्षधरता का इतिहास रहा है। बंगाल की राजनीति और नवजागरण के मसीहा तक जब आदिवासी किसानों के आंदोलनों को नजरअंदाज कर रहे थे, तब भी अमृत बाजार पत्रिका ने उन आंदोलनों के ब्यौरे छापे हैं। अंग्रेजी में जमीन की भाषा बोलने वाले कमसकम दो बड़े भारतीय लेखक हैं मुल्क राज आनंद और केए नारायण, जो कमसकम अशोक जी से बड़े साहित्यकार हैं।
अभी इंडियन एक्सप्रेस भी उतना भगवा हुआ नहीं है और जनता के हकहकूक की खबरें एक्सप्रेस समूह से प्रिंट के आर-पार छापी निकाली जा रही हैं। इन सारे लोगों का अपमान कर रहे हैं अशोक जी।
हमें इस पर सख्त ऐतराज है।
हमें विश्वनाथ तिवारी जी में नामवार सिंह अवतरित नजर आ रहे हैं।वे चुप रहते तो बेहतर था।लेखकों को विरोध जताने का हक है।चाहे वे कितने ही विवादास्पद हों।घटनाएं कत्लेआम की हैं और रचनाकर्मी को कोई न कोई पक्ष लेना चाहिए।
जनसत्ता के पहले पन्ने पर शहर को खबर, अकादमी बेखबर शीर्षक से जो खबर राकेश तिवारी ने लिखी है, उससे तो लगता है कि तिवारी जी मानते हैं कि अकादमी पुरस्कार पाने वाले लेखक ही लेखक होते हैं और पुरस्कृत होने के बाद ही उन्हें रचनाकर्मी माना जा सकता है।
अकादमी का काम है कि भारतीय भाषाओं का बेहतर साहित्य सभी भाषाओं में वह अनूदित करवाके प्रकाशित करायें।
उनकी यह दलील बेहद बेहूदा है कि पुरस्कार लौटाने के साथ जो प्रतिष्ठा पुरस्कार हासिल करने से मिली उसका भी हिसाब कर लें और विभिन्न भाषाओं में छपी विरोधी बागी रचनाकारों की किताबों का हिसाब किताब भी पहले बराबर हो।
विष्णु खरे जी ने पुरस्कार लौटाने की टाइमिंग पर जो खत लिखा था, उसकी बहुत सख्त प्रतिक्रिया हुई थी। विष्णुजी फिर भी जायज सवाल पूछ रहे थे और बागी लेखकों की जनपक्षधरता की ईमानदारी का सवाल उठा रहे थे। उस पर गौर जरूर किया जाना चाहिए। इस सवाल से इतना तिलमिलाने की जरूरत नहीं थी।
तिवारी जी तो सिरे से वाहियात सत्ता की भाषा बोल रहे हैं। उनके पैमाने से हमारी न कोई औकात है और न कोई प्रतिष्ठा और हमारी कोई पुस्तक भी अकादमी ने छापी नहीं है। पर कमसकम चार दशक से हिंदी में पढ़ लिख रहा हूं और उनके इस बयान से हम शर्मिंदा हैं।
हम पहले ही बता चुके हैं कि पुरस्कार लौटाने से कुछ नहीं बदलने वाला है, लेकिन विरोध में अगर संस्कृति कर्मी मुखर होते हैं तो हम उनका सौ खून माफ करने को तैयार हैं और प्रतिरोध के मोर्चे पर उनका स्वागत है।
पर यह क्या, साहित्य अकादमी की स्वायत्तता के बहाने तिवारी जी तो सत्ता की ही भाषा बोल रहे हैं।
नई दिल्ली। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष एवं स्वयं एक विख्यात कवि, लेखक एवं आलोचक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने लेखकों से अनुरोध किया कि वे विरोध का दूसरा तरीका अपनाये और साहित्यिक संस्था को राजनीति में न घसीटें। उन्होंने कहा, ‘‘अकादमी कोई सरकारी संगठन नहीं बल्कि एक स्वायत्त संस्था है। यह पुस्कार किसी चयनित कृति के लिए लेखक को दिया जाता है तथा पुरस्कार को लौटाने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि यह पद्म पुरस्कारों की तरह नहीं है।’’
दूसरी ओर, प्रख्यात साहित्यकार नयनतारा सहगल एवं अशोक वाजपेयी के साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के निर्णय को बुधवार को विपक्षी दलों द्वारा समर्थन मिला तथा कांग्रेस ने कहा कि इससे देश में ‘असहिष्णुता’ के प्रति क्रोध झलकता है।
बहरहाल, अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल और हिन्दी कवि वाजपेयी के कदम पर सवाल उठाते हुए कहा कि लेखकों को विरोध प्रदर्शन के लिए अलग रास्ता अपनाना चाहिए तथा स्वायत्त साहित्यिक संस्था का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपात काल के दौरान भी अकादमी ने कोई रुख नहीं अपनाया था।
विरोध का दूसरा तरीका अपनाएं लेखक
उन्होंने कहा, ‘‘लेखकों को विरोध का दूसरा तरीका अपनाना चाहिए था। वे साहित्य अकादमी पर दोष कैसे लगा सकते है जो 60 साल से अस्तित्व में हैं। आपातकाल के समय में भी अकादमी ने कोई रुख नहीं अपनाया था।’’ उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्यिक दायरों की परंपराओं के अनुसार अकादमी विभिन्न भाषाओं की कृतियों के अनुवाद, पुरस्कार प्रदान करने तथा साहित्यिक विषयों पर संगोष्ठी एवं कार्यशालाएं आयोजित करवाने में संलग्न रही है।
तिवारी ने कहा, ‘यदि साहित्य अकादमी भी इसमें कूद जाए और अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी का विरोध करना शुरू कर दे तो क्या वह अपने मूल कार्य से नहीं भटक जाएगी।’
उन्होंने कहा, ‘मैं समझ सकता हूं कि लेखक साहित्य अकादमी के विरुद्ध नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ हैं। अब यदि यह एजेंडा है तो क्या साहित्य अकादमी को इस एजेंडा में शामिल होना चाहिए और अपना साहित्यक कार्य पीछे छोड़ देना चाहिए।’
हिंदी कवि अशोक वाजपेयी ने भी अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया है। इसके पीछे उन्होंने कई कारण बताए जिनमें से एक हाल के दिनों में लेखकों एवं तर्कशास्त्रियों पर होने वाले हमले एवं धर्म के नाम पर हिंसा फैलाना भी है।
कांग्रेस ने किया लेखकों का समर्थन
विपक्ष ने ‘बहुलतावादी’ भारत के विचार के समर्थन में सामने आने के लिए दोनों लेखकों की सराहना की।
इस कदम का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि छुटभैया राजनीतिक नेता देश की विविधता को नकार कर और उसे धूमिल कर भारत की अंतरात्मा को चोट पहुंचा रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री की लगातार चुप्पी के चलते ये तथाकथित छुटभैये राजनीतिक नेता अपने शब्दों से, कामों से, बयानों से, परोक्ष आक्षेपों और उकसावों से भारत की विविधता को नकार कर उसे धूमिल कर रहे हैं और भारत की अंतरात्मा पर हमला कर रहे हैं।’’ भाकपा नेता डी राजा ने भी नयनतारा के कदम का समर्थन किया और कहा कि उनका निर्णय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं संघ परिवार के संगठनों द्वारा दिखाई जा रही ‘अहिष्णुता’ के खिलाफ देश के गुस्से को दिखाता है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी का बयान
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, ‘‘भारत की परिकल्पना के मूल आधार पर हमला हो रहा है। नयनतारा को सलाम करने और उनकी तारीफ करने की जरूरत है और भारत की इस परिकल्पना के प्रति उनके खड़े रहने के लिए उन्हें तिरंगे की सलामी दी जानी चाहिए।’’


