हिंदी विश्‍वविद्यालय में चीन से आए प्रो. जियांग जिंगकुइ का स्‍वागत

वर्धा 16 जनवरी 2016: भारत और चीन को नजदीक लाने का काम दोनों देशों में उपलब्‍ध साहित्‍य और संस्‍कृति ही कर सकती है। हमारे संबंध प्राचीन काल से इसी वजह से मजबूत है। लंबे इतिहास को जारी रखने के लिए हिंदी साहित्‍य का चीनी में और चीनी साहित्‍य का हिंदी में अनुवाद होना चाहिए।

उक्‍त बाते चीन के पेकिंग विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर तथा चायना असोसिएशन ऑफ साउथ एशियन लैंग्वेजेस के निदेशक प्रो. जियांग जिंगकुइ ने कही। वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में अपनी भेंट के दौरान विश्‍वविद्यालय के अध्‍यापक एवं अधिकारियों से चर्चा कर रहे थे।

प्रो. जियांग जिंगकुइ के स्‍वागत में भाषा विद्यापीठ के सभागार में वरिष्‍ठ प्रोफेसर मनोज कुमार की अध्‍यक्षता में शुक्रवार को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस अवसर पर प्रो. जियांग जिंगकुइ ने लगभग एक घंटे तक अपनी बात हिंदी भाषा में रखी। इससे पहले उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय के विभिन्‍न विभागों में जाकर वहां के अधिकारी एवं अध्‍यापकों से चर्चा की। प्रो. जियांग जिंगकुइ ने आंतरिक गुणवत्‍ता आश्‍वासन प्रकोष्‍ठ, आईक्‍यूएसी की संयोजक डॉ. शोभा पालीवाल एवं अकादमिक विभाग के संयुक्‍त कुलसचिव कादर नवाज खान से चर्चा कर हिंदी-चीनी शब्‍दकोश एवं पाठ्यक्रम आदि विषयों पर चर्चा की।

विगत पच्‍चीस वर्षों से हिंदी भाषा और भारतीय संस्‍कृति तथा सभ्‍यता पर अध्‍यापन, लेखन और शोधकार्य कर रहे प्रो. जियांग जिंगकुइ हिंदी-चीनी शब्‍दकोश और भारतीय संस्‍कृति पर पाठ्यक्रम बनाने के इच्‍छुक हैं। इस दिशा में उन्‍होंने अपने प्रवास में विश्‍वविद्यालय के अधिकारियों से वार्तालाप भी किया।

प्रो. जियांग जिंगकुइ का कहना था कि साहित्‍य दिल की बात करता है, इससे हम एक दूसरे को अच्‍छी तरह समझ सकते है। मैं हिंदी बोल रहा हूं, यह आपकी भाषा है परंतु मैं आपकी भाषा बोलकर आपके और करीब आना चाहता हूं। भारत का अनुवाद करना हमारी परंपरा रही है। चीनी प्रवासी हयू एन त्‍संग ने भारत में आकर बौद्ध साहित्‍य और संस्‍कृति का अभ्‍यास किया था, वैसे ही भारत से भी कुछ लोग चीन गये और उन्‍होंने चीनी साहित्‍य का अध्‍ययन किया। भारत के धर्म, संस्‍कृति और इतिहास के ग्रंथ चीन में सुरक्षित है। मैं लगभग 20 हिंदी ग्रंथों का अनुवाद कर रहा हूं। सूरसागर का तो हाल की में लोकार्पण हुआ है। आपने भी चीनी ग्रंथों का अनुवाद करना चाहिए। भारत में दलित साहित्‍य और बुद्धिज्म पर काफी काम हुआ है और उसे भी चीन में जाना चाहिए, यह कार्य अनुवाद से ही हो सकता है। हमारी सभ्‍यताएं समान हैं। हमारे जितने करीब बुद्ध उतना ही मानसरोवर है। आपके यहां अनेकता में एकता है तो हमारे यहां एकता में अनेकता है। हम पड़ोस के गांव या शहर के लोगों की भाषा नहीं समझ पाते। वहां भाषाओं में काफी भिन्‍नताएं है।

चर्चा के दौरान प्रो. जियांग जिंगकुइ ने धर्म, दर्शन, भूमंडलीकरण आदि विषयों पर भी अपने राय व्‍यक्‍त की।

प्रो. जियांग जिंगकुइ ने कहा कि सम्राट अशोक ने भारतीय सभ्‍यता को बाहर पहुंचाया और चीन ने उसका प्रचार-प्रसार किया। इसी प्रकार से जापान,कोरिया,विएतनाम आदि देशों में भारतीय सभ्‍यता गयी। भारतीय धर्मों ने प्राणी से भी प्रेम करने की बात की है। हिंदी को विश्‍व स्‍तर पर स्‍थापित करने की दिशा में हो रहे प्रयासों को लेकर उन्‍होंने कहा कि हिंदी भारत का प्रतीक चिन्‍ह है और इसे हमें पूरे विश्‍व में ले जाना चाहिए।
अध्यक्षीय वक्‍तव्‍य में प्रो. मनोज कुमार ने कहा कि हमारे सांस्‍कृतिक संबंध ही भौगोलिक दूरियों को दूर कर सकते हैं। भूमंडलीकरण के खतरें दोनों देशों के सामने समान रूप से है और इसका मुकाबला आपस के सांस्‍कृतिक संबंध प्रगाढ़ कर ही किया जा सकता है। एक दूसरे के साहित्‍य और संस्‍कृति का आदान-प्रदान कर हमें आगे बढ़ना होगा। जिस प्रकार हूय यन त्‍संग भारत आये थे और भारतीय लोग भी चीन गये थे वैसे आज के समय में हमें भी एक-दूसरे के देशों में जाकर इस परंपरा को कायम रखना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन अनुवाद अध्‍ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो.देवराज ने किया और प्रो. जियांग का परिचय दिया। धन्‍यवाद ज्ञापन विद्यार्थी कल्‍याण अधिष्‍ठाता प्रो. अनिल कुमार राय ने किया। चर्चा में विश्‍वविद्यालय के अध्‍यापकों ने भी हिस्‍सा लिया।

प्रारंभ में प्रो. जियांग और उनके साथ आए सागर का चरखा, शॉल, विश्‍वविद्यालय के प्रकाशन और खादी-माला प्रदान कर स्‍वागत किया गया। इस मौके पर डॉ. अन्‍नपूर्णा चर्ले, प्रो. जगदीश दॉंगी, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. एच.ए. हुनगुंद, डॉ. राजीव रंजन राय, डॉ. मनोज राय, डॉ. रवि कुमार, डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, गोपाल राम, डॉ. वीरेंद्र यादव, आराधना सक्‍सेना, सुषमा लोखंडे, दन्‍नाना, बी. एस. मिरगे आदि सहित विद्यार्थी प्रमुखता से उपस्थित थे।

प्रो. जियांग जिंगकुइ के स्‍वागत में रात्रि भोज पर कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र से चर्चा

प्रो. जियांग जिंगकुइ के स्‍वागत में आयोजित रात्रि भोज के दौरान कुलपति प्रो.गिरीश्‍वर मिश्र से लंबी चर्चा हुई। चर्चा में दोनों ने हिंदी, भारतीय साहित्‍य, चीनी साहित्‍य, संस्‍कृति और अनुवाद आदि पर किस प्रकार से कार्य आरंभ किए जा सकते इन मुद्दों पर चर्चा की। प्रो. जियांग ने बताया कि चीन के आठ विश्‍वविद्यालयों में हिंदी का अध्‍ययन-अध्‍यापन हो रहा है और चीन के छात्र भारतीय साहित्‍य में खास रूचि रखते हैं। मेंरे कईं छात्र अब अध्‍यापक बन गये हैं और वे हिंदी का कारवां चीन में आगे बढ़ा रहे हैं। विश्‍वविद्यालय में चीन के विद्यार्थियों को मिल रही सुविधा,शिक्षा और आदर भाव के प्रति उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय की प्रशंसा की और कहा कि आने वाले दिनों में बड़ी संख्‍या में चीन के विद्यार्थी आपके विश्‍वविद्यालय में आने के इच्‍छुक हैं। उन्‍होंने आश्‍वस्‍त किया कि दुनिया भर के विश्‍वविद्यालयों के लिए हम मिलकर पाठ्यक्रम बना सकते हैं। इस अवसर पर उन्‍होंने कुलसचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र, प्रो. देवराज, साहित्‍य विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. के. के. सिंह आदि से भी अलग-अलग मुद्दों को लेकर चर्चा की। चीन के विद्यार्थियों से उन्‍होंने अलग से बात की।

मैं यहां आना चाहता हूं-प्रो. जियांग जिंगकुइ

अपनी भेंट के दौरान प्रो. जियांग जिंगकुइ विश्‍वविद्यालय का वातावरण और यहां का अकादमिक माहौल देखकर काफी अभिभूत हुए। उन्‍होंने विद्यार्थियों का हाल-चाल पूछा और उनसे कहा कि आपके यहां आने से मुझे काफी खुशी हुई है। यहां का पर्यावरण बहुत अच्‍छा है। मुझे यहां आकर प्रसंन्‍नता हुई है और मैं भी यहां रहना चाहता हूं। उन्‍होंने अपने प्रवास में वर्धा स्थित सेवाग्राम आश्रम, पवनार आश्रम और विश्‍व शांति स्‍तूप को भेंट दी।