सिंगुर की तरह देश में भी किसानों के सारे हक हकूक बहाल हों!
सिंगुर की तरह देश में भी किसानों के सारे हक हकूक बहाल हों!
सिंगुर की तरह देश में भी किसानों के सारे हक हकूक बहाल हों!
सबिता बिश्वास
आज सिंगुर के साथ पूरे बंगाल में सिंगुर दिवस मनाया गया। मुख्यमंत्री ने छिनी हुई जमीन का पर्चा किसानों के बांट दिये और आठ सौ किसानों को मुआवजा का चेक भी दिया। उन्होंने ट्विटर पर सिंगुर में 9117 किसानों को जमीन का मालिकाना हक देने का ऐलान भी कर दिया।
1991से, जब से भारत लोक गणराज्य को आहिस्ते-आहिस्ते मुक्तबाजार में तब्दील किया जा रहा है, अब तक भारत के किसानों के लिए यह शायद सबसे अच्छी खबर है कि आज बंगाल के सिंगुर में सेज विरोधी किसानों की पिछले दस साल की लड़ाई के बाद अपनी जमीन का पर्चा फिर वापस मिला है।
गौरतलब है कि ममता दीदी ने मुख्यमंत्री ने 2011 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान यह वादा किया था। राज्य की पूर्ववर्ती वाम मोर्चा की सरकार के "जबरन" जमीन अधिग्रहण के खिलाफ सिंगूर आंदोलन के दौरान ममता ने जमीन लौटाने का वादा किया था।
इससे पहले मुख्यमत्री ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि सिंगुर में टाटा के नैनो कारखाने के लिए अधिग्रहित की गई जमीन में उद्योग लगने की कोई संभावना नहीं है। उनके मुताबिक सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए किसानों को भूमि लौटाने जा रही है। भूमि को कृषि योग्य बनाकर ही किसानों को सौंपा जाएगा।
ममता बनर्जी ने सोमवार को राज्य सचिवालय में सिंगुर पर उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक करने के बाद संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बुधवार को वह सिंगुर जाएंगी और 800 अनिच्छुक किसानों को क्षतिपूर्ति का चेक सौंपेंगी। उन्होंने वही करके दिखाया है।
बकरीद के बाद दुर्गोत्सव का बाजार जमने से पहले ही इच्छुक और अनिच्छुक किसानों को उनकी जमीन वापस मिल गयी है।
कश्मीर में ईद नहीं मन रही है और सोलह साल से इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के बाद सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून या आदिवासी भूगोल में निरंतर जारी सलवा जुड़ुम के दमनकारी किसान विरोधी मौसम, जलवायु और पर्यावरण में यह शरदोत्सव वसंत के वज्र निनाद से कम नहीं है।
बंगाल आदिवासी किसान विद्रोहों का सदियों से गवाह रहा है।
तिलका मांझी के पहाड़िया विद्रोह, बिरसा मुंडा के मुंडा विद्रोह, सिधो कान्हो के संथाल विद्रोह, चुआड़ विद्रोह, संन्यासी विद्रोह, नील विद्रोह से लेकर तेभागा आंदोलन, खाद्य आंदोलन और नक्सल जनविद्रोह तक जलजंगल जमीन की लड़ाई में अनंत बलिदान की कथा हम सुनते रहे हैं। निर्मम दमन से जनांदोसल और जनविद्रोह का बिखराव देखते रहे हैं।
पहली बार आंदोलन की कामयाबी के फूल खिल रहे हैं शारदोत्सव के आवाहन के बतौर।
अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण के अश्वमेधी राजसूय से निरंतर गहराते कृषि संकट, नदियों और जलाशयों से लेकर समुद्रतट और हिमालय तक की बेदखली की कयामती मुक्तबाजारी फिजां में बंगाल की सरजमीं पर भूमि सुधार के बाद किसानों की यह सबसे बड़ी जीत है और सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बंगाल में लागू होने के बाद बाकी देश में भी किसानों के हकहकूक फिर इस डिजिटल, स्मार्ट देश में बहाल हो जाने के आसार हैं।
गौरतलब है कि इसी बंगाल में दामोदर वैली निगम, दुर्गापुर इस्पात कारखाने, कलाई कुंडु वायुसैनिक अड्डे और कोयला खानों के लिए अधिग्रहीत जमीन का न मुआवजा मिला है और न बेदखली के शिकार किसानों का पुनर्वास हुआ है।
गौरतलब है कि नियमागिरि में भूमि अधिग्रहण के अदालती फैसले के बाद ओड़ीशा में बेदखली हर जिले में जारी है तो झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में भूमिपुत्र आदिवासी जल जंगल जमीन से लगातार बेदखल होते जा रहे हैं। बाकी देश उनके हकहकूक की बहाली की लड़ाई में कहीं शामिल नहीं है।
इसलिए बिना स्त्री नेतृत्व में सामाजिक क्रांति के सिंगुर की जीत भी आधी-अधूरी राजनीतिक जीत है, जिसके असर में पहले ही 35सालों के वाम शासन का अंत हो गया है।
सिंगुर के फैसले को जब तक बाकी देश में लागू करने का जनांदोलन रफ्तार नहीं पकड़ेगा तब तक यह बाहैसियत वामविरोधी राजनेता ममता बनर्जी की निजी जीत है।
गौरतलब है बेदखली की यही कथा व्यथा कोलकाता महानगर और उपनगरों में किसानों की अविराम जारी बेदखली के शिकार किसानों का सामाजिक यथार्थ है।
गौरतलब है कि ये हालात बदलने के लिए राजनीति देश भर में कहीं भी बेदखल किसानों के हित में कुछ भी कर नहीं रही है।
पूरा देश अब प्रोमोटर बिल्डर पीपीपी राज के शिकंजे में है।
यह कयामती फिजां सिंगुर की इस बेमिसाल जीत से कतनी बदल सकेगी, देखना है।
क्योंकि बाकी देश में भी खेती की जमीन अंधाधुंध शहरीकरण के लिए नई दिल्ली, लखनऊ, गोरखपुर जैसे छोटे बड़े महानगरों की तर्ज पर मुंबई, चेन्नई, कोयंबटूर, बंगलूर, हैदराबाद, अहमदाबाद, आदि महानगरों में शामिल कृषि भूमि का सच है।
दूसरी तरफ, अनाज की पैदावार जो हरित क्रांति से बेहिसाब बढ़ गयी थी,अब लागत के भी बराबर नहीं है और थोकदरों परकिसान खुदकशी का विकल्प चुन रहे हैं या देहात से पलायन करके महानगरों की गंदी बस्तियों की आबादी बनकर नर्क जी रहे हैं।
भूख के भूगोल का निरंतर विस्तार हो रहा है अच्छे दिनों के शाइनिंग इंडिया के दावे के मध्य।
इसलिए सिंगुर की यह जीत भारत के किसानों की मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में तब्दील देश में अब तक सबसे बड़ी जीत है और इस जीत का मतलब तभी निकलेगा जबकि जैसे सिंगुर में किसानों को जमीन वापस मिली,वैसे बाकी देश में भी किसानों के सारे हक हकूक बहाल हों।
इससे पहले उत्तराखंड में महिलाओं ने चिपको आंदोलन से लेकर पृथक राज्य आंदोलन तक लगातार आम जनता का नेतृत्वकरके जीत हासिल की है।
इससे पहले मणिपुर में महिलाओं ने नागरिक और मानवाधिकार की बहाली के लिए लगातार आंदोलन जारी रखा है।
बंगाल में महिलाओं के नेतृत्व में किसानों की सिंगुर में यह जीत उन्हीं लड़ाइयों के सिलसिले को मजबूत करती है।
संसद और विधानसभाओं में राजनीतिक आरक्षण के लिए भले ही भारत की एकताबद्ध स्त्री शक्ति को अभी तक कामयाबी नहीं मिली है, लेकिन स्त्री अस्मिता के सिंगुर में नये अभ्युत्थान को भारतीय कृषि के लिए संजीवनी बूटी की तरह नयी संजीवनी शक्ति मिली है और इसके लिए बिना झिझक ममता बनर्जी को धन्यवाद कहना होगा।
इसी बीच मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के राज्यसभा सांसद जॉर्ज बेकर ने कहा है कि सिंगूर की जमीन को कृषि योग्य करने में कम से कम और 10 वर्ष लगेंगे।
सिंगूर की जमीन इतनी जल्दी से कृषि योग्य नहीं की जा सकती। उनके मुताबिक मुख्यमंत्री जैसा कह रही हैं कि किसान बहुत जल्द वहां खेती कर पायेंगे। अभी ऐसा हो पाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किसानों की जमीन वापस करना चाहती हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री के इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि मुख्यमंत्री जितनी जल्दी जमीन को कृषि योग्य बनाने की बात कह रही हैं, ऐसा संभव नहीं हो पायेगा। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि यहां 10.5 फीट तक की गहराई में कोयले की राख फेंकी गयी है। पहले इस राख को साफ करना होगा। इसके बाद यहां उपजाऊ मिट्टी फिर से फेंकनी होगी और इसके बाद उस मिट्टी की जांच होगी, उसकी उर्वरक क्षमता बढ़ायी जायेगी। इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 10 वर्ष का समय लगेगा।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 31 अगस्त को यह व्यवस्था दी थी कि सिंगूर में भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण एवं सार्वजनिक उद्देश्य के लिए नहीं थी। न्यायालय ने 12 सप्ताह के भीतर इसे किसानों को लौटाने का निर्देश दिया है, जिसे ममता बनर्जी ने आज लागू कर दिया।


