सिक्किम का लेप्चा समुदाय जिसके लिए, 'प्रकृति में ही ईश्वर का वास है'
प्रकृति | पर्यावरण | समाचार 'God is present in nature'. For the Lepcha people of Sikkim State in India, revering nature and biodiversity is a way of life. If there is a forest, the Lepcha community survives. If there is a Lepcha community, then the forest also survives

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UNDP ने सुरक्षित हिमालय पहल शुरू की है
नई दिल्ली, 09 जून 2023: भारत में सिक्किम प्रदेश के लेप्चा समुदाय के लोग, प्रकृति व जैव विविधता को ईश्वर का दर्जा देते हैं. प्रकृति-आधारित उनकी जीवनशैली व आजीविकाओं की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने, राज्य सरकार व भागीदारों के साथ मिलकर ‘सुरक्षित हिमालय पहल’ शुरू की है. इसके तहत, स्थानीय लेप्चा समुदाय को उनकी पारम्परिक आजीविका की तुलना में, अधिक मुनाफ़ा कमाने के उपायों में प्रशिक्षित किया जा रहा है.
45 वर्षीय उगेन पलज़ोर लेप्चा, सिक्किम के ज़ोगु क्षेत्र में, अपने गाँव ही-ग्याथांग के पीछे जंगल की ओर जाते हुए बताते हैं, “हमारी भाषा में जंगल के हर एक पौधे और जानवर को एक विशिष्ट नाम दिया गया है. इस तरह, परिवारों व समुदायों की ही तरह, प्रकृति के साथ भी हमारा एक रिश्ता क़ायम हो जाता है."
उगेन, एक समुदाय-आधारित संगठन मुतान्ची लोम अल शेजम यानि MLAS के कार्यकारी निदेशक हैं.
अत्यधिक समृद्ध है सिक्किम में जैव विविधता
भारत के भौगोलिक क्षेत्र के केवल 0.22 प्रतिशत हिस्से वाला सिक्किम प्रदेश, जैव विविधता में अत्यधिक समृद्ध है. पूर्वी हिमालयी क्षेत्र का हिस्सा, यह राज्य, दुनिया के विशालतम 12 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है.
सिक्किम प्रदेश, अपने छोटे आकार के बावजूद, पौधों की 5 हज़ार 800 से अधिक प्रजातियों और जानवरों की एक हज़ार 200 प्रजातियों का घर है. इनमें से अनेक बेहद दुर्लभ व स्थानिक हैं, जो केवल इसी भाग में पाए जाते हैं.
सिक्किम में लेप्चा लोग कौन हैं?
लेप्चा लोग, सिक्किम के तीन प्रमुख आदिवासी समुदायों में से एक हैं, जो प्रकृति एवं प्रकृति-आधारित जीवन शैली के प्रति गहरी आस्था रखने के लिए जाने जाते हैं.
लेप्चा जनजाति के देवता कौन हैं?
उगेन पलज़ोर लेप्चा बताते हैं, "हमारे लिए, प्रकृति में ही ईश्वर का वास है. हर लेप्चा वंश का अपना एक पहाड़, गुफ़ा और झील होते हैं, जिनकी वो पूजा करते हैं.हमारी पारम्परिक आजीविकाओं में, खेती और प्राकृतिक रेशों से बने हस्तशिल्प प्रमुख हैं."
"यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों में इतना समृद्ध है कि हमारी ज़रूरतों के लिए यहाँ सब कुछ उपलब्ध है, और इसीलिए हम इसे 'मयल ल्यांग' कहते हैं, जिसका अर्थ है 'देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त भूमि'.”
पिछले कुछ दशकों में, असतत संरचनाओं के विकास और आधुनिक उपभोक्तावाद ने इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव डाला है.
उगेन बताते हैं, “हमारे सभी कृषि उत्पाद जैविक हैं, और हस्तशिल्प का उत्पादन स्थाई तरीक़े से किया जाता है. लेकिन बाज़ार में हमें जो क़ीमत मिलती है, वह लागत व समय एवं मेहनत के अनुरूप नहीं होती है. इसी कारण, अब युवा लोग, इन व्यवसायों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं."
"जब ऐसा होता है तो प्रकृति के साथ हमारा सम्बन्ध और उससे जुड़ी सांस्कृतिक प्रथाएँ भी प्रभावित होती हैं. अगर लेप्चा लोग चले गए, तो इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता की रक्षा करने के लिए कोई नही होगा."
उगेन, एक समुदाय-आधारित संगठन मुतान्ची लोम अल शेजम यानि MLAS के कार्यकारी निदेशक हैं, जो लेप्चा जीवन शैली और इसे बनाए रखने वाले प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के प्रयास कर रहा है.
क्या है सुरक्षित हिमालय पहल
भारत में यूएनडीपी, वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF), सिक्किम सरकार के साथ मिलकर, ‘सुरक्षित हिमालय पहल’ के ज़रिए, स्थाई प्रकृति-आधारित आजीविका का पालन करने वाले समुदायों को समर्थन दे रहे हैं.
MLAS व यूएनडीपी जैसे संगठनों के साथ साझेदारी के ज़रिए, लेप्चा समुदाय के लोगों को अपनी पारम्परिक आजीविका से मिलने वाले आर्थिक लाभ को बढ़ाने के उपाय इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली घास - हिमालयन बिछुआ बूटी से प्राप्त रेशों का प्रसंस्करण, इस पहल के हिस्से के रूप में किया जा रहा है. इससे सूत बनाने के पारम्परिक तरीक़ों में बहुत समय और मेहनत लगती है.
ऐसे में, इस परियोजना के तहत विशेषज्ञों की मदद से, समुदाय के सदस्यों को जंगल से बिछुआ पौधों की कटाई के बेहतर तरीक़ों पर प्रशिक्षित किया जा रहा है. हाथ से कच्चे रेशे का सूत कातने में लगने वाली मेहनत को कम करने के लिए, नेपाल से मशीनों का आयात किया गया है.
सिक्किम के एक बुटीक फैशन ब्रांड - La Designs की मालिक सोनम ताशी ग्यालत्सेन कहती हैं, "बिछुआ के रेशों से बने उत्पादों की अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में बहुत मांग है, और उनकी अच्छी क़ीमत मिलती है. बिछुआ के रेशों से बने, एक मीटर सूत के कपड़े की क़ीमत लगभग 20 अमेरिकी डॉलर है, जबकि समान मात्रा में कपास के रेशों की क़ीमत केवल 1 डॉलर होती है. इसलिए, आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर हम उच्च गुणवत्ता वाले रेशों का उत्पादन करने में सक्षम हो सकें, तो यहाँ के समुदायों को कितना आर्थिक फ़ायदा हो सकता है.”
La Designs, ‘नेटल फाइबर’ के उत्पाद बनाकर, लन्दन और न्यूयॉर्क जैसे देशों को निर्यात करता है. प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप, La Designs को अब समुदाय से उच्च गुणवत्ता वाले बिछुआ रेशे प्राप्त हो रहे हैं.
इसके अलावा, परियोजना के तहत, लेप्चाओं के साथ मिलकर, जैव विविधता के समुदाय-आधारित प्रबन्धन पर काम किया जा रहा है.
परियोजना के हिस्से के रूप में, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक ग्रामीण स्तर की संस्था, जैव विविधता प्रबन्धन समिति (बीएमसी) की भी स्थापना की गई है. इस समिति के माध्यम से, क्षेत्र में स्थित समुदायों के समस्त जैविक संसाधनों की सूची बनाई जाती है, ताकि उनका निरन्तर उपयोग और प्रबन्धन किया जा सके.
Sikkim's Lepcha community for whom 'God resides in nature'.
स्रोत : संयुक्त राष्ट्र समाचार


