सियासी जंग सरदार पटेल पर
सियासी जंग सरदार पटेल पर
विवेक दत्त मथुरिया
भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल को लेकर इस वक्त सियासी माहौल पूरी तरह गर्माया हुआ है।
सरदार पटेल को लेकर कांग्रेस और भाजपा में तलवारें खिची हुई हैं। वोट के लिये दोनों पार्टियाँ सरदार पटेल को लेकर अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की जुगाड़ में हैं।
अपने चुनावी मुनाफे के लिये कांग्रेस और भाजपा, पटेल पर ऐसे लड़ रही हैं, जैसे पटेल राष्ट्रीय विभूति न होकर दोनों पार्टियों की निजी जागीर हों।
खैर, सरदार पटेल को लेकर कांग्रेस मीडिया सेल के प्रभारी अजय माकन ने नरेंद्र मोदी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुश्मन करार दिया है। अजय माकन ने पार्टी की ब्रीफिंग में अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ की महिला पत्रकार विद्या सुब्रमण्यम को सरदार पटेल पर लिखे एक लेख के कारण मिल रही धमकियों का मामला उठाया और बताया कि उन्होंने गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से इसकी जाँच कराके समुचित कार्रवाई करने को कहा है।
महिला पत्रकार को मिल रही धमकियों का यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा गम्भीर विषय है।
दूसरी ओर पत्रकार विद्या सुब्रमण्यम ने एक न्यूज चैनल से कहा कि उनसे जुड़े मुद्दे को उठाकर कांग्रेस ने ठीक नहीं किया। उन्होंने कांग्रेस को इस मुद्दे को उठाने की इजाजत नहीं दी थी। अभिव्यक्ति से जुड़ा यह कोई पहला मामला नहीं है।
धर्म के नाम पर सियासत से जुड़े अतिवादी लोग, जो तमाम विद्याओं से परिपूर्ण हैं, इसलिये कोई बात उनकी मर्जी के खिलाफ हो तो उसका तार्किक विरोध करने की बजाय जान से मारने की धमकी पर उतारू हो जाते हैं। यह खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। अतिवादी लोगों से इस तरह का आचरण संवैधानिक, लोकतांत्रिक मान्यताओं के प्रतिकूल और मानवाधिकार का हनन भी है। विचारों को लेकर मतभेद होना किसी भी दृष्टि से गलत नहीं है।
वाद-विवाद, संवाद की एक स्वस्थ परम्परा का हिस्सा रहा है, पर आपकी इच्छा से जुदा राय आने पर आपको किसी की अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने और जीने के अधिकार को छीनने का अधिकार कहाँ से मिला और किसने दिया?
इस सवाल से हमारी व्यवस्था और समाज मुँह चुराता रहा है।
देश और समाज को तोड़ने वाली ताकतें इस तरह सिर उठाने की हिम्मत न करतीं। भाजपा और कांग्रेस दोनों को सरदार पटेल के बारे में एक बात खुले तौर पर समझ लेनी चाहिए कि सरदार पटेल सही अर्थों में राष्ट्रीय एकता और अखंडता के सबसे बड़े शिल्पी थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था, क्योंकि भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी।
हकीकत तो यह है कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रति दोनों ही दलों की प्रतिबद्धता बेहद कमजोर है।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुये कहा था कि दुनिया का आधार किसान और मजदूर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं, क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं।
सरदार पटेल मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे देशभक्त थे। वे वर्ण-भेद तथा वर्ग-भेद के कट्टर विरोधी थे।
विचारों के आलोक में दोनों ही पार्टियाँ पटेल की थाती की नैतिक रूप से अधिकारी नहीं हैं। पटेल को लेकर सियासी लाभ के लिये आपस में लड़ने वाली कांग्रेस और भाजपा को अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए कि वे वास्तव में पटेल के विचारों की सच्ची हकदार हैं। किसी के भी एजेंडे में किसान और मजदूर की पीड़ा शीर्ष प्राथमिकता पर नहीं है और न ही राष्ट्र की एकता और अखण्डता पर। वे केवल वोट की सियासत के लिये कुछ भी करेगा की तर्ज पर बिना सोचे-समझे बयानों की तलवार भाँजने लगते हैं और सच के आईने में अपनी कुरूपता को देखकर आईने को तोड़ने पर आमादा हो उठते हैं।
आईना टूटने से चेहरे की हकीकत नहीं बदल जाती।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हर प्रजातान्त्रिक समाज के लिये मूल मानदण्ड समझी जाती है और आज की दुनिया में इसकी मूल मानवाधिकारों में गणना होती है। रही बात पटेल की तो वह समूचे राष्ट्र और समाज की थाती हैं, किसी व्यक्ति या पार्टी की नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। )
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