शर्म की बात HCU पर राष्ट्रीय मीडिया के कानों पर जूं नहीं रेंगती
सुरेश जोगेश
जहाँ आजकल अगड़ी जातियों की लड़ाई आरक्षण जैसे संवैधानिक अधिकारों से है वहीँ पिछड़ी जातियां आजादी के 68 साल बाद अब भी गरिमा के साथ जिन्दगी जीने के अधिकार को लेकर लड़ रही हैं, मुझे इसलिए लिखना पड़ता है।
मुझे इसलिए भी लिखना पड़ता है कि सिस्टम से जो फायदा कन्हैया व निर्भया को मिलता है वो रोहित वेमुला व सोनी सोरी को नहीं मिल पाता।

Hyderabad University Alumni, Faculty Condemn ‘Brutal Display of State Violence on Campus’
24 घंटे से ज्यादा समय तक हुक्का-पानी बंद करने का वाईस चांसलर अप्पा राव द्वारा खाप जैसा फैसला लिया जाता और दिल्ली के मीडिया दफ्तरों में बैठे लोग इससे अनभिज्ञ रहते हैं, मुझे इसलिए भी लिखना पड़ेगा। FTII से लेकर JNU तक, छात्र आन्दोलन/प्रदर्शन हर जगह होते आये हैं लेकिन ऐसा कहीं नहीं होता कि आपका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाए और आप 12 दिन तक खुले में उठें-बैठें, खाएं-पियें, नहायें-धोएं।

Hyderabad University Row: Student groups allege 'brutal physical and sexual assault' by police
और अब हुक्का-पानी बंद कर देना। क्या ऐसे फरमानों के पीछे जातिवादी/वर्चस्ववादी मानसिकता काम नहीं करती?
कन्हैया की लड़ाई इन्हीं जातिवाद, ब्राह्मणवाद, पूंजीवाद से है तो मैं भी उसका समर्थक हूँ। मैं उसकी इन सब बातों से इत्तेफाक रखता हूँ। लेकिन रोहित वेमुला की लड़ाई भी अगर इसी व्यवस्था से होती है तो उसका नाम भी मीडिया पहली बार अपनी जुबान पर तब लाता है जब न्याय की उम्मीद में 12 दिन खुले में रहकर वो अपनी जान दे देता है। बिना किसी जांच के उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया था। मीडिया तब भी चुप था, मीडिया आज भी चुप ही रहेगा।

Hyderabad University students search for food, caned
Food and water cans ordered from shops outside the campus were stopped at the gate by security personnel.
कैंपस में खाना-पानी से लेकर बिजली, इन्टरनेट यहाँ तक तक कि एटीएम कार्ड ठप्प कर दिए जाते हैं। रही सही कसर फिर पुलिस पूरी करती है विरोध कर रहे छात्र-छात्रों को बड़ी बेरहमी से पीटकर(यौन उत्पीडन का भी आरोप है)। जो खाना-पानी बाहर से मंगवाया जाता है उसे भी गेट पर रोक दिया जाता है, उसे अन्दर जाने नहीं दिया जाता है। इसी बीच कैंपस में खाना बनाने की कोशिश कर रहे छात्र-छात्राओं के साथ भी पुलिस द्वारा मारपीट की जाती है, उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। पुलिस की इस क्रूर कार्यवाही का शिकार हुए छात्रों में से एक "उदय भानु" अब भी अस्पताल में हैं, गंभीर हालात में ICU मे हैं। उनके अनुसार उन्हें पुलिस द्वारा वैन में बंद करके मारा गया। मारपीट को उनके घाव चीख-चीखकर बयां करते हैं। इस पूरे घटनाक्रम की शिकार हुए छात्र-छात्रों द्वारा टुकड़ों में वीडियोग्राफी कर इन्टनेट पर डाली जाती है, सोशल मीडिया के माध्यम से भी बात आमजन तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है व मदद की गुहार की जाती है।
यह शर्म की बात ही है कि इस सब के दौरान राष्ट्रीय मीडिया के कानों तले जूं भी नहीं रेंगती।

HCU Turned Into A War Zone by Govt, Student In Serious Condition in ICU
एप्पल और अमेरिकी जांच एजेंसी FBI की लड़ाई चल रही है एक आतंकवादी के iPhone को अनलॉक(खोलने) को लेकर। एप्पल इसे खोलने से मना कर रही है। उसका तर्क है कि हम ग्राहकों के साथ साथ छलावा नहीं कर सकते। वो हमारे लिए सर्वोपरि हैं। दूसरी तरफ यह देखिये कि यूनिवर्सिटी ऑफ़ हैदराबाद की SBI ब्रांच से जारी हुए उन छात्रों के ATM कार्ड बंद कर दिए जाते हैं वो भी उस स्थिति में जब उनका खाना-पानी, बिजली-इन्टरनेट सब बंद है। आप इन दोनों कंपनियों को चलाने वालों की भी मानसिकता देखिये।
यहाँ से यह साफ़ नजर आता है कि छात्रों के प्रदर्शन/आंदोलन को दबाने के लिए सबने एकजुट होकर काम किया। मीडिया ने भी इसमें बखूबी साथ दिया, लोकतंत्र का चौथा हिस्सा होते हुए भी।

University of Hyderabad row: Students beaten, campus on lockdown; 27 arrested, including university professor
क्रिकेट मैच की तरह पल-पल की खबर, यहाँ तक कि लाइव विडियो सोशल मीडिया पर डाली जाती है। देश का समस्त पीड़ित-प्रताड़ित इसे पढ़ता व देखता है। अगर कोई इस दौरान पिक्चर से बाहर होता है तो वो है मीडिया।
अगर मीडिया की मजबूरी को समझने की कोशिश की जाए तो वो क्या हो सकती है?
क्या उसे डर था उसके साथ पुनः मारपीट होने का?
मुझे ऐसा नहीं लगता।
अगर उसे डर था भी तो उसे जातिवाद के मुद्दे पर पीछे नहीं हटना चाहिए था जैसे वो राष्ट्रवाद के मुद्दे पर नहीं हटा। देश के तमाम बड़े चैनलों के पत्रकार लाइव कवरेज/इंटरव्यू के लिए स्टूडियो छोड़ प्रदर्शन में साथ-साथ कोर्ट तक जाते हैं।
Hyderabad: Students and faculty arrested for peaceful protests must be released
मैं इस बार भी वही उम्मीद कर रहा था। मुझे जैसे ही इसके बारे में आधी-अधूरी जानकारी प्राप्त हुई। मैंने पूरी खबर व कवरेज के लिए मीडिया को खंगाला। इस उम्मीद में कि मीडिया के लिए इस वक़्त सबसे बड़ा मुद्दा यही होगा शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस का आक्रमण व लोकतंत्र की हत्या। हर अख़बार से लेकर लाइव डिबेट व प्राइम टाइम शो तक खंगाले और फिर न मिलने पर सोशल मीडिया पर। यह अनुभव मुझे हैरान-परेशान कर देने वाला था। मुझे इसलिए भी लिखने पड़ा।
Hyderabad University Row: Rights Panel Sends Notices to Education Ministry, Telangana Government

खैर, घटना को अब दो दिन होने के बाद मीडिया के कुछ चैनलों ने अपनी साख बचाने के लिए जहमत उठायी है एक-एक, दो-दो आर्टिकल लिखने की। इस अमानवीय घटनाक्रम पर मानवाधिकार संघठनों ने सवाल उठाये हैं। आँध्रप्रदेश एक मानवाधिकार संगठन ने वाईस चांसलर को नोटिस भी थमाया है। वहीँ मानवाधिकार संगठन "एमनेस्टी इंटरनेशनल" ने भी पुलिस की शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर क्रूर कारवाही की निंदा है व गिरफ्तार किये 2 प्रोफेसर और 25 से ज्यादा छात्रों को शीघ्र रिहा करने की मांग की है, साथ ही पुलिस के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल के लिए निष्पक्ष जांच की मांग की है। बुधवार(22 मार्च) को गिरफ्तार किये गए इन लोगों 24 घंटे में न्यायालय के लिए समक्ष पेश तक नहीं किया गया जो कि कानून द्वारा अनिवार्य है। इन्हें न्यायालय के समक्ष पेश होने के लिए सोमवार तक का इंतजार करना होगा।
इस अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति के लिए "राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग"(NHRC) ने तेलंगाना सरकार व "मानव विकास संसाधन मंत्रालय"(MHRD) को नोटिस भेजा है तो "एशियन ह्यूमन राईट कमीशन" ने भी इसकी कड़ी निंदा की है इसे तानाशाही बताया है।
Caste systems violate human rights of millions worldwide – new UN expert report
जो कुछ भी हो, यह सब संभव हुआ एक साझी सोच से जिसमें जातिवाद साफ़-साफ़ झलकता है। यह मैं ही नहीं "एमनेस्टी इंटरनेशनल" की यह रिपोर्ट भी कहती है। यूएन एक्सपर्ट(संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के गठन को पेश करने के दौरान) की नयी रिपोर्ट के अनुसार जाति व्यवस्था काफी लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का काम कर रही है।