पंजाब के समृद्ध कवियों की अगली कड़ी है जागीर सिंह कहलों का काव्य : डॉ. वरियाम सिंह संधु
टोरंटो से शमशाद इलाही शम्स की रिपोर्ट
पंजाबी लेखक संघ-टोरंटो के परचम तले आज पंजाब के वरिष्ठ लेखक, राजनीतिक, सामाजिक जुझारू कार्यकर्ता और चिन्तक प्रोफ़ेसर जागीर सिंह कहलों की पहली किताब ‘जिलावतन’ का विमोचन रायल इण्डिया रेस्तरां के हाल में सम्पन्न हुआ जिसमे पंजाबी साहित्य की दिगग्ज हस्तियों, संस्कृति कर्मियों और सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने शिरकत की।

पंजाबी साहित्य के अकादमी पुरूस्कार विजेता प्रसिद्द जन लेखक वरियाम सिंह संधु ने जागीर सिंह कहलो की कविताओं, ग़ज़लों और दोहों का अवलोकन करते हुये उन्हें पंजाबी साहित्य के गुरू नानक, बुल्ले शाह, वारिस शाह, इल्यास गुम्मन की विरासत का लेखक बताते हुये कहा कि इन पंजाबी कवियों की परम्परा को जैसे सुरजीत पात्तर, जगतार सिंह, संतोख सिंह पीर, हरभजन सिंह हुंदल, शिवकुमार ने आगे बढ़ाया है, जागीर सिंह कहलों का काव्य भले ही इतना विकसित और सम्पन्न न हो लेकिन यह इसी परम्परा की अगली कड़ी जरूर है। जागीर सिंह कहलों हमारे समय के वह कवि हैं जिन्होंने कविता को जीवन और जीवन को कविता बनाने का बड़ा काम कर दिखाया है।

इस अवसर पर वरियाम सिंह संधु ने जागीर सिंह कहलों के अध्यापन काल में उनके संघर्षो को याद करते हुये बताया कि उस समय शिक्षकों का वेतन मात्र 1000 -1200 रु० मासिक हुआ करता था जिनकी वेतन सम्बंधी अनियमितताओं के विरुद्ध उन्होंने 23 वर्षो तक पंजाब सरकार के विरुद्ध संघर्ष किया और वह लड़ाई जीती जिसका नतीजा यह हुआ कि आज शिक्षकों का वेतन एक लाख रुपये प्रतिमाह तक पहुँच गया है जिसका श्रेय जागीर सिंह कहलों को दिया जाना चाहिये। इस संघर्ष के चलते उन्हें अपनी नौकरी तक गँवानी पड़ी। जागीर सिंह कहलों अपने छात्र जीवन के दिनों में ही माकपा के सक्रिय कार्यकर्ता बन गये थे और माकपा महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत के सान्निध्य में रहकर उन्होंने राजनीतिक जीवन की बारीकियाँ सीखीं। वरियाम संधु ने कहा कि कहलों की कवितायें सिर्फ भारत के जन मनस और उससे जुड़े प्रश्नों पर ही सवाल खड़ा नहीं करती बल्कि उनकी संवेदनायें कनाडा में बसे भारतीयों और कनाडा की समस्याओं पर भी एक सशक्त हस्तक्षेप है।

वरियाम संधु से कहा कि यहाँ उपस्थित हिन्दू, मुस्लिम, सिख और पाकिस्तान के अदीबो की उपस्थिति इस बात की सनद है कि जागीर सिंह कहलों पूरे समाज का दर्द ब्यान करते हैं और मानव जाति के संघर्षों पर उनकी मज़बूत पकड़ है जो इस बात का सबूत है कि उनका जीवन दर्शन किसी ख़ास देश-राज्य की सीमाओं से बँधा नहीं है।

चंडीगढ़ कॉलेज की प्रोफ़ेसर कँवल जीत कौर ढिल्लो ने इस अवसर पर कहलों की कविताओ का मूल्याँकन करते हुये कहा कि उनकी कविताएं महज नारे बाजी नहीं हैं बल्कि उनकी कविताओं में पंजाब के जन जीवन का दर्द भली भाँति महसूस किया जाता है। उन्होंने कहा कि जागीर सिंह कहलों के काव्य में महज शब्दों की कारीगरी नहीं बल्कि एक स्पष्ट दर्शन साफ़ झलकता है।

इस मौके पर जागीर सिंह कहलों की पत्नी सरबजीत कौर ने अपने ही अंदाज में एक कवि और राजनैतिक कार्यकर्ता पति के साथ अपने जीवन की आपबीती अपने निराले अंदाज़ में बयान की और उपस्थित जन समूह को खूब हँसाया। उन्होंने इस बात को कबूल किया कि घर में बिखरी बेतरतीब किताबो को संभालते हुये उनके पति की कई ग़ज़लें गुम भी हुयीं। जागीर सिंह कहलो के पुत्र विप्लव ने बताया कि वह किस तरह अपने पिता के बरगद जैसे साये में मात्र एक छोटा सा पौधा भर है और उसे इस बात पर गर्व है।

दिल्ली विश्विद्यालय के सहायक प्रोफेसर कुलजीत सिंह भाटिया ने कहा कि कहलों ने अपनी किताब छपवाने का निर्णय बहुत देर से लिया निश्चय ही उनकी किताब ‘जलावतन’ पंजाबी साहित्य में एक मील का पत्थर साबित होगी।

सभा के अन्त में उपस्थित मेहमानों का शुक्रिया करते हुये जागीर सिंह कहलों ने कहा कि मेरा जीवन मेरे दादा और पिता के जीवन का सदका है, मैंने अपने जीवन को भारत में इन्कलाब को समर्पित किया था, जीवन के अनन्त संघर्षो के चलते जितना सम्भव हो सका उतना काम किया भी। जागीर सिंह कहलों ने इस अवसर पर अपनी नज़्म ‘पंजाब’ और ‘बिन सरनामा’ का पाठ किया। इस मौके पर उन्होंने प्रसिद्द गायक शिवराज सनी,हरजीत सिंह और इकबाल बराड़ का धन्यवाद करते हुये कहा कि उनका कलाम इन महान गायकों के लबों तक पहुँचा यह उनके लिए बड़े फख्र की बात है। उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही गदरी बाबा और भगत सिंह के जीवन संघर्षो से प्रभावित रहे हैं, उन्हीं के पद चिह्नों पर चलने की जो भी कोशिश की मेरा वर्तमान उसी का परिणाम है। उन्होंने गदरी बाबा और गदर पार्टी के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में 29 जून से एत जुलाई तक टोरंटो में तीन दिवसीय कार्यक्रम में भारी मात्रा में शिरकत करने की उपस्थित गणमान्यों से पुरजोर अपील की।

सभा में शिरकत करने वाले गणमान्यों में डॉक्टर सुखपाल, इकबाल रामुवालिया, ओंकार सिंह प्रीत ने मंच पर शिरकत की जबकि सभागार में उपस्थित रेशम सिंह ढींढसा, गुरुबख्श सिंह बागल, डॉक्टर आलिया, उमर लतीफ़, फराह मुश्ताक, मुश्ताक अहमद, न्यूयॉर्क से आये जितेन्द्र सिंह सभरवाल, सुखविन्दर रामपुरी, पंजाबी कवि सुखविन्दर सिंह गुमान, पूर्ण सिंह पांधी, प्रसिद्ध कवि शिवकुमार बटालवी की बहन और उनके शौहर आदि भी थे। कार्यक्रम का संचालन कुलविन्दर खैरा ने बहुत शालीनता के साथ किया।

‘जलावतन’ कविता संग्रह की चन्द पक्तियां यहाँ प्रस्तुत हैं :

सुनहरी युग इतिहास का आया खासम ख़ास

अन्न की जगह खेतों में उगने लगी सल्फ़ास

एक ग़ज़ल कि पंक्तियाँ इस प्रकार है:

फूल गुलाब का हस्ता बस्ता रस्ता था

पत्ती पत्ती बुरा कौन खलार गया

खून का रंग है सूहा सारे आलम का

क्या मुस्लिम क्या हिन्दू क्या सरदार गया।